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सावन

बारिश अपने शबाब पर है बादलों ने कपड़े उतार फेंके हैं, नदियों ने अपनी हदें पार कर किनारे पर बसे कुछ गांवों की, इज्ज़त पर हाथ मारना शुरू कर दिया है । मैं बेबस हूं उस गांव सा जिसका पड़ोसी हाल ही में नदियों की दीवानगी से गुज़रा है, उसे बेसब्री से सावन का इंतज़ार था अब तक, लेकिन अभी कुछ दिन बचे हैं। इन कुछ दिनों में मैं बादलों का श्रंगार करूंगा, बारिश को तमीज़ सिखाऊंगा लेकिन नदियां नहीं सुनती, पर मेरे पास उपाय है । तुम और मैं आषाढ़ के अंत में किसी नदी के किनारे पर बैठ, उसके बहते पानी को अपने पैर डुबोकर रोक देंगे । मैं कुछ आम ख़रीद लाया हूं तुम उन्हें खाना, मैं तुम्हारे होंठो को देखूंगा और तब तक सावन कुछ दिन और देरी से आने का फैसला कर लौट जाएगा ।                                   - कमलेश

मुस्कुराहट और तुम

मुस्कुराहटों का मोल नहीं लगाया जा सकता, जब तक यह हमारे होंठो पर रहती है मन तृप्त रहता है । मुस्कान ज़िंदगी में बेवजह ही रहे तो अच्छा है जैसे कि तुम्हारे होंठो पर होती है मानो विष्णु भगवान ने तुम्हें वरदान में दी हुई है, और उसे देख मेरा मन तृप्त रहता है । खुशियों की वजह खोजना बेवकूफी है, जब तक कारण नहीं पता हम खुश हैं लेकिन जब यह गायब होती है तो दुनिया इसे ढूंढने की फिराक में फिर से ग़म की चादर ओढ़ लिया करती है । तुम्हारे साथ घूमते हुए मुझे कभी कोई कारण महसूस नहीं होता, उस दिन, शाम तक मेट्रो में सफ़र करके जब तुम्हें सीढ़ियों से उतरते देख रहा था तब मेरा मन किया था कि तुम्हारे साथ चलने के लिए उतर जाऊं लेकिन तब तक मेट्रो वाली आंटी "प्लीज स्टैंड अवे फ्रॉम दी डोर" कहकर दरवाज़े बंद हो चुकने की पुष्टि कर रही थी । जब एक दरवाज़ा बंद होता है दूसरा खुल ही जाता है, अगर मेरी ज़िन्दगी में आने के बाद तुम्हें लगे कि जिस रास्ते से तुम  आयी थी वह गायब हो गया है तब मैं तुम्हारे लिए जाने वाला द्वार खोल दूंगा, जब तुम मेरी ज़िन्दगी से जाओ तो किसी चुनावी घोषणा के जैसे गुज़र जाना और जब जाओगी तो मैं त

हरिद्वार यात्रा

कविता -१ दुनिया से अनभिज्ञ होना मानव काल का सबसे बड़ा झूठ है, तुम मेरे लिए कभी भी अजनबी तो थी ही नहीं, मैंने जाना नदी में खड़े होकर समन्दर की आत्मीयता को, जैसे तुम जान लेती हो होंठो से मेरे द्वारा बनाई हुई चाय का स्वाद ।। कविता -२ अभी आंखें गड़ी हैं मेरी सामने वाले पहाड़ की चोटी पर, लेकिन पगतलियों को नदी की लहरों का चुम्बन भाता है, मुझसे मिलना तुम पहाड़ से नदी के इस सफ़र में, तब तुम्हें बताऊंगा नदी से कैसे बनी हो तुम ।।                               - कमलेश

राहें, प्रेम और मैं

कुछ रास्ते आपको कभी मंज़िल तक नहीं ले जा पाते, ऐसे रास्ते सिर्फ भटकने के लिए बने होते हैं । जब ज़िंदगी का स्वाद थोड़ा भी ऊपर नीचे लगने लगे तो उसमें प्रेम का तड़का मारना आवश्यक हो जाता है । प्रेम का कोई रास्ता नहीं जो आपको मंज़िल तक ले जाए, प्रेम तो कहता है कि जिस राह में मंज़िल मिले वो फिर रास्ता नहीं रहता । प्रेम आपको भटकना सिखाता है ताकि आप अपने "आप" को किसी झोले में रखकर सारे चश्मे उतारने के लिए अपने कदम बढ़ाएं और समभाव से चीज़ों को देख सकें । जिस रास्ते में हम सारी उम्मीदें छोड़कर भटकने लगते हैं और बस उसकी वर्तमान में दमकती खूबसूरती को सीने से लगाते रहें, तो वह भी निसंकोच होकर हमें हमारी ज़िन्दगी दे देता है । मैंने किसी रास्ते को चुनने की गलती कभी कर दी थी, और तब जाना कि हम तो किसी रास्ते को चुन ही नहीं सकते । ये रास्ते ही उन पर चलने वाले राहगीरों को चुनते हैं उनकी भटकने की ललक और पागलपन को देखकर । कुछ किस्से कहते हैं कि नज़रें रास्ते से प्यार कर बैठे तो लोग आगे नहीं बढ़ सकते, मुझे इस पंक्ति से कभी सहमत होने की नौबत ही नहीं आई । मैंने राहों से भरपूर इश्क़ किया अब राहें म

समय

कभी कभी मैं सोचता हूं कि ये दुनिया हमेशा से गोल नहीं थी, इंसान ने अपनी ज़रूरत से इसे गोल किया । वक़्त की जेल में बंद इंसान भविष्य की पूंछ पकड़े, अतीत की बेड़ियों में जकड़े, वर्तमान में खींचता चला जा रहा है । जब मैंने देखा तुम्हें सड़क के उस पार सारे नियमों से आज़ाद घूमते, तो खोलने लगा अपनी बेड़ियां और तुमने कैदी समझ, उन्हें निकालने में मेरी मदद की । मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि उस दिन में वाकई भाग आया था, और फिर दोबारा तुमसे मुलाक़ात हुई तो उस डरावने जानवर की पूंछ भी छोड़ दी मैंने । ये दुनिया मुझे बिल्कुल नई लगी जब मैं बंधनों से मुक्त हुआ, और जब तुमने मेरे घुटनों पर लगी धूल झाड़, मेरे बालों को संवार, मुझे आज के कपड़े पहना दिए ।                                   - कमलेश

आम

चित्र
Source - Exotic Flora खेत की मेड़ पर लगा है बूढ़े आम का एक पेड़, डाली पे मोड़¹ आने पर जिसकी मैं इंतज़ार करना शुरु करता था कच्ची केरियों के आ जाने का । जेठ में दादाजी सुनाते थे बड़े चाव से हाग² पाड़ने के किस्से, मैं तोड़ लाता था केवल दो हाग मेरे और दादाजी के लिए, जिसका स्वाद अब नहीं आता कार्बन से पके आम में । जब से दादाजी गए हैं मैंने नहीं सुना कोई भी किस्सा हाग का, शहर की सड़कें इतनी तंग हैं कि आम ढूंढने पर भी नहीं मिलता, मिल भी जाए अगर कहीं तो उस पर मोड़ नहीं दिखता होली पे । परसों देखा था बगीचे में एक पेड़ बाहर लेकिन एक तख्ती टंगी थी, "यहां से फल तोड़ना मना है" ।                                     - कमलेश नोट -- मोड़ - होली के आसपास आम पे आने वाले फूल ।। हाग - पेड़ पर ही पका हुआ आम ।।