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मार्च, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जब हमारे आसपास संकट हो तब जीवन कैसा दिखता है?

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Source- globalsharingweek.org हम अक्सर शिकायत करते हैं कि हम अपने करीबी लोगों और स्वयं के लिए समय नहीं दे पाने का कारण हमारे कामों की फ़ेहरिस्त का लम्बा होना है. लेकिन अब, हम अपने परिवार के साथ हैं, पक्षियों के चहचहाहट के साथ जागते हैं और ऑफिस के लिए तैयारी करने के जैसा कुछ भी नहीं है। इसके अलावा भी, समय पर घर लौटने, ट्रैफिक-जाम का सामना करने और परिवार के साथ समय बिताने के लिए चीजों को अलग रखने के लिए घबराने की ज़रूरत नहीं बची है। इन सभी गहरी इच्छाओं की पूर्ति का समय मिलने के बावजूद, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हम में से कई तनावग्रस्त हैं और इसे मैनेज करने के लिए काउंसलर तक खोज रहे हैं, लेकिन हम ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या जिस तरह से हम महसूस करते हैं, बोलते हैं और काम करते हैं उसके बीच एक बड़ा अंतर है?      हमने कभी नहीं सोचा था कि इस तरह का जीवन भी हमारे हिस्से में होगा। हम अपने माता-पिता, भाई-बहनों, बच्चों और परिवार के सदस्यों के साथ पूरे पूरे दिन और रात बिता रहे हैं और साथ ही घर से ही अपने काम को अच्छे से मैनेज भी कर रहे हैं। और साथ में दुनिया के हर कोने से आती नवीनतम जान

मैं और स्त्री

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दुनिया ने जब सुनाया अपना संगीत, तो सबसे पहले उसे सुना एक खेत में काम करती स्त्री ने। संगीत का सफ़र अनवरत रहा अनगिनत राहों और मोड़ से होते हुए, मैंने कानों में सुनी उस स्त्री की गूँज। जब से साबका हुआ है हक़ीक़त से मैं ठहरकर देखता हूँ हर उस स्त्री को जो लगती है मुझे बुद्ध के मौन और कृष्ण की अनुगूँज सी। हज़ार राहें गुज़र गईं इन 22 बरस के क़दमों तले होकर, मुझे मिली हर स्त्री ने मुझको दिया ज़िन्दगी के अनमोल पाठों का सार; मैंने ज़िद, समझ, विश्वास, समर्पण, प्रेम करुणा, ममता, आदर सी लगती हर बात को सीखा है स्त्री के वजूद से टपकते सच में। मेरा जीवन अधूरा है उस कली के खिलने तक जिसे किसी दिन खेत में काम करने आयीं, और अपने पसीने से लथपथ तन से समूचे विश्व के अस्तित्व का भार उठाती: एक निश्चल सी स्त्री ने पानी पीने के बाद लौठे में बचे पानी को गिराया होगा पौधे पर। मेरी आंखों के आगे फैले संसार में जितना कुछ मैं देख पाता हूँ मुझे यकीन है कि स्त्री के होने से ही मिल जाया करती हैं मेरे अस्तित्व को अनगिनत परिभाषाएं, दुनिया ढूंढ़ रही है सारे समाधान किताबों, विज्ञान और अ

ज़िन्दगी और रास्तों का चुनाव

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लगभग सारे ही किनारों पर पसरी हुई हैं ख़ामोशियाँ पिछले कुछ दिनों से, जहाँ खनकती थी कभी ख़ुशियाँ। फैलती जा रही है यह दुनिया वैश्वीकरण के सिद्धांतों तले, सिमटता जा रहा है पर इंसान अकेलेपन से उपजे अवसादों में। सामने आए हुए दो रास्तों में, मैंने हर दफ़ा वही चुना जिस पर चलकर मुझे हमेशा लगता रहा कि मैं ख़ुद की परतें उतारने में लगा हूँ। आज खेत की मेड़ पर बैठे बैठे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे, खोज रहा था उम्र भर से जिसको छुपा हुआ था वह मेरे प्रेम के तरीकों में। कल फ़ोन पर बतियाते हुए मित्र ने कहा कि 'should' और 'can' में से जिसे चुनोगे, वही तुम्हें परिभाषित करेगा! मैं चुन चूका हूँ वह राह जो आज़ाद है  मेरी परिभाषाओं और वक़्त से, लेकिन धँसा हुआ है गहरे तक ज़िन्दगी को देखने के मेरे तरीकों में। - कमलेश शुक्रिया वसुधा जी इस तस्वीर के लिए...

जीवन यात्रा के २२ वर्ष और रोज़ पलटते पन्ने

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  ख़तों में उपजी अभिव्यक्ति और भावों का सम्मिश्रण जीवन के पड़ावों में ख़ूबसूरती बिखेरता है! हम कितनी समस्याओं या चुनौतियों से जूझ रहे हैं यह हमारे प्रेम करने और जीने के तरीकों से इतर हमें कदम-कदम पर एहसासों की डोर थामे रहने की ताक़त देता है. लेखन से मुझे ख़ुद को व्यक्त करने में सक्षम होने की खुशी और संतुष्टि मिलती है। वह वक़्त सबसे ख़ूबसूरत होता है जब मैं अपने रिश्तों में उनके लिए नियत प्रेम और पलों को बाँट पाता हूँ और जो रिश्ते हवाओं के साथ धुँधला रहे हैं उनकी खुशबुओं को फिर महसूसने के अनुभव को आत्मसात कर पाता हूँ. दुनिया में प्रेम और करुणा के साथ जी सकने वाले अनगिनत कारण हैं जिनके ज़रिये आसपास पनपते दूषित माहौल का सामना करना ज़रा सहज और साहस भरा हो जाया करता है. मैं नहीं जानता कि कोई किस तरह मेरे किसी काम को देखता है लेकिन मेरे लिए यह महत्त्वपूर्ण है कि मैं ख़ुद के द्वारा किये गये काम, लिए गये फैसलों और जिए गये पलों को कैसे देखता हूँ! समय ने मुझे विभिन्न रिश्तों और घटनाओं के माध्यम से प्यार और सहयोग को भारी मात्रा में मुझ तक पहुँचाया है। इस साल की शुरुआत में ख़ुद के लिए वक़्त निकालन

प्रेम और करुणा... काफी है!

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घुप्प अँधेरे से भरी दुनिया में, हर कोई तलाश रहा है एक टुकड़ा रोशनी; जिसके सहारे उसे मिल सके अपने खोए हुए जीवन का पता. राहें खूँखार होती जा रही है, पानी में ज़हर घोलने वालों की संख्या बढ़ गई है चंद गुज़रे दिनों से: और भी न जाने कितनी तरह से मुश्किलों ने पाँव पसारे हैं यहाँ! मैं इतना तो जानता हूँ लेकिन कि मुझे कितने लम्हों में समेटना है अपनी आँखों के आगे फैले हुए संसार को, मुझे पता है यह भी कि कितना भाव दूँ किसी की नफ़रत को ताकि वह धरी की धरी रह जाए! और ख़ास बात तो यह है कि मुझसे कहा है किसी ने कि ख़ुद से किया गया प्रेम और सबके लिए उपजाई हुई करुणा इस दुनिया की तमाम मुश्किलों और हथियारों का सामना करने के लिए ज़रूरत से बहुत ज्यादा काफी हैं. -        कमलेश  तस्वीर के लिए शुक्रिया विजय भईया