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दुनिया

छाते को निकाला आज तो पाया कि उसमें जंग लग गई है, घर में रखे बरसाती कपड़े दीमक के खाने के काम आते हैं अब, बारिश और पेड़ रेगिस्तान में पानी की ख्वाहिश से लगते हैं । रहने वालों से ज्यादा इस शहर में चलते हैं सड़कों पर वाहन, सिगरेट नहीं पी कभी भी ज़िन्दगी में पर एक साल से यह शहर हर रहवासी को मुफ़्त देता है चालीस रोज़, सांस लेता हूं यहां तो लगता है खाते से 86 रुपए कट गए । पैरों पर चलते थे कभी शाम की रोटी के जूगाड़ के लिए, अब भागते हैं उसे भूल हड्डी के पीछे जैसे भागता है कुत्ता लार टपकाते हुए, हड्डी किसने डाली पता नहीं पर सबकी हड्डियां टूटती जा रही हैं, पानी को 20 रुपए में खरीदता हूं ख़ुद ही खराब करके साफ करने के बाद, पास बहती नदी अब नदी नहीं सबसे बदबूदार नाला हो गई है । स्कूल में कुछ डेस्क खाली दिखती हैं परसों कुछ बच्चे जाम में खड़ी कारों के पास, मंडराते हुए दिखाई पड़े थे न जाने अब वो कहां हैं ! योजनाओं की भूख नहीं है उनको वादों का नाश्ता नहीं करता कोई, दो वक़्त की रोटी और सिर के लिए छत बस यही चाहत लिए फिर रहे हैं सब के सब, ये सब वही हैं जिनकी बेटी बचाओ का वाद

कार और चार सवारी

धान से घिरी हुई एक संकरी सी सड़क पर एक कार धीमे धीमे रेंग रही थी, शायद चालक रेंगना चाहता था या फिर उसके साथी इसलिए सब कार में बैठकर रेंग रहे थे, रेंगना धीमे चलने का पर्याय नहीं है, शहर की भागदौड़ भरी जिंदगी से कुछ दिन उधार लेकर, यह लोग जब गांव आते हैं तो वहां की भागदौड़ को याद करते हुए, उसका विरोध करने की कोशिश में रेंगना चाहते हैं ताकि किसी ठहराव का हिस्सा बन सकें। ठहराव कोई हकीक़त नहीं है, वह केवल कोरी कल्पना है, जिसे शहर की जेल से भागे कैदी गांव आकर जीना चाहते हैं। जब कार रेंगने से बदलकर चलने लगी तो ऐसा लगा जैसे किसी ने अचानक चल रहे शास्त्रीय संगीत को बदलकर रॉक बैंड बजाना शुरू कर दिया हो। अक्षय ने रास्ते को देखने के बावजूद उसे भूल जाने पर अफसोस जताने के बारे में सोचे बग़ैर बगल में बैठे केशव से रास्ता पूछा, या फिर केशव को साथ ही इसलिए लिया गया था कि वह कार को रास्ता बता सके, क्योंकि कार को रास्ता भूलने का अफसोस ज़रूर था। मेरठ हाईवे पर कार के दौड़ते हुए चढ़ जाने पर वेदांत ने चाहा कि कार की खिड़कियां बंद कर ली जाए, वह बाहर की दुनिया को अपनी दुनिया से एक कांच की मदद से अलग करना चाहता था

वह

मैंने उसे सड़क के किनारे पर लगे जामुन के पेड़ के नीचे देखा, जब उस पर गाड़ी की हैडलाइट का हमला हुआ । वह हड़बड़ाई शायद वह खुद को दिखने नहीं देना चाहती होगी, लेकिन अगर ऐसा ही था तो वह पास बने मकान की दीवार की ओट में भी छुप सकती थी । नहीं, वह छुपना नहीं चाहती होगी वह तो केवल दिखना नहीं चाह रही थी, न दिखना छुपने से एक दम अलग होता है यह मैंने उसके न दिखने की कोशिश में छुपते हुए जाना । उसके हाथों की उंगलियों के बीच से मुझे धुआं उड़ता हुआ दिखाई पड़ा, तब मैंने उसे करीब से देखने की कोशिश में उसकी ओर कदम बढ़ाए, लेकिन मैं उसकी ओर आ रहा हूं इसका कोई प्रमाण उस तक पहुंचने नहीं दिया । मेरे वहां पहुंचते न पहुंचते अचानक से कई सारा धुआं उठा और मैंने उसे मेरी तरफ़ आते देखा, मैं उसकी ओर जा रहा था शायद इसलिए वह मुझको मेरी तरफ़ आते हुए दिखाई दी, अगर मैं उससे दूर जा रहा होता तो वह भी मुझे दूर जाते हुए दिखती । कुछ देर बाद जब मैं वहां पहुंचा जहां उस उठते धुएं की नींव बनकर वह थी तो केवल चुटकी भर राख़ और किसी को वहां न पाया, मैंने वहां धुआं देखा था इसलिए राख़ को पाया और उसके होने के स्थान पर उसके न होने को ।    

एक एहसास

बरसात के पहले और बाद धूप का होना एक सा नहीं होता, तेरा आना तेरी याद के बाद और फिर से लौट जाना, लेकिन एक सा ही लगता है । उड़ते रहना किसी पक्षी का खुले आसमान में बादलों के बीच, आज़ादी को परिभाषित करता है; तेरा बैठना मेरे पहलू में थामकर के मेरे हाथ को, वैसा ही महसूस कराता है मुझे । किताबों में लिखना अपने नोट्स या लिख देना कागज़ों पर कविताएं, एक जैसा तो कतई नहीं है; पर देखना तेरी तस्वीर अरसे के बाद या रोज़ मुलाकातों का हिस्सा होना, एक सा ही मालूम होता है मुझको । मैंने कोई वादा नहीं किया कभी क्योंकि मैं नहीं जानता उसे निभाने में कितना वक़्त लगेगा, पर मैं यह जानता हूं कि तुम्हें तुम्हारी याद से पहले, मुझ तक पहुंच जाने में कितना वक़्त लग सकता है ।                                      - कमलेश

एक बात

जब लगा डर मुझको कुछ रिश्तों के खो जाने का, तो मैंने उनको सिर की पोटली से उतारकर, अपनी कमर में खोंस लिया । कुछ मुलाकातें जो जा रही थी अपने पीछे एक ख़ाली जगह छोड़े, मैं आगे बढ़ा और उस जगह को मेरे होने में समेट लिया । कुछ लम्हें वक़्त से मजबूर जाने ही वाले थे कि मैंने, वक़्त से इजाज़त ले ली उनके ही साथ चलने के लिए । कुछ भाव के अंकुर फूट रहे थे, जो दिल से निकल दुनिया में आने