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जून, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कल

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Source - Youngisthan.In बीते लम्हो का गट्ठर है ये आने वाले समय की उम्मीद भी इक अल्फाज ही नही है केवल अपनी ही बनाई पहेली है 'कल'।   समेटे होता है कभी बुरी यादें सहेजता है खुबसूरत बात भी एहसास हमेशा ही दिलाता है कौन किस राह से गुजरा है गलतियो का सबक है शायद आपका एक अनुभव भी है 'कल'। उम्मीदों का सागर सजाता है कभी तो कभी ना टूटने वाली आस भी कुछ करने की उम्मीद जुटाते है लोग इसके लिए सपने सजाते है इक हसीन सा लम्हा है शायद आने वाला हमसफर भी है 'कल'। ना जानता है कोई सुरत इसकी फिर भी इसे जीना चाहता है जिसका मनचाहा हो ना पाया था वो शख्स इसे भुलाना चाहता है सब कुछ होकर भी कुछ नही है आज के गुजरने पर ही आता है 'कल'।                                                                                         ..... कमलेश.....

अधूरी ख्वाहिशें

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Source - YouTube. Com हसरत इक बाकी रह गई है कोशिश कुछ अधूरी छुट गई है तुम्हारे करीब आकर रूक गया हूँ ख्वाहिशें ये अधूरी रह गई है ।   होंठो से लगाया है तेरी खुशबु को सीने में छुपाया है तेरी सुरत को दिल में छुपा रखे है अरमान मैंने ख्वाबों के सजाये है आसमान मैंने तेरी साँसो में घुल कर रूक गया मैं खुद को मिटाने की कोशिश रह गई है ख्वाहिशें ये अधूरी रह गई है ।   रातों की तन्हाई को दुर किया है तेरे लिए सभी को गैर किया है चाहा है तुझको इस कदर डुब के हो गए है चाँद हम ईद के तुझमें उतर कर रूक गया मैं तुझमें खोने की बात रह गई है ख्वाहिशें ये अधूरी रह गई है ।                                                                   .... कमलेश.....

गोली

मुझ पर गोली चलाकर सोचता है कि सारा देश खामोश हो जाएगा ना भूल मेरा लहू मिट्टी मे गर मिला तो सारा धरातल डोल जाएगा दाने दाने को मोहताज कर दूंगा तब तुझे सारा सबक मिल जाएगा क्या होती है गरीबी, मजबूरीयाँ हर शब्द का अर्थ समझ आएगा तेरी आंखो का इंतजार भी मातम मे बदल दिया जाएगा याद रख नशे मे चूर सियासत 2019 के दिन ज्यादा दूर नही जब देश के अन्नदाता के द्वारा तुझे घसीट कर पटक दिया जाएगा ।                                 .....कमलेश.....

तुम्हें याद है ना ?

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Source - Daily Mail                            उस दिन मैं अपने घर वापस आया था कुछ दिन की छुट्टियाँ लेकर , सबसे मिलना जुलना हो चूकने के बाद जब खाना खाने बैठा तब तुम्हारा फोन आया । तुम बहुत नाराज थी क्योंकि मैं इस बार भी तुमसे मिलने नही आ पाया था तुम्हें बहुत देर समझाने के बाद कहीं जाकर तुम सामान्य हुए वह भी इस वादे के साथ कि वापसी के वक्त तुमसे मिलकर जाऊं । उस बातचीत के बाद मेरे दिन तुम्हारे साथ मुलाकात के सपने देखते हुए कब गुजर गए पता ही नहीं चला ।                             उस रोज शनिवार था मैंने उठकर सबसे पहले तुम्हे फोन किया था ताकि तुमको बता सकूँ के मैं आ रहा हूँ ,तुम कह रही थी के दोपहर तक आ जाना मैं इंतजार करूँगी । मैं उस फोन के बाद काम में इतना उलझ गया था कि तुम्हारे पास आते आते बहुत लेट हो गया था,फिर बस से उतरकर पागलों की तरह भागते हुए तुम तक पहुँचा तो बस स्टॉप की उस बेतरतीब भीड़ में तुम्हें व्यवस्थित और खामोश पाया । तुम्हारी झलक पाते ही जैसे मेरी सारी थकान और उलझनें दूर  हो गई थी , लेकिन तुम शायद थोड़ा नाराज थी और हाँ जायज़ थी तुम्हारी नाराज़गी के तुम्हे दोपहर तक आने

