ग़ज़ल
कोई लम्हा ठहरा नहीं जम के एक अरसे से यहाँ, आँखें बिछी हुई थीं कब से तुम्हारे इंतज़ार में यहाँ। तुम आये काली घटाओं के साये में मिलने मुझसे, बदलकर रख दिया तस्सवूर तुमने पल भर में यहाँ। रुके, थमे, देखा, पढ़ा, जाना, सुना और कहा कुछ, फिर तो मैं डूबा ऐसे कि कोई खोया नहीं वैसे यहाँ। मुलाक़ात, ख़ामोशी, बातें और साथ सब फ़िज़ूल हैं, मैं रहता हूँ कहीं भी नहीं दुनिया में, तुम रहते हो यहाँ। मोहब्बत क्या है! अक़्स है मेरा ही आईने में उतरा-सा, तुम देखो ज़रा रखके कदम आगे, क्या दिखता है यहाँ! होंठो पर उदासी और आँखों में नरमी अच्छी भी नहीं, जो तुम आओ क़रीब मेरे, तो बताएं क्या छुपा है यहाँ! मैं, तुम और हम तीन लफ्ज़ हैं बस आवारा घूमते से, ठहरो चाँदनी भरे लम्हें में, तो जताएँ तुमसे प्यार यहाँ। मैं नहीं रोकूँगा वो रास्ता जो जाता हो वक़्त से आगे, धीरे से ज़िन्दगी ठहर के, मौत होने लग जाएगी यहाँ। - कमलेश