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आभार, ज़िन्दगी और मैं -

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हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहां हर कोई अपने जीवन में किसी न किसी चीज का पीछा कर रहा है। एक स्थान से दुसरे की ओर बढ़ने की इस यात्रा में हम अपनी भावनाओं , जरूरतों , लालच , आकांक्षाओं और अन्य कई चीजों के साथ काम करते हैं , जिसके परिणाम में हम आनंद , खुशी , तनाव , दुःख , दबाव , क्रोध , शांति , दोष , कृतज्ञता जैसी कई सारी भावनाओं को महसूस करते हैं। मैं कुछ साल पहले स्वामी विवेकानंद को पढ़ रहा था , उन्होंने अपने एक भाषण में कहीं उल्लेख किया था कि दोषारोपण का खेल खेलने के बजाय हम एक बार ठहर कर यह देख सकते हैं कि हमारे भीतर से निकलने वाली हर चीज का स्रोत क्या है! यह विचार मुझे बहुत ताकत देता रहा जब मैं अपनी सीमाओं को पार कर रहा था और लोगों की कहानियों के साथ अपने व्यक्तिगत विकास के लिए एक रास्ता खोज रहा था। दो साल पहले एक आवासीय कार्यक्रम के दौरान , मुझे आभार व्यक्त करने की ताकत का एहसास हुआ कि यह उस दुनिया में जादू कैसे पैदा कर सकता है जिससे हम जीना चाह रहे हैं!                       डेढ़ साल से , मैं कृतज्ञता के कुछ छोटे छोटे अभ्यास कर रहा हूं , जिनसे मैं सड़कों पर चलते हुए , क

प्रेम की आवश्यकता

दो सितारों की गुफ्तुगू सा एक रिश्ता पल रहा है मेरी पलकों के नीचे, न कोई वादा, न कोई मंज़िल बस सफ़र में चल रहा है कब से; कभी कोई किताब पढ़ता हूँ तो उसमें भी इसी की कहानी होती है, सुनता हूँ गर’ किसी के किस्से उनमें भी यही झलकता है. खेतों में फसल को पानी देते हुए, जानवरों के लिए चारा लाते हुए, किसी के हक़ में आवाज़ उठाते हुए, किसी कविता को लिखते हुए, ज़िन्दगी के किस्सों को सुनाते हुए, बदलाव की प्रक्रिया को अंगीकार करते हुए, दुनिया की राहों में ख़ुद को ढूंढते हुए, मैं नहीं खोज पाया आज तक और कुछ हर दफ़ा एक जवाब क़दमों को आकर्षित करता है कि दुनिया, मुझे और इस रिश्ते को प्रेम के साथ रहकर जीने की आवश्यकता है.                                                   - कमलेश

प्रेम और ख्वाहिशें

कौन चाहता है कि चाँद किसी रात आसमान छोड़ कर छुप जाए; किसी गहरी पहाड़ी के पीछे, मैं उसके बालों को देखता हूँ तो चाहता हूँ कि ये ख़्वाब सच हो. दुनिया में पल रहे सारे सवाल इकठ्ठा करके मैं, उनको उसकी हँसी सुनाना चाहता हूँ: उसके मुस्कुराने भर से दिक्कतें हल हो जाया करती हैं. प्रेम में घूम रहे ब्रम्हांड के सारे ग्रह एक दिन आकाशगंगा में विलीन हो जाने का ख़्वाब देखते हैं, और मैं चाहता हूँ कि निहारता रहूँ उसके चेहरे को अपने विघटन के आख़िरी क्षण तक, लिख दूँ उसके लबों पर एक कविता प्रेम की बूँद के खप जाने से पहले, वक़्त को उसके लौटने तक रखूँ बगीचे के नए उगते गुलाब के नीचे, सुना है वक़्त में अधूरी छुट गई ख्वाहिशें नई ज़िन्दगी की शुरुआत बनकर लौटती हैं. -        कमलेश

