कृष्ण
तुम्हारे हँसने पर गर' तुम्हारी खिलखिलाहट में गूँजे वंशी, तो दुनिया से कह दूँ कि कृष्ण इंतज़ार में है तुम्हारे। रुक जाने पर तुम्हारे बैरागी हो जाएँ जो ये हवाएँ, तुम जान जाओगी कि वृंदावन सिर्फ वृंदावन तक सीमित नहीं। ब्रह्मांड की असीम कालिमा से जल उठेगा उस दिन एक दीपक, जब वक़्त लिख देगा विश्व के लिए एक और गीता। तुम जब जब करीब होती हो यह इंद्र रूठ जाता है मुझसे, तब मन करता है कि इसके विरोध में गोवर्धन उठा लूँ। प्रेम के ढाई अक्षरों में छुपा मोक्ष, नहीं जान पाएगी यह दुनिया इतनी आसानी से; मैं तब खोकर अपना स्वरूप पी लूँगा शिव की तरह तमाम नफ़रत और द्वेष दुनिया का, और बन जाऊँगा अमर लेकिन इस बार मेरा उपनाम 'नीलकंठ' नहीं 'कृष्ण' होगा। - कमलेश