ख़त
अपनी प्रेयसी के लिए ना जाने किस तरह खुद का कलेजा निकालकर रखता है, एक प्रेमी खुद के टुकड़ों को समेटकर, उसे ख़त लिखता है । एहसासों की फेहरिस्त बनाए नहीं बन पाती, कुछ बंदिशें अल्फाज लगाते हैं उसकी आरजुओं के आगे, फिर भी बिखेरकर अरमानों को वह उसे ख़त लिखता है । ख़त में सिमटे होते हैं कुछ आँसू, कुछ वादे, कुछ यादें, कुछ सिलसिले, जिनको लिखने की कभी उसकी हिम्मत नहीं होती, फिर भी ख़त इनको सहेजता है ; कुछ ख़त, ख़त खुद भी लिखता है । .....कमलेश.....