खुशियों का रास्ता

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खुशियों का रास्ता दिल की राहों से होकर जब घर की दहलीज़ पर पहुँच जाए तो लगता है कि ज़िन्दगी में ठहराव और प्रेम एक साथ जिया जा सकता है. वक़्त से कोई कितना कुछ माँगेगा जब वह अपने मूल्यों पर जीते हुए वे सारे सवाल और रिश्ते सुलझा ले जिनसे जीवन के रास्ते छाँव और सुकून से भर जाया करते हैं. मैं पिछले महीने दीवाली के लिए घर पर था और यह मेरी दिल्ली आने के बाद की सबसे लम्बी घर पर बिताई हुई छुट्टियाँ थीं। इस बार जब मैं घर पहुँचा , तो कुछ ऐसा था जो मुझे हर क्षण कहता रहा कि यह समय ख़ास है और मैं इसे और अधिक सुंदर बना सकता हूँ वह भी मेरे प्रेम और समर्पण के तरीकों से. इस दफ़ा यह पहली बार हुआ कि मैंने अपने परिवार के लगभग सभी सदस्यों के साथ यादगार बातचीत की , चाहे फिर वह मेरी पापा के साथ हुई बातचीत हो या मम्मी या भईया-भाभी के साथ जीवन यात्रा के किस्से सुनना और सुनाने वाला समय. सब कुछ इतना सहज और सुन्दर था कि सिर्फ वक़्त के बहाव में पूर्णता के साथ संतुष्ट कर देने वाले स्तर तक स्थापित हो गया. एक बात मैं जीवन के इस पड़ाव पर अपने प्रेम की ताकत के साथ स्वीकारना सीख गया हूँ कि एक समय ऐसा भी रहा है जीवन में जब

मुलाकातें, यात्रा और प्रेम

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मुलाकातें हमेशा ही खूबसूरती की नींव रखती है. तकरीबन ३ सालों के बाद राहों ने मुझे इंदौर की गलियों से रूबरू करवाया और दिल की तमाम ख्वाहिशों का ज़खीरा अपने पूरेपन के एहसास में खोकर लौटा. पिछले ३ साल मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से काफी अहम और प्रेरणादायी रहे हैं, जितना कुछ इन वर्षों ने दिया है वह अमूल्य है. इन राहों के सफ़र में कुछ दोस्त अपनी राह पर चलकर इस खूबसुरत शहर आ चुके थे, जिनसे मिलने की फिराक़ में मैं यहाँ पहुँच गया. दोस्तों के साथ बैठकर अपने और उनके जीवन की यात्रा के बारे में जानना और उनके अंतर्मन को सुनना मेरे लिए एक नए आसमान के द्वार खोलने जैसा अनुभव रहा है. चाहे फिर रिंग रोड पर विवेक और गजेन्द्र के साथ काम और व्यक्तिगत जीवन की बाते हों या फिर उनके जीवन के ३ वर्षों में बीते हुए वसंत का किस्सा: गजेन्द्र और विवेक को ३ सालों के बाद मिलना और उनमें आये हुए बदलाव का साक्षी बनना मेरे लिए सौभाग्य से कम नहीं है. ऐसी मुलाक़ातें वक़्त को कीमती बनाती हैं.   नवोदय के साथी रहे शिवपाल, जितेन्द्र और ईश्वर के साथ का वक़्त अपनी अलग छाप रखता है और यह एहसास एक सुकून देता है कि साथी अपने दिल की आवाज़ को

तुम्हारा अस्तित्व

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यह दुनिया छोटी लगने लगी है मुझको, एक  शख्स पर इतना ठहर गया हूँ  मैं!                                               - नागेश इंतज़ार की परिभाषा को मैं, उसकी आँखों को देखने के बाद हाशिये पर रख देता हूँ। इतना बड़ा आसमान लेकिन फिर भी अपने आप तक पहुँचने के लिए उसके पास कोई तरीका नहीं है, मैं रख देता हूँ अपना सर उसके हाथों में और मिल जाता हूँ ख़ुद से उसके ज़रिये। वह ठहरती है दो पल के भ्रम में दो पहर तक तो ऐसा लगता है दिन को थोड़ा और बड़ा होना चाहिए। मैं जब भी उसके क़रीब होता हूँ मुझे यह दुनिया ऊन का गोला लगती है जिससे मेरी चाह है कि इसका स्वेटर बुनकर चाँद को ओढ़ाया जाए। एक ख़याल को जीते हुए इतना अरसा हो गया मुझे, आज जब उसे पीछे छोड़ा तो वह उसके बालों में लिपटे क्लिप तरह इतराता हुआ दौड़ पड़ा मेरी ओर। इतना दूर आ चूका हूँ चलते चलते कि अब लौटने के लिए मुझे पते की नहीं किसी के क़दमों के निशां की ज़रूरत है, वह भी छोड़ जाती है अपनी ख़ुशबू बजाय पैरों के निशां के।                                                             अर्जुन ने गीता को युद्ध-भूमि में सुनकर वैराग्य पा लिया था, मैं उसके प्रेम की धरा

