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ख़त

अपनी प्रेयसी के लिए ना जाने किस तरह खुद का कलेजा निकालकर रखता है, एक प्रेमी खुद के टुकड़ों को समेटकर, उसे ख़त लिखता है । एहसासों की फेहरिस्त बनाए नहीं बन पाती, कुछ बंदिशें अल्फाज लगाते हैं उसकी आरजुओं के आगे, फिर भी बिखेरकर अरमानों को वह उसे ख़त लिखता है । ख़त में सिमटे होते हैं कुछ आँसू, कुछ वादे, कुछ यादें, कुछ सिलसिले, जिनको लिखने की कभी उसकी हिम्मत नहीं होती, फिर भी ख़त इनको सहेजता है ; कुछ ख़त, ख़त खुद भी लिखता है ।                          .....कमलेश.....

जागना

कल रात वो जागा था, पसीने से लथपथ आँखो में लाली और कंपकंपाते होंठ, मैंने पूछा कारण तो कहने लगा वही बहाने जो हमेशा से सुने हैं मैंने । ये दुनिया अभी सो रही है, सब को एक साज़िश के तहत गहरी नींद सुलाया गया है । जो जाग पड़ता है उसे नहीं पता होता कारण, अनायास ही इस तरह अपनी नींद के टूट जाने का । जो लोग किंतु मुश्किलों से ढूंढ लेते हैं, कारण नींद के खुलने का उनके लिए फिर एक गहरी साज़िश इंतज़ार कर रही होती है । अगर नहीं बच पाया कोई जो बिना जगाए जागा था, तो महाभारत का अंत, अर्जुन नहीं कोई दुर्योधन लिख देगा अपने गुनाहों भरे हाथों से, जिसमें कोई अंक नहीं होगा ।                               .....कमलेश.....

पहला चुम्बन

चित्र
        Source - shutterstock.com  कुछ बातें वैसे ही याद रह जाती है जैसे किसी अच्छी होटल का खाना । बात अगर कही जाए तो दो लफ्ज़ में कही जा सकती है लेकिन बिना बेक ग्राउंड के उसे समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है । आयुष बिना कुछ सोचे समझे अपने कंधे पर एक बैग लादे, सितारा बस में चढ़ा । सारे रास्ते पूराने ख्यालों के पुलिंदे पलटता रहा जो उसे हर लाइन पर मुस्कुराने के लिए बाध्य कर रहे थे । पांच बजकर बीस मिनट पर आयुष नाका नम्बर पांच पर अपने सामान को थामे उतरा । निकट ही के एक रिश्तेदार के घर जाकर जो कि नाके की बगल वाली गली में था वहाँ अपना सामान रख दिया और मोबाइल में अपनी बर्थ की करेंट स्टेटस चेक करने के बाद फिर बाहर सड़क पर घुमने के लिए निकल गया ।                     घूमते हुए जब वह चौराहे पर पहुंचा तो उसे याद आया कि शिवानी की कोचिंग क्लासेस इसी एरिया में पड़ती है । करीब पौने छः बजे तक वह ऐसे ही टहलता रहा मानो उसे किसी का इंतज़ार हो । उस चौराहे पर गुजरने वाली गाड़ियों की गिनती वह ऐसे करता रहा जैसे कोई बच्चा आसमान के तारे गिना करता है । लगभग लगभग सारे ही नम्बर और अजनबी चेहरों को देखते देख

रंग और प्रतिबिंब

तुम्हारे दूर चले जाने के बाद  रात नहीं ढलती है ना ही सुबह होती है,  दिन तो होता है लेकिन वह केवल, रात का बदला हुआ रंग है । बदलती रात और बदलता रंग कोई उम्मीद नहीं, सिर्फ मौन और एक दर्पण ; जिसमें भी अपनी ही आँखो का एक, अपरिचित प्रतिबिंब दिखता है । तुम्हारे लौट आने से, रात के बदलते रंग के साथ रंग बदल जाए शायद, दर्पण में दिखने वाले प्रतिबिंब का भी ।                                     .....कमलेश.....

गुज़रना

मेट्रो स्टेशन पर बस का इंतज़ार करते हुए, मेट्रो के गुज़र जाने का गुमान नहीं होता । गुज़रना इंतज़ार का और तुम्हारा बिलकुल ही अलग-अलग होगा मेरे लिए, लेकिन सपनों के गुज़रने और जिंदगी के गुज़र जाने में अनगिनत समानताएं होंगी । तुम चाहो कभी मुझसे कुछ भी तो मैं केवल इतना ही चाहूँगा कि गुज़रो कभी तो ऐसे गुज़रना जैसे चुनावी वादा गुज़रता है ।                           .....कमलेश.....

ग़ुलामियत का कक्ष

हम सब जड़ हो चुके हैं और देख रहे हैं अपलक उस श्वेतपत की ओर, जंहा आजाद है कुछ काले वर्ण, जो हमें अपना ग़ुलाम बनाए हुए हैं हमारी सोच भी सिमट चुकी है अब उन्हीं के इर्द-गिर्द ही |   कमरे में खिड़की तो है लेकिन दृश्य के लिए ना कि दर्शन को, विचारों को तो बंदी बना चूका है वो उपाधिधारक, जिसके समक्ष हमारी सोच कठपुतली बनी हुई है | और हम सब झुझ रहें हैं, एक अदृश्य युद्ध से जो छिड़ा है हमारी आवाज़ और सोच के बीच | मजबूर हैं वे लोग जिन्हें किताबों ने कैद कर लिया है, कुछ नज़र नहीं आ रहा है उन्हें ऐसे ही वे अंधे ठोकर खाकर मार दिए जायेंगे |   सहसा मुझे दिखाई पड़ता है वह मजबूर वृक्ष, जो हाथ जोड़े खड़ा था मानव के समक्ष, फिर भी उसकी सांसें थामकर इस कक्ष को आकार दिया गया है |   मैं अब चाहता हूँ कि किताब के पीछे की मासूमियत को पहचाना जाये, ढूंढ लिया जाये वो दर्द जो अब तक अनदेखा किया गया विचारों की पराधीनता के चलते, उतार दिया जाये वो असहनीय बोझ, जिसको हम सब     अकारण ही ढोते चले आ

तुम और वेदांत दर्शन .....

तुम मेरे वेदांत दर्शन का, वह मूल प्रश्न हो जिसका उत्तर जानने पर, मैं समूचे ब्रम्हांड को जान सकूंगा । तुम सच्चिदानंद की वह अवस्था हो, जिसमें खुद को खोकर मैं सब कुछ पा सकता हूँ । तुम उस संसार का स्वरुप हो, जिसमें आत्मा एक जीवन का उत्सर्ग करने के बाद, दूसरे का इंतजार कर रही होती है । तुम वेदांत दर्शन में उल्लेखित वह आत्म-साक्षात्कार हो, जिसके मिल जाने से मृत्यु से पूर्व ही मोक्ष मिल जाता है । मेरी या तुम्हारी तरह प्रेम भी सबके वश में है, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं  कि सबके सब प्रेमी हो जायें ।                               .....कमलेश.....