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प्रेम की आवश्यकता

दो सितारों की गुफ्तुगू सा एक रिश्ता पल रहा है मेरी पलकों के नीचे, न कोई वादा, न कोई मंज़िल बस सफ़र में चल रहा है कब से; कभी कोई किताब पढ़ता हूँ तो उसमें भी इसी की कहानी होती है, सुनता हूँ गर’ किसी के किस्से उनमें भी यही झलकता है. खेतों में फसल को पानी देते हुए, जानवरों के लिए चारा लाते हुए, किसी के हक़ में आवाज़ उठाते हुए, किसी कविता को लिखते हुए, ज़िन्दगी के किस्सों को सुनाते हुए, बदलाव की प्रक्रिया को अंगीकार करते हुए, दुनिया की राहों में ख़ुद को ढूंढते हुए, मैं नहीं खोज पाया आज तक और कुछ हर दफ़ा एक जवाब क़दमों को आकर्षित करता है कि दुनिया, मुझे और इस रिश्ते को प्रेम के साथ रहकर जीने की आवश्यकता है.                                                   - कमलेश

प्रेम और ख्वाहिशें

कौन चाहता है कि चाँद किसी रात आसमान छोड़ कर छुप जाए; किसी गहरी पहाड़ी के पीछे, मैं उसके बालों को देखता हूँ तो चाहता हूँ कि ये ख़्वाब सच हो. दुनिया में पल रहे सारे सवाल इकठ्ठा करके मैं, उनको उसकी हँसी सुनाना चाहता हूँ: उसके मुस्कुराने भर से दिक्कतें हल हो जाया करती हैं. प्रेम में घूम रहे ब्रम्हांड के सारे ग्रह एक दिन आकाशगंगा में विलीन हो जाने का ख़्वाब देखते हैं, और मैं चाहता हूँ कि निहारता रहूँ उसके चेहरे को अपने विघटन के आख़िरी क्षण तक, लिख दूँ उसके लबों पर एक कविता प्रेम की बूँद के खप जाने से पहले, वक़्त को उसके लौटने तक रखूँ बगीचे के नए उगते गुलाब के नीचे, सुना है वक़्त में अधूरी छुट गई ख्वाहिशें नई ज़िन्दगी की शुरुआत बनकर लौटती हैं. -        कमलेश

खुशियों का रास्ता

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खुशियों का रास्ता दिल की राहों से होकर जब घर की दहलीज़ पर पहुँच जाए तो लगता है कि ज़िन्दगी में ठहराव और प्रेम एक साथ जिया जा सकता है. वक़्त से कोई कितना कुछ माँगेगा जब वह अपने मूल्यों पर जीते हुए वे सारे सवाल और रिश्ते सुलझा ले जिनसे जीवन के रास्ते छाँव और सुकून से भर जाया करते हैं. मैं पिछले महीने दीवाली के लिए घर पर था और यह मेरी दिल्ली आने के बाद की सबसे लम्बी घर पर बिताई हुई छुट्टियाँ थीं। इस बार जब मैं घर पहुँचा , तो कुछ ऐसा था जो मुझे हर क्षण कहता रहा कि यह समय ख़ास है और मैं इसे और अधिक सुंदर बना सकता हूँ वह भी मेरे प्रेम और समर्पण के तरीकों से. इस दफ़ा यह पहली बार हुआ कि मैंने अपने परिवार के लगभग सभी सदस्यों के साथ यादगार बातचीत की , चाहे फिर वह मेरी पापा के साथ हुई बातचीत हो या मम्मी या भईया-भाभी के साथ जीवन यात्रा के किस्से सुनना और सुनाने वाला समय. सब कुछ इतना सहज और सुन्दर था कि सिर्फ वक़्त के बहाव में पूर्णता के साथ संतुष्ट कर देने वाले स्तर तक स्थापित हो गया. एक बात मैं जीवन के इस पड़ाव पर अपने प्रेम की ताकत के साथ स्वीकारना सीख गया हूँ कि एक समय ऐसा भी रहा है जीवन में जब

मुलाकातें, यात्रा और प्रेम

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मुलाकातें हमेशा ही खूबसूरती की नींव रखती है. तकरीबन ३ सालों के बाद राहों ने मुझे इंदौर की गलियों से रूबरू करवाया और दिल की तमाम ख्वाहिशों का ज़खीरा अपने पूरेपन के एहसास में खोकर लौटा. पिछले ३ साल मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से काफी अहम और प्रेरणादायी रहे हैं, जितना कुछ इन वर्षों ने दिया है वह अमूल्य है. इन राहों के सफ़र में कुछ दोस्त अपनी राह पर चलकर इस खूबसुरत शहर आ चुके थे, जिनसे मिलने की फिराक़ में मैं यहाँ पहुँच गया. दोस्तों के साथ बैठकर अपने और उनके जीवन की यात्रा के बारे में जानना और उनके अंतर्मन को सुनना मेरे लिए एक नए आसमान के द्वार खोलने जैसा अनुभव रहा है. चाहे फिर रिंग रोड पर विवेक और गजेन्द्र के साथ काम और व्यक्तिगत जीवन की बाते हों या फिर उनके जीवन के ३ वर्षों में बीते हुए वसंत का किस्सा: गजेन्द्र और विवेक को ३ सालों के बाद मिलना और उनमें आये हुए बदलाव का साक्षी बनना मेरे लिए सौभाग्य से कम नहीं है. ऐसी मुलाक़ातें वक़्त को कीमती बनाती हैं.   नवोदय के साथी रहे शिवपाल, जितेन्द्र और ईश्वर के साथ का वक़्त अपनी अलग छाप रखता है और यह एहसास एक सुकून देता है कि साथी अपने दिल की आवाज़ को

तुम्हारा अस्तित्व

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यह दुनिया छोटी लगने लगी है मुझको, एक  शख्स पर इतना ठहर गया हूँ  मैं!                                               - नागेश इंतज़ार की परिभाषा को मैं, उसकी आँखों को देखने के बाद हाशिये पर रख देता हूँ। इतना बड़ा आसमान लेकिन फिर भी अपने आप तक पहुँचने के लिए उसके पास कोई तरीका नहीं है, मैं रख देता हूँ अपना सर उसके हाथों में और मिल जाता हूँ ख़ुद से उसके ज़रिये। वह ठहरती है दो पल के भ्रम में दो पहर तक तो ऐसा लगता है दिन को थोड़ा और बड़ा होना चाहिए। मैं जब भी उसके क़रीब होता हूँ मुझे यह दुनिया ऊन का गोला लगती है जिससे मेरी चाह है कि इसका स्वेटर बुनकर चाँद को ओढ़ाया जाए। एक ख़याल को जीते हुए इतना अरसा हो गया मुझे, आज जब उसे पीछे छोड़ा तो वह उसके बालों में लिपटे क्लिप तरह इतराता हुआ दौड़ पड़ा मेरी ओर। इतना दूर आ चूका हूँ चलते चलते कि अब लौटने के लिए मुझे पते की नहीं किसी के क़दमों के निशां की ज़रूरत है, वह भी छोड़ जाती है अपनी ख़ुशबू बजाय पैरों के निशां के।                                                             अर्जुन ने गीता को युद्ध-भूमि में सुनकर वैराग्य पा लिया था, मैं उसके प्रेम की धरा