संदेश

दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरे गुलशन का नायाब गुलाब तुम हो

मेरे गुलशन का इक नायाब गुलाब तुम हो, देखता ही रहूँ जिसको वो ख्वाब तुम हो । गुज़रता है वक़्त तो इसे गुज़रने दिया जाए, जहाँ मैं ठहर जाऊं इसमें वो मुकाम तुम हो । अंधेरे से भरी उन तमाम गलियों के भीतर, जुगनू की तरहा आने वाली आस तुम हो । मेहनतकश लोगों की इस अदद काॅलोनी में, मेरी जिंदगीभर का समूचा हासिल तुम हो । जिससे सृष्टि का हर कण सृजित हो जाए, ब्रह्मांड-सृजन का वो अतुल्य ज्ञान तुम हो । सीलन-घुटन-मायूसी-उदासी सब महका दे, मस्तानी हवाओं की वो मधुर बहार तुम हो। चाहे बैठ जाए दुनिया छाती पर चढ़कर मेरे, पलक झपकते ही उबार ले वो मीत तुम हो ।                                                                                  .....कमलेश.....

अंतर और रिश्ते

रिश्तों का कोई नाम नहीं होता ना ही कोई नागरिकता भी ये वैसे ही काम करते हैं, जैसे कि साइबेरिया के पंछी चले आते हैं हिंदुस्तान बिना कोई वीज़ा लिए । कुछ कमजोरियों औ' ताकत के दरमियान भी होता है एक रिश्ता जो चाह रखता है कि ताकत प्यार से थपथपाए कमजोरियों की पीठ, ताकि बना रहे ठहराव बीज और उपज के बीच । मायने ठहराव के केवल कमजोरियों को समझ आते हैं, ताकत तो उसका प्रतिबिंब है जो संचालित करने का जिम्मा सौंप देती है कमजोरी को, उनके अंतर का रिश्ता । अगर नहीं ही उपजे कोई भी चाह किसी भी तरह के रिश्ते के दरमियान, ना ही उम्मीद रहे किसी ठहराव के होने की, तब शायद सफ़र हो शुरू रिश्तों में इच्छाओं से अपेक्षाहीनता की ओर ; फिर नागरिकता, रिश्ते, वीज़ा और साइबेरिया के पंछियों में अंतर स्वतः समाप्त हो जाएगा ।                                   .....कमलेश.....

फूल

माना कि इस देश में कीचड़ है, और कीचड़ में कमल खिलता है, लेकिन एक सीमित अवधि तक; कमल के सिरे ने अब फड़फड़ाना शुरू किया है उसे आभास हो चला है कि जड़ें सड़ांध मारने लगी है, लेकिन मृत्यु से पहले तड़पने का हक़ इसका भी तो है । धूल तक की हैसियत नहीं जिनकी, वो कहते हैं कि फूल देश का बाप है, अरे हूक्मरानों कबूल करो, के गांधी के बिना इस देश का वजूद ही नहीं ।                                .....कमलेश.....

अच्छा लगता है मुझे

तेरा मुस्कुराना मेरी बातों पे, नज़रें फेर लेना मेरे इशारों पे, झुका लेना गर्दन मेरे सवालों पे, अच्छा लगता है मुझे । तेरा खामोश हो जाना फ़ोन पर, मायूस हो जाना बिछड़ने पर, शरमा जाना मेरी हसरतों पर, अच्छा लगता है मुझे । तेरा इस क़दर मुझको चाहना, मेरी ख्वाहिशों का ख्याल रखना, काँपते हाथों को मेरे यूँ थामना, अच्छा लगता है मुझे । तेरा भीग जाना मेरी यादों में, रूठ जाना झूठी शिकायतों से, फिर मान जाना चंद पलों में, अच्छा लगता है मुझे ।                          .....कमलेश.....