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अँधेरे में तुम

तराशता है जुगनू अपने पंख रात की ख़ामोशियों से, फिर ढलक जाते हैं किसी की पलकों से आँसू जब रात सीढ़ियाँ चढ़ रही होती है। मेरे शहर के कंधों पर वज़न बढ़ जाता है रात के होने का, जब तुम देखती हो आसमान खिड़की से आते रात के कालेपन में। चाँद अभी तक दिखाई नहीं पड़ा! रात के आँसू छिपाने गया होगा, तुमने देखा है कभी अपनी आँखों को रात के चाँद से पनपते अँधेरे में?                                     - कमलेश

काफी नहीं होगा

मेरे आसुंओं पर बड़ा देना यूँ रुमाल काफी नहीं होगा, हर बार की तरहा मेरे ग़म बाँट लेना काफी नहीं होगा। वक़्त बाँटने की कीमतें आसमान छूने लगी हैं अब तो, सिर्फ एक शाम के लिए यहाँ आना काफी नहीं होगा। बन्दिशें तमाम लगा दी हैं इस ज़माने ने मोहब्बत पर, अब एक ही बार इश्क़ में डूब जाना काफी नहीं होगा। तुम खड़े तो हो कब से मेरे इंतज़ार में उस पीपल के तले, पर मिलते ही लग जाना गले इस दफ़ा काफी नहीं होगा।      मैं ज़मीं पर बैठकर आसमान छूने की फिराक़ में हूँ, मुझको छोड़ देना पंछियों के बीच काफी नहीं होगा। ख़बर पढ़कर जब तुम्हारा दिल दहलने लगे हर रोज़, तो चाय पर बैठकर बतियाना फिर काफी नहीं होगा। सोचते हो ‘गर कि डोलती हुई कुर्सी अब गई के तब गई, तो खिड़कियों से देखते रहना तमाशा काफी नहीं होगा।  अपनी ज़िन्दगी के किस्से इत्मीनान से सबको सुनाने वालों, तुम्हारे तकाज़े की छाँव में बिठा लेना अब काफी नहीं होगा।  बाँट दिया है ख़ुद को कितने ही टुकड़ों में मैंने कब से, चार कंधे और एक कफ़न मेरे लिए काफी नहीं होगा।                                                             - कमलेश

तुम ख़ुद एक भाषा हो

    कुछ बातों को मुझे लिखने की ज़रूरत नहीं क्योंकि मुझे उनका साथ होना ज्यादा अच्छा लगता है ऐसी बातें लिख देने से मर जाया करती हैं। मैं तेरे किस्से कभी कभार लिखता हूँ इस आस में कि लिखने पर उन्हें मेरे जीवन का अमरत्व मिल जाएगा। तुम किसी हवा के झोंके सी हो जो बहुत ही धीरे से गुजरता है लेकिन हमेशा के लिए रह जाने वाली छाप छोड़ जाता है।       पहली ही मुलाक़ात से हमने काफी कुछ बाँटा जिसमें चाय, बिस्किट, खाना और ढेर सारी बातें शामिल हैं। तुम इस तरह से मेरे जीवन में घुली हो जैसे पानी में शक्कर, पिछले कुछ वक़्त में तुम्हारे बाजू में बैठकर तुमसे बतियाना मेरे ढेर सारे सवालों और उलझनों को सुलझा देने में इतना कारगर हो सकता है, यह मुझे लिखने के कुछ समय पहले ही मालूम हुआ। सफ़र के दौरान हुई बातचीत में सबसे खूबसूरत लम्हें वही थे जब मैं कविताएँ पढ़ रहा था और तुम उन्हें आने वाले समय में सँजोने के लिए रिकॉर्ड कर रही थी।              मेरी थकान को अपनी बातों और मुस्कुराहटों से हर लेना और कविताओं के जवाब में नज़रें चुराना, पास बैठकर भी कोई कविता सुनकर खो जाना और दूर जाने के बाद भी किसी तस्वीर के रास्ते वापस करीब आ

