नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही, नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही| - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ Source - Parwarish Cares हाल ही में मैं 'लैंगिक साक्षरता' पर एक प्रशिक्षण में शामिल होने का अवसर मिला। जिसमें टीम आओ बात करें के लिए जुटे प्रतिभागियों के साथ हम सबने बहुत सी यादों और एक वातावरण को सबके साथ सह-निर्मित किया। उस वातावरण से ऊपजे माहौल में लोगों को 'सेक्स', 'यौन शोषण' और हमारे समाज की निषिद्ध चीजों के समूह पर बहुत ही आराम से बात करते देखना एक सुकून देने वाला अनुभव भी है। आओ बात करें की टीम ने मुझे अपने स्कूल शिक्षा के वर्तमान पाठ्यक्रम में 'सेक्स-एजुकेशन' और 'वैल्यू-बेस्ड-एजुकेशन' को समाहित करने वाले अपने विचार पर दृढ़ रहने का हौसला दिया है। हमारे समाज के कुछ सवेंदनशील लोगों द्वारा समय की आवाज़ को सुना जा रहा है और वे इस पर काम भी कर रहे हैं लेकिन समय की आवाज़ सुनना बाकियों के लिए भी आवश्यक हो गया है। हमें...