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Consent & We - The Emotional Beings

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Source - sayfty.com Have you ever thought about asking to seek permission in this permissionless world? Any type of connection begins with the desired need of establishing it, knowingly or unknowingly. Whenever someone asks me for consent it unconditionally opens my heart to welcome the fact that the person in front of me is willing to respect my needs. And, whenever I feel my needs are being given their due, my heart connects the dots to bridge all the gaps which can occur to build a strong connection with the individual irrespective of her portrayal of self. I also think a lot about the condition when people do not ask for consent and directly attack my personal space; which every time results in disrupting my connection with them in that particular moment. I do not know how does it work for other people yet I believe the feeling would be the same if someone enters into someone's personal space without caring about the need of the person in question. It was only a few years ag

सहमति और हम - भावनात्मक जीव

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  Source - sayfty.com क्या आपने कभी बिना अनुमति की इस दुनिया में अनुमति लेने के बारे में सोचा है? किसी भी प्रकार का संबंध जाने या अनजाने में इसे स्थापित करने की वांछित आवश्यकता से शुरू होता है। जब भी कोई मुझसे सहमति मांगता है तो इस बात का स्वागत करने के लिए बिना शर्त मेरा दिल खुल जाता है कि मेरे सामने वाला व्यक्ति मेरी जरूरतों का सम्मान करने को तैयार है। जब भी मुझे लगता है कि मेरी जरूरतों को उनका वांछित सम्मान दिया जा रहा है, तो मेरा दिल उन सभी अंतरालों को पाटने के लिए हर एक बिंदु को जोड़ लेता है जो किसी भी व्यक्ति के साथ एक मजबूत संबंध बनाने के लिए सामने आ सकते हैं, भले ही वह अपने आप को किसी भी तरह देखे! मैं उस स्थिति के बारे में भी बहुत सोचता हूं जब लोग सहमति नहीं मांगते हैं और सीधे मेरे व्यक्तिगत परिवेश में हमला कर देते हैं; जो हर बार उस पल में उनके साथ मेरे संबंध को नकारात्मक तौर पर ही प्रभावित करता है। मुझे नहीं पता कि यह अन्य लोगों के लिए किस तरह काम करता है, फिर भी मेरा मानना ​​​​है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी की ज़रूरत की परवाह किए बिना किसी के व्यक्तिगत परिवेश में प्रवेश करता ह

प्रकृति का वादा - तुम

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प्रकृति के मूल सिद्धांतों में जुड़ाव निहित है, इसके वचनों से हर कोई भीगा हुआ है वह भी जिन्हें वादों से दूर रहना भाता है। ज़िन्दगी के लम्हों को गुज़ारते हुए एक दिन ऐसे ही प्रकृति का कोई नियम अपने चेहरे पर से पर्दा हटा सामने आ जाता है और फिर उसकी ख़ुमारी से निकलने का वक़्त ही नहीं रहता इंसान के पास। मैंने जब पहली बार तुम्हें देखा था तो मुझे महसूस हुआ कि कोई अनकहा वादा लौट आया है मुझ तक जिसे पूरा करना जीवन के निश्चित मकसदों में से एक है। तुम्हारे साथ ऐसा लगता है कि प्रकृति के साथ मेरा रिश्ता गूढ़ होता चला जा रहा है। प्रेम की परिभाषा के परे मैं महसूसना चाहता हूँ वे सारे क्षण जिनमें लिखी गईं हैं कुछ खामोशियाँ और अनगिनत एहसास। जीवन के जिस अंदाज़ से तुमने मेरा परिचय करवाया है उसे अकेले देख पाना संभव तो है किंतु सहज नहीं। वक़्त की डोर को थामे हुए अब लगने लगा है कि साधन नहीं साध्य महत्त्वपूर्ण है; मेरे जीवन के अघटित पहलुओं को तुम्हारे प्रेम से मायने मिलने की आस है और ख़ुशी भी। मुलाक़ातों के बोझ से दूर मैं चाहता हूँ कि हृदय के रास्ते हम एक-दूजे की खोज ख़बर रख पाएँ। तुमसे मिल जाना इस तरह जीवन के

सवाल किस बात का है?

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सैंकड़ों जलती चिताएँ अनगिनत भटकते लोग, पैदल घर लौटती एक दुनिया प्यास-भूख से थमती साँसे, आँसुओं की अविरल धारा छोड़ गए साथियों का ग़म। कितना कुछ है यहाँ जिसे देखने के लिए आँखें नहीं करुणा की ज़रूरत है। वे पूछते हैं तुम किस पाली में हो? मैं ख़ुद से करता हूँ सवाल कि क्या अब भी देखा जाए एक ख़्वाब जिसमें धर्म की लकीरें न हों पैसों से पनपती खाई न हो घर लौटने वालो के लिए आराम हो अकेली लड़की के मन में खौफ़ न हो स्त्री के सिर पर तमाम बोझ न रखा हो बच्चों के खेलने का खुला मैदान हो मान-सम्मान के परे लोग मिलते हों बचपन से लाई गई हंसी हो युवाओं की ज़ुबाँ पर सवाल हो हुक्मरानों की नीति नहीं नियत साफ़ हो बगल में आग लगने पर  अपने घर में चादर ओढ़कर सोने वाले न हों! मैं चाहता हूँ कि  यह न पूछा जाए कि कौन किस पाली में बैठा है बल्कि सवाल चाहत का रहे; जैसे एक प्रेमी-युगल चाहे साथ बैठकर बातें करना ढलते सूरज को सुकूँ से देखना एक-दूजे के होंठो का चुम्बन भीड़ के डर से परे एक आलिंगन जिहाद से परे चाँदनी की एक सैर पहचान से बहुत दूर पनपती प्रेम और सिर्फ प्रेम की एक दुनिया।                                         - कम

