अनुभव और आवश्यकताएँ

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही,
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही|
                                               - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ 
Source - Parwarish Cares

हाल ही में मैं 'लैंगिक साक्षरता' पर एक प्रशिक्षण में शामिल होने का अवसर मिला। जिसमें टीम आओ बात करें के लिए जुटे प्रतिभागियों के साथ हम सबने बहुत सी यादों और एक वातावरण को सबके साथ सह-निर्मित किया। उस वातावरण से ऊपजे माहौल में लोगों को 'सेक्स', 'यौन शोषण' और हमारे समाज की निषिद्ध चीजों के समूह पर बहुत ही आराम से बात करते देखना एक सुकून देने वाला अनुभव भी है। आओ बात करें की टीम ने मुझे अपने स्कूल शिक्षा के वर्तमान पाठ्यक्रम में 'सेक्स-एजुकेशन' और 'वैल्यू-बेस्ड-एजुकेशन' को समाहित करने वाले अपने विचार पर दृढ़ रहने का हौसला दिया है। हमारे समाज के कुछ सवेंदनशील लोगों द्वारा समय की आवाज़ को सुना जा रहा है और वे इस पर काम भी कर रहे हैं लेकिन समय की आवाज़ सुनना बाकियों के लिए भी आवश्यक हो गया है। हमें इस समय में खुद से एक प्रश्न पूछने की जरूरत है कि "क्या 'सेक्स' और 'यौन शोषण' जैसी चीजों के बारे में घरों की चार दीवारों में या कानों को मिलाकर खुसुर पुसुर करना भर बदलाव ला सकता है?"           
जिस तरह से हमारे आसपास की चीज़ों और माहौल में पिछले 15 वर्षों में चीजें बदली हैं, उससे निपटने के लिए वास्तव में इन सब मुद्दों पर बातचीत बहुत ज्यादा जरूरी हो गई है। और यह उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना अपने बच्चों से बाकी सब चीजों के बारे में बात करना। हम एक समाज के रूप में हमारे साथी और बच्चों के साथ 'सेक्स' और 'यौन दुर्व्यवहार' के बारे में बात नहीं करना चाहते, लेकिन उम्मीद करते हैं कि एक दिन बलात्कार, उत्पीड़न और यौन दुर्व्यवहार जैसी गतिविधियां खत्म हो जाएंगी। पर कैसे? क्या हम अब तक ऐसा कुछ सोच पायें हैं जिसके माध्यम से हम खुद को सशक्त बना सकते हैं और साथ ही आगामी पीढ़ी को भी, जिसके माध्यम से वे खुद को बचा सकने में सक्षम हो सकें।     

Source - Parwarish Cares

जमीनी तौर पर सक्रिय रूप से लगभग हर प्रकार की गतिविधियों में शामिल होते रहने के तौर पर और आओ-बात करें अभियान का हिस्सा बनकर, मुझे कई चीजों के बारे में पता चला है जिसके माध्यम से हम खुद को और दूसरों को बदल सकते हैं। तो आइये हम हमारे तथाकथित सुसंस्कृत समाज के निषिद्ध मुद्दों के बारे में बात करते हैं और इससे जुड़े मिथकों और गलत धारणाओं को हटाने की प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं।
शुक्रिया शब्द कभी भी परवरिश (www.parwarish.co.in) के द्वारा मेरे और कई युवाओं तथा बच्चों के जीवन में किये गए बदलाव के समक्ष न्याय करने में सक्षम नहीं है, यह एक यात्रा है जिसमें हम सभी एक साथ चलते हैं, बढ़ते हैं और सीखते हैं।
प्रेम और शुभकामनाएँ :-)
                                                                    - कमलेश 

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