खुशियाँ, हम और दुनिया

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आकस्मिक चीज़ें जितनी खुशियाँ देती है, वह खुशी निर्धारित चीजों से कभी नहीं मिल पाती। 2 नवंबर को मिले एक व्हाट्सअप मैसेज ने पिछले 5 दिनों में जितनी खुशियाँ, हँसी और यादें दी हैं वह मुझे ढूँढने पर तो कभी भी नहीं मिलती।                              मैं पिछले दिनों दीवाली पर घर गया था वहाँ प्रदूषण, न्याय और राजनीति जैसे मुद्दों पर काफी चर्चा का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला, क्योंकि ये चर्चा युवा दोस्तों और गाँव के लोगों के बीच बैठकर हुई। ऐसी घटनाओं से यह विश्वास और भी गहरा जाता है कि बदलाव किया जा सकता है और वह भी लोगों के साथ मिलकर, युवा दोस्तों में बहुत ऊर्जा है जिसका उपयोग वह सही दिशा में करना चाह रहे हैं, मार्गदर्शन जिस तरह अपने सहयोगियों से मुझे मिलता रहा है यह कवायद अब गाँव में भी शुरू हुई है कि जिस किसी को भी कोई सहयोग चाहिए वह सबसे संपर्क स्थापित करे ताकि समय पर काम हो सके। गाँव की बदलती हवा ने मुझे अपने सपनों और ज्यादा दृढ़ता से देखने की हिम्मत दी है।         Source - Labhya.org           गाँव से दिल्ली की वापसी में मैं पिछले 4 दिन मथुरा के पानीगाँव में बिताकर लौटा हूँ,

तेरा होना

जितनी बार में चला तन्हा उन रास्तों पर जो तेरा पता बताते हैं, तेरी खुशबुओं को वहाँ महकते पाया है; ठहर के जहाँ तूने कभी खनकाई थी अपनी हँसी जम जाते हैं मेरे पाँव वहीं जैसे तूने ठहरने के लिए कहा हो। तेरे बिन सुना सा लगता है आँगन मेरे आशियाने का, जो तेरे होने से चहकता रहा है; बिन किसी वादे के चल देना बनकर हमसफ़र इतना आसान तो नहीं ही होता, जितनी आसानी से तुझे पा गया था मैं। हर वो चीज़ जो हमारे साथ रही मुझे कारगर लगती है अब, ख़ुद को समेटने के लिए; इस दिवाली मैं उन सब को कुमकुम लगाऊँगा।                                         - कमलेश

हमारी जीवनशैली और दुनिया

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Source- Khabarindia.com यह ख़बर लगभग हर उस व्यक्ति को पता होगी जो खबरें पढ़ता है कि दिल्ली में १ से १० नवम्बर तक आपातकाल (प्रदुषण का आपातकाल) घोषित किया गया है क्योंकि वहाँ की हवा दुनिया की सबसे ख़राब हवा है जोकि न तो सुबह की सैर के लायक है और न ही एक गहरी साँस लेने के | इसका मुख्य कारण है आसपास के राज्यों में जलाये गए फसलों के अवशेष और वहाँ के वाहनों का धुआँ, फिर भी लोग केवल एक दूसरे पर आरोप लगाते दिखाई पड़ते हैं | जानकारी के लिए यह बता दूँ कि २ करोड़ की दिल्ली की आबादी के लिए १ करोड़ वाहन हैं, एकमात्र शहर जहाँ लोग स्टेटस के लिए निकल पड़ते हैं सड़कों पर बगैर यह सोचे कि कल क्या होगा!  हवा की खराब हालत को देखते हुए ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में केवल २ घंटे पटाखे जलाने का  आदेश दिया है और बाकि राज्यों से यह अपील की है कि वह कम से कम प्रदुषण की ओर कुछ कदम जरूर बढ़ाएं | Source-Bharatkhabar.com                          हर वह शख़्स जो इस अपील या आदेश जिस तरह भी इसे देखते हैं, यह जान लें कि केवल प्रदुषण से ही भारत में हर वर्ष 13.56 लाख लोगों की मौत हो जाती है जबकि 2015 में यह आ