सावन
बारिश अपने शबाब पर है बादलों ने कपड़े उतार फेंके हैं, नदियों ने अपनी हदें पार कर किनारे पर बसे कुछ गांवों की, इज्ज़त पर हाथ मारना शुरू कर दिया है । मैं बेबस हूं उस गांव सा जिसका पड़ोसी हाल ही में नदियों की दीवानगी से गुज़रा है, उसे बेसब्री से सावन का इंतज़ार था अब तक, लेकिन अभी कुछ दिन बचे हैं। इन कुछ दिनों में मैं बादलों का श्रंगार करूंगा, बारिश को तमीज़ सिखाऊंगा लेकिन नदियां नहीं सुनती, पर मेरे पास उपाय है । तुम और मैं आषाढ़ के अंत में किसी नदी के किनारे पर बैठ, उसके बहते पानी को अपने पैर डुबोकर रोक देंगे । मैं कुछ आम ख़रीद लाया हूं तुम उन्हें खाना, मैं तुम्हारे होंठो को देखूंगा और तब तक सावन कुछ दिन और देरी से आने का फैसला कर लौट जाएगा । - कमलेश