इंतजार .... मेरा

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   ये कहानी अपने ही देश के एक आम इंसान की है | एक गरीब परिवार में पैदा हुआ लड़का अपने  घर की ज़रूरतों को पूरा करने के साथ अपने लिए भी पैसे कमाता हुआ बड़ा होता है | उसकी ज़िन्दगी के दस साल यूँही गुजरते हैं,अपने पैसों से किताबें खरीदकर वो कुछ न कुछ पढता रहता था | सौभाग्यवश उसकी मेहनत रंग लाती है और घर के उस बड़े बेटे का चयन भारतीय सेना में हो जाता है |                    सेना में भर्ती के कुछ दिन बाद ही सीमा पर फायरिंग होती है और कुछ आतंकियों को मौत के घाट उतार वो बेटा देश के लिए शहीद हो जाता है |तब उसकी अंतरात्मा क्या कहती है कुछ पंक्तियों से वो बात आप तक पहुँचाने की कोशिश की है |   Source- Alamy वो गाँव का बड़ा चबूतरा, वो गेहूं के लहलहाते खेत, वो पुराना सरकारी स्कूल, अब भी मेरा इंतज़ार कर रहा है | वो संकरी सी तंग गलियां, वो कोने वाला हैंडपंप, वो चौपाल पर बैठी मंडली, सभी मेरा इंतज़ार कर रहे हैं | वो बुढा पीपल का पेड़, वो बाड़े में बंधे जानवर, वो सूखे भूसे का ढेर, अब भी मेरा इंतज़ार करता है | वो नुक्कड़ वाला जर्जर घर, वो नीम के निचे रखी खाट, वो बरामदे में कड़ी साइक

धरा की आवाज

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    आज इस 4G के युग में हम लोगो ने इस धरती को इतनी बुरी तरीके से तबाह कर दिया है की आने वाले कुछ दशकों में इस धरती से इंसान का वजूद ही ख़त्म हो जायेगा | इस असहनीय पीड़ा को सहते हुए जब इस धरती माँ का दिल दर्द से तड़प उठता है तब वो हम सब से क्या कहती है पढ़िए निचे की कुछ पंक्तियों में ....   Source - Veterans Today  मेरा सीना चीर कर प्यास बुझाते हो, मेरी बांहे काट कर घरोंदे बनाते हो, क्या होता है वो दर्द काश तुम कुछ समझ पाते | खोखला बना दिया है मेरी रूह को, दिनोंदिन तुम्हारी इन लालसाओं ने, क्या होता है वो खालीपन काश तुम कुछ समझ पाते | मेरे चेहरे को धुंए से ढक दिया, जिस्म को रसायनों से जला दिया, क्या होती है वो पीड़ा काश तुम कुछ समझ पाते | रंग ही फैला था मुझ पर प्रेम का, नफरत से तुमने उसे लहू किया है, क्या होती है ये मोहब्बत काश तुम कुछ समझ पाते |  मेरा आसमां भी काला पड़ गया है, जो कभी मेरा आईना हुआ करता था, क्या होता है वो अपनापन काश तुम कुछ समझ पाते | तुम

रंगीन परिंदा

लम्हों को लेकर आगोश में इन सर्द हवाओं से टकराया एक बैरंग परिंदा स्याह रात में मंडराता हुआ उस पेड़ के पास |   आँखे थी उसकी चमकती हुयी शायद ख्वाब बिछे थे वहाँ काले विशाल से उसके पर होसले सिमटे थे उसके जहां देखा था शायद उसने मंजिल का कोई निशान साँसे थी उसकी थमी हुयी नजरें भी थी गड़ी हुयी एक अचूक निशाना उसका यूँ जाकर के लगा शिकार पर ताक़त उसकी लगी थी पूरी अपनी मंजिल की राह पर फिर किया उसने अंतिम प्रहार चित करके सारी अड़चन को कस कर जब वापस वो उडा अपने शिकार को पंजों में ख़ुशी थी उस आवाज़ में बैरंग से रंगीन हो गया उस काली स्याह रात में अपना उजाला भर गया ।                           .....कमलेश.....

चाहत

ठोकरों से बिखरा हुआ मैं तुझसे जुड़ कर अवतार होना चाहता हूँ |   डूबकर के तेरे इश्क़ में इस समंदर से पार होना चाहता हूँ |   खुद को खो चूका मैं तुझको जीतकर हार होना चाहता हूँ |   बनाकर साँसों को कलम तुम्हारे लिए गीतकार होना चाहता हूँ |   सुन ले खुदा तू अरज मेरी अस्तित्व खोकर निराकार होना चाहता हूँ |                                         .....कमलेश . ....