अँधेरे से उपजता उजाला -

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  Source - ephotozine.com कभी ऐसा हुआ है कि आप अपनी ही धुन में चले जा रहे हैं और किसी ने आपको धक्का देकर झकझोर दिया हो? क्या कभी इस बात की तरफ ध्यान गया है कि जो उजाला आपकी आँखें इस दुनिया में देख रही हैं वह किन अँधेरे गलियारों से होकर आ रहा है? या यह महसूस करने का यत्न किया है कि जीवन में पल रही तमाम वेदनाएँ और नफ़रत एक मार्मिक चुम्बन के आगे कोई अस्तित्व नहीं रखती! मैंने अपने रास्तों के अनगिनत क्षणों में ख़ुद को ऐसी अवस्था में पाया है जहाँ से मैं सिर्फ अपना सुख और उसके इर्दगिर्द फैला अँधेरा ही देख पाता हूँ. यह सुख असीम स्वार्थ और उतनी ही वासनाओं में लिपटा होता है और पल-पल इसमें वृद्धि ही होती है; इसके विपरीत उजियारे के उस ओर पल रहे अँधेरी वादियों का जुगनू मुझे हर बार उसी गर्त में झटकने में मशगूल रहता है जहाँ से सिवाय पीड़ा के कुछ हासिल नहीं होता. तमाम उम्र आदर्शों के मुखौटे पहने रहते हुए ऐसा समय भी आया है कि मैंने अपने ही कई हिस्सों का अस्तित्व सिरे से नकार दिया है. घट चुके या घट रहे क्षणों को लिखना आसान तो नहीं है लेकिन उतना दुर्गम और अयोग्य भी तो नहीं!  जितनी बार मुझे जीवन में प्रेम के

वर्तमान का ख़्वाब -

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हम सारी ज़िन्दगी उस ख़्वाब के लिए अपनी नींदे ख़राब कर देते हैं जो हमने अब तक की सबसे गहरी और ख़ूबसूरत नींद में देखा था। नींद जागने से उतनी भी अलग नहीं होती जितना इसे बना दिया गया है: बल्कि नींद में आप अपने जीवन के उस हिस्से को नए सिरे से जीने लगते हो जिसको आप जागते हुए जीने की हिम्मत करने से बहुत डरते हो। इन सारी चीजों से जुड़े रास्ते बहुत बिखरे हुए से लगते हैं मुझको। एक दिन ऐसा आएगा जब यह बिखरते बिखरते उलझने लगेंगे और फिर हममें से किसी को भी अपनी मंज़िल कभी भी नहीं मिल पाएगी; और तब मैं किसी पेड़ के नीचे एक किताब हाथ में लिए मुस्कुरा रहा होऊँगा। उस दिन मैं अपने द्वारा जिये गए तमाम लम्हों को समेटकर उनकी गठरी को उस नदी में जाकर फेंक आऊँगा जिस नदी में पैर डुबोना मुझे सबसे ज्यादा सुकून देता है। इस उम्मीद को अपने होने के किसी कोने में छुपाये कि शायद ऐसा करने से मैं अपना अतीत मिटा सकता हूँ जिसमें वे बिखरे-उलझे रास्ते भी मिट सकें। और तब मेरे पास शेष रह जायेगा निरा वर्तमान; जो मेरा अपना है। इस वर्तमान को मैं उस लड़की के हाथों में हाथ रखकर जीना चाहता हूँ जिसे पिछले कुछ दिनों से मेरे फ़ोन कॉल का इंतज़ार र

इंतज़ार और तुम -

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   Source - Nojoto  इंतज़ार के क्षण दुनिया में घटने वाले सबसे लंबे और गहरे क्षणों में गिने जा सकते हैं। जब सारा संसार अपनी गति में तल्लीन होकर बेतहाशा गन्तव्यहीन सा भागा जा रहा होता है; ठीक उसी समय कुछ जोड़ी आँखें, अनेकों कान, अनगिनत होंठो के जोड़े और कई-कई हाथ अपने अस्तित्व में कुछ और जोड़ लेने की चाहत लिए, ख़ुद को इंतज़ार की अनंत परिधि में धकेल दिया करते हैं। इंतज़ार का वजूद केवल उन्हीं क्षणों में सिमटकर नहीं रहता अपितु ये लम्हें किसी व्यक्ति या विशेष के समूचे वर्तमान में ख़ुद को विस्तृत कर देते हैं; जो उसके स्वयं के संचालित होने के क्रम को धीमा करने लगता है और घड़ी दर घड़ी उसे गहराई की अनेकों परतों में उतार ले जाता है। मैं दुनिया में घटने वाले तमाम क्षणों में से कुछ-एक को चुनकर, उसके दीदार के लिए मुंतज़िर हो जाना चाहता हूँ। मैं उस क्षण के इंतज़ार में अपने होने को स्थगित करना चाहता हूँ, जब वह इन भागते हुए लम्हों में अपने प्रेम से सरोबार आलिंगन से; चंद पलों के लिए ही सही; इन्हें थाम कर रख देगी। - कमलेश