मैं और ख़्वाब

मैं देख रहा हूँ खिड़की से लटकते इन सारे अधूरे अजनबी ख़्वाबों को, ये सपने जो कभी मेरे नहीं रहे ये लोग जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा, अचानक से किसी रोज़ आएँगे मेरे शहर और माँगेगे अपनी हक़ीक़त के सवालों के जवाब; मैं रहूँगा उसी तरह ख़ामोश जिस तरह अपने ख़्वाब के खोने पर हो जाता हूँ, तब मैं याद करुँगा वो सारे क़िस्से, जो ख़्वाब को फिर देखने के लिए सुनाए थे मैंने ख़ुद को पास बैठाकर। मैं नहीं जानता कि कोई क्या चाहता है मुझसे, मैं जानता हूँ केवल इतना ही कि ढूँढ लेगी मेरी राहें हर उस पल को, हर उस शख़्स को, जहाँ तक मुझे पहुँचना लिखा है।                                       - कमलेश

हमारा प्रेम में होना

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रास्तों के पड़ाव ज़िन्दगी के मायने समझाते हैं और मैं हमेशा से ऐसे पड़ावों की तलाश में रहा। तुम आयी मेरी राहों के लिए एक ऐसा ही पड़ाव बनकर जिसने मुझे थाम लिया अपने सारे रंगों और खुशबुओं के साथ। तुम्हारा साथ रहना मुझे एक नएपन के एहसास से भर देता है। जब तुम थामती हो मेरा हाथ तो मैं अपने आप को गंगा में खड़ा हुआ महसूस करता हूँ। मैं नहीं जानता कि हम कब तक इस तरह शहर के कोनों में मिलते रहेंगे लेकिन इतना यक़ीन ज़रूर है कि हमारे मिलने में प्रेम और विश्वास की खुशबू हर वक़्त आती रहेगी। तुम्हारा सवाल करना मुझे तुरंत सारे आसमानों से ज़मीन पर ले आता है, जब तुम खिलकर अपना ख़्वाब पूरा कर लेती हो तो लगता है कि मोक्ष का मज़ा फीका पड़ जाएगा।        तुम्हारे दाहिने चलते रहने पर हवाओं ने मुझे महसूस करवाया कि हम कितने कीमती हैं एक दूसरे के लिए! ज़िन्दगी की उम्र तो नहीं पता लेकिन इसके रहने न रहने पर हम एक दूसरे को जीते रहेंगे इतना ज़रूर जानते हैं। जब तुम हँसती हो तो दिल करता है कि पहाड़ों में बर्फ़ गिरने लगे और मैं तुम्हारे साथ उसको निहारता रहूँ। जब जब तुम अपने गले से मुझको लगा लेती हो मेरे जवाबों की धुंध में तो ऐसा

ज़िन्दगी और प्रेम की जोड़ी

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जब ज़िन्दगी की शुरुआत होती है, तब हमारे पास अपने रिश्ते चुनने का कोई विकल्प नहीं होता, लेकिन ज़िन्दगी के रफ़्तार पकड़ने के बाद भी शायद हमारे पास वह विकल्प नहीं होता. अटपटा लग सकता है सुनने में लेकिन हकीक़त यही है कि हम कोई भी रिश्ता नहीं चुनते अपनी ज़िन्दगी में, रिश्ते हमको चुनते हैं उनको जीने के लिए.                                                   भावनाओं का समंदर कितना गहरा है कोई नहीं जानता फिर भी सब डुबकियाँ लगाते हैं, हम नहीं जानते कि हमारी एक मुस्कान या एक शब्द किसी के जीवन में क्या बदलाव ला सकता है. ज़िन्दगी ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन जितना कुछ इसके साथ रहकर सीखा है वह बहुत कमाल का है. रास्ते अपनी पहचान हमसे तब तक छुपाते हैं जब तक हम समर्पण न कर दें और समर्पण का पौधा विश्वास के बीज के बिना कभी भी नहीं उग सकता. विश्वास और समर्पण जब एक-दूजे में समाते हैं तब प्रेम पैदा होता है और प्रेम अपने कई स्वरुप में हमसे हर रोज़ बहता है.          प्रेम का बहाव हमारी बातों से शुरु होकर हमारे मौन पर रुकता है या शायद वहाँ भी न रुकता हो: कौन जानता है कि सच्चाई क्या ह

कृष्ण

तुम्हारे हँसने पर गर' तुम्हारी खिलखिलाहट में गूँजे वंशी, तो दुनिया से कह दूँ कि कृष्ण इंतज़ार में है तुम्हारे। रुक जाने पर तुम्हारे बैरागी हो जाएँ जो ये हवाएँ, तुम जान जाओगी कि वृंदावन सिर्फ वृंदावन तक सीमित नहीं। ब्रह्मांड की असीम कालिमा से जल उठेगा उस दिन एक दीपक, जब वक़्त लिख देगा विश्व के लिए एक और गीता। तुम जब जब करीब होती हो यह इंद्र रूठ जाता है मुझसे, तब मन करता है कि इसके विरोध में गोवर्धन उठा लूँ। प्रेम के ढाई अक्षरों में छुपा मोक्ष, नहीं जान पाएगी यह दुनिया इतनी आसानी से; मैं तब खोकर अपना स्वरूप पी लूँगा शिव की तरह तमाम नफ़रत और द्वेष दुनिया का, और बन जाऊँगा अमर लेकिन इस बार मेरा उपनाम 'नीलकंठ' नहीं 'कृष्ण' होगा।                                                 - कमलेश

तुम

तुम, इसके सिवा कोई शब्द क्यों नहीं है दुनिया में कि जिसके उपयोग से तुम्हारे संबोधन को चरितार्थ करूँ मैं! तुम्हारा अस्तित्व उस नीम के पेड़ सा है जिसे मैं अपनी सेहत, सीरत और आराम के लिए चाहता हूँ, शायद तुम नहीं जानती किसी बात को, यह कहना झूठ नहीं है क्योंकि तुम वाकई नहीं जान पाओगी कभी कि ढाई अक्षरों के एक शब्द में कैसे मैंने अपनी दुनिया और उसकी सारी ख़्वाहिशें सजा रखी है। मेरी ख़्वाहिश है कि तुम न जानो उसे, जब तुम बैठो सुकून की गोद में तो अपने हाथों की कोमलता उस शब्द के माथे को सहलाने के लिए बचा कर रखना: ताकि तुम परिभाषा के रिवाज़ परे रखकर, पहुँच सको ब्रह्माण्ड के उस कोने में जहाँ दो आँखों, अनगिनत ख़्वाहिशों, बच्चों और पेड़ की दुनिया रहती है।                                                       - कमलेश

प्रेम और हम

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वो मिली थी मुझसे जब पहली दफा तो कभी सोचा नहीं था उसने कि यहाँ तक पहुंच जाएगी ज़िन्दगी ख़्वाबों के पहियों पर दौड़ते हुए, और न ही मैंने कभी ऐसा पुलाव पकाया था अपने दिल में। वो खिलखिलाती है तो सोचता हूँ कि सारी दुनिया को म्यूट पर डाल दूँ। ऐसी ही एक हँसी ने खींच लिया मुझको उस तक, और तब से मैं बस खिंचता चला जा रहा हूँ, कहाँ! यह अब तक रहस्य है। मैंने कहा था उससे कि मेरा इंतज़ार करते हुए पीपल के नीचे न खड़ी रहे, लेकिन उसने मेरी एक न सुनी, उसके न सुनने को प्रकृति ने इतनी गंभीरता से लिया कि जब भी मिलता हूँ उससे वो पीपल के पेड़ के पास ही मिलती है। पहाड़ों ने मुझे इतने ख़त लिखे लेकिन मैं उनके जवाब देने में आलस ही करता रहा ताउम्र, पिछले दिनों उसने ख़त लिखा मुझे और भेजा पहाड़ों के ज़रिए। पहाड़ इस बार मुझे उठा ही ले गया अपने जवाबों की ख़्वाहिश में, ज़िन्दगी ने भी समर्पण करते हुए समूचा दायित्व खुला छोड़ दिया प्रकृति के जिम्मे।  Source - Stalktr.net         एक रात सड़क पर चलते हुए जब मैं किसी आवाज़ को सुनकर रुक गया तो उसने हाथ थाम लिया मेरा हौले से आकर, मैंने नज़रें उठाई ऊपर और मुस्कुराकर उसे गले लगा लिया: ह

इंतज़ार और तुम

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तुम देखती हो थोड़ी सी गर्दन झुकाकर मेरी ओर तो ऐसा लगता है कि सूरजमुखी देख रहा है सूरज को। सातों आसमान के पार से जब गूँजता है तुम्हारा स्वर तो इतनी ज्यादा ख़ुशी होती है कि मैं जून में भी नंगे पैर चल लेता हूँ। तुम मिली इस दफा मुझे पहाड़ों की गोद में, जहाँ मुझे कई जन्मों से आना था शायद: वहाँ आकर तो यही लगा था मुझे, तो घर वापसी जैसा भाव पैदा हो गया। तुम्हारे साथ प्रकृति को इतना सहज पाता हूँ जैसे कि किसी ने इसकी जंज़ीरें खोल दी हों, तुम खिल उठती हो जब पानी की चंद बूँदों से तो मेरा मन करता है कि उतार दूँ बादलों का तमाम पानी जो तुम तक पहुँच कर अपना जीवन सफल कर ले। जिस तरह दुनिया संजो रही है सारे सूत्र और समीकरण, मुझे ऐसा लगता है उसने तुम्हें पहचाना ही नहीं अब तक, कभी कभी जी करता है कि बिग बैंग थ्योरी वाले वैज्ञानिक को तुमसे मिलाऊँ, ताकि वो अपनी भूल सुधार सके। तुम्हारे साथ रहता हूँ तो अकेलेपन के सारे सिद्धांत मुझे खोखले लगते हैं, तुम जब डर जाती हो किसी जानवर से, उससे अपना प्रेम जाहिर करते हुए तो तुम्हें भँवरा बनकर छेड़ने को जी करता है।            उस दिन जितनी सहजता और ध्यान से तुमको स्कूटी

सुनो दोस्त!

मनु के लिए - (14-जुलाई-2019) कुछ रिश्ते नदी में बहते फूलों की तरहा होते हैं, मैं बहकर आ गया तुम तक ऐसी ही एक आनंदमयी लहर के साथ, तुम्हें देखकर लगा नहीं मुझे कि मिला हूँ तुमसे मैं सिर्फ कल, ज़िन्दगी ने इतना अजनबी बना दिया है कि हर चेहरा जान का टुकड़ा लगता है। तुम्हारे साथ रहकर मुझे महसूस हुआ कि रिश्ते लिखते हैं ख़ुद की बुनियाद, तुमने सिखाया कि साथ रहकर चलना और साथ जीने में कितनी सारी समानताएं और अंतर हैं। तुम्हारा मिलना अच्छा है दोस्त इस भीड़ भरी दुनिया में, तुम आये तो लगा कि बारिश अपने घर आ गई, दो पल ठहरकर चले तो आसमानों की परिभाषाऐं खुल गईं: मैं रहूँगा वहीं ज़िन्दगी के मोड़ पर खड़ा, तुम देखोगे कभी भी मुड़कर 'गर तो पाओगे एक हँसता सा चेहरा, वादा तो नहीं कर पाया आज तक कोई लेकिन इतना यक़ीन तुम्हारे लिए ज़रूर है तुमसे, कि मिलेंगे जब भी दूरियों के पार तो गले लगकर सारी दूरियाँ दफ़न कर देंगे।                                                     - कमलेश

ज़िन्दगी का पर्याय - घर

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ज़िन्दगी के रास्तों में ख्वाबों की खटपट जारी है पिताजी जब घर से फ़ोन करते हैं, तो चेहरे पर मुस्कान तारी होती है और दिल में एक नया ख्याल पनपता है, बहुत दिन हुए माँ की आवाज़ सुने भी; सपने तो सारी दुनिया एक जैसे देखती है, बस चलते हुए घड़ी का वक़्त हाथ में नहीं रहता। मैं खींच रहा हूँ, पेड़ की जड़ में अटकी रस्सी घर की ख्वाहिश है कि देखे मेरी सूरत, मैं लेकिन लिपट कर सोना चाहता हूँ दादाजी के पुराने कम्बल से; चार नए आम के पेड़ भैया-भाभी ने लगा दिए हैं घर के आगे, बस पिताजी और माँ के साथ नीम के नीचे रखे तख़्त पर बैठ चाय पीना बाकी है: कुछ रातें चूल्हे के सामने बैठकर, बतियाना चाहता हूँ जी भरकर भैया-भाभी से। बच्चों के साथ मिट्टी में खेलते हुए खुद को भुला देना चाहता हूँ, आम तोड़ने हैं कभी उचककर मुझको जब कोई ज़िद करे कि आम चाहिए उसे। ज़िन्दगी से चार ख़्वाब मैं अपने हक़ की तरह ले लूँगा, आम, नीम, चाय, तख़्त और बातें मेरे बच्चों से ले लिया है मैंने ये उधार, प्रेम की परछाईयाँ जो खनकती है मेरे पहलुओं में, चाहता हूँ कि मुझे चाँद की तरह देखने वाली लड़की के हिस्से में भी बराबरी से

कवितायें (दक्षिण यात्रा)

कविता - १ एक पगडंडी भाग रही है अपनी जान बचाने दौड़ती हुई रेल की पटरियों के साथ; शायद कोई पक्की सड़क, उसका पीछा कर रही है। ________________________________________ कविता - २ एक नज़र ने देखा मुझको दूरी के दूसरे छोर से, क्या चाहा था उन आँखों ने झुकाए नज़र अपनी यही सोचता हूँ; प्रेम की चाह में जीने वाले सुन लें, इस दुनिया में विश्वास की कमी है अपने दिलों को भरोसे से सींचते रहना।                                                - कमलेश

वसीयतनामा

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किसी भी सफ़र के समय दो भागों में बँट जाती है दुनिया, मैं बन जाता हूँ दर्शक ताकि बचा हिस्सा दर्शन हो जाये, दार्शनिक का कोई अस्तित्व नहीं कहानी में: सब ढूँढ रहे हैं खुलापन पैरों में जंज़ीरों को ढोते हुए, उजाला दीखता तो है आँखों में पलकों में जमे हुए अँधेरे के पीछे। मैं चलता हूँ आसमाँ के नीचे जो घूरता है हर कदम मुझे, साथ चल रही लड़की कहती है दूर जाते हो तुम तो आँखों में बादल छा जाते हैं, मैं कहता हूँ  हाँफती धरती और घूरता आसमान, मौन से प्रतिपल होता संवाद और पलकों में लिपटा इंतज़ार प्रेम का दूसरा नाम है। दो हिस्सों में बँटते से सफ़र में झाँकता हूँ खिड़की से बाहर, तो दुनिया दीखती है नई सी जहाँ इंसान की कमी लगातार बढ़ रही है जहाँ सपनों का अकाल चल रहा है, मेरे हमनफ़स मेरे वसीयतनामे में मिलेंगे दो नाम: पहाड़ की गोद में बसा जंगल और मोर पंख रख पाओ सहेजकर तो रखना।                                           - कमलेश

तुम्हारे गले लगकर

तुम्हारे गले लगकर, मैंने जाना कि ख़ुशी, सुकून, प्रेम और इंतज़ार को किस तरह जिया जाता है! तुम्हारे हाथों में अपने हाथों को छोड़कर, मैं जान पाया कि तरंगों का जीवन क्या होता है! तुम्हारे होंठो को अपने होंठो से छूकर, मैं समझ पाया कि हमने कितनी बातें नहीं की इतने वर्षों में! तुम्हारा साथ होना ही मेरे लिए मोक्ष है, फिर उसमें दूरियाँ हो या नजदीकियाँ मुझे कोई अंतर दिखाई नहीं देता, शायद इसे ही ब्रह्माण्ड ने प्रेम कहा है.                                         - कमलेश

महा मिलन

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Source - Pintrest.com दि वास्वप्न लगती हुई वह रात जुगनुओं ने पा ली , साँझ के अंतिम क्षणों को बींध कर माला बना ली: उस क्षणिक सी चाँदनी में पाते रहे सब स्वर्ण रत्न अस्तित्व खोते उन अधर का बढ़ता घटता सा जतन। पूर्णिमा का दूजा चाँद चल दिया पूर्ण से शून्य को बाँधे रहे समूची राह में दो हाथ अपने दो हाथ को: नित् खोते रहे दोनों ही तन  पाते रहे हर क्षण नया जीवन बिसरती रही सारी खुशबुएँ पाने को एक अनवरत लगन; रह रह कर मूंदते दो नयन और , फिर और की प्यास में , खिल खिल उठा सारा जीवन कुछ गहरेपन की तलाश में: बेकाबू होते रहे मधुकलश जो थे साँझ तक जड़-स्थिर , रीत कर भी भरते रहे सब घूँट डूबती निशा में होकर निखर ; Source - Daily Express सारे अनजाने बंधनों का कोई भी पट न रहा छूटा , कोई न बचा तार ऐसा जो आवेग के बूते न टूटा: गढ़ता परिभाषा मौन की झंकृत स्वर पायलों का दुलारता तन का हर कोना प्रेम से सम्पूर्ण दंश सलोना ; लिखते रहे हर बीतते पहर मौन , शोर और सृजन टूटते रहे आवेग के संग दर्द , मुस्कानें और तन

प्रेम फलित होता ही तब जब जीत कर रह जाए हारा

प्रेम के वशीभूत होकर लिखता जा रहा है वह निरंतर, है घिरा सब ओर से भीड़ भाव और राग से, खोता जा रहा नित् ही पर हर क्षण अजर एकांत में: तुम रुको क्षण भर देखो दीखता क्या तुम्हें पन्नों पर! ओझल होती सूर्य-किरणें या चाँद की चंचल पोथी पर! मूँद लो उजले नयन यह अनुराग-चक्षु खुल जाने को है, प्रेम की नौका लिए हे वंशी ख़ुद कृष्ण फिर आने को है; ज्वार उठेगा नभ में हो ज्वलंत घट घट पसरे चिर आनंद में, गुंजायमान होंगे वंदन गीत इस अमिट भाव के अभिनन्दन में: स्पर्श करना लाँघकर तुम सारी सीमाएँ देह पर की, याद रखना किंतु तुम यह है होने वाला अंतिम ध्येय, न रहोगी फिर कहीं तुम जग ढूँढता रह जाए सारा, प्रेम फलित होता ही तब जब जीत कर रह जाए हारा।                              - कमलेश

दुनिया की जरूरतें

आया तो उड़कर एक ही पत्थर था, लेकिन उसने दो आंखों में अँधेरा और साथ की दस नज़रों में खून भर दिया। रास्ते तो लगे ही थे दस साल की पीठ पर टंगे बैग की हिफाज़त में, लेकिन अभी अभी इंसान से जानवर बने हाथों ने: उन रास्तों की ज़िंदगी और दस साल की साँसों का दम घोंट दिया। बहुत सोचा था एक दिल ने कि ख़्वाहिशें बाद उसके कौन पूरी करेगा! लेकिन उसकी आवाज़ और आँखों की चमक नहीं जा पाई दहलीज तक: चार आँखों के ख़्वाबों ने, दुनिया से दो पलकों के दिये बुझा दिए। मैं रुक जाता हूँ दो नन्ही नज़रों के सवालों पर, मैं सहम जाया करता हूँ हरियाली से आती आवाज़ के कारण, दुनिया की दो ज़रूरतें ही बाकी सारी ख़्वाहिशों का ज़रिया है यह एक मित्र की वह पंक्ति पढ़कर जाना: जिसमें लिखा है कि "शिक्षित बच्चे और पेड़ इस दुनिया की सबसे बड़ी ज़रूरत है।"                                               - कमलेश शुक्रिया दादा (नागेश्वर पांचाल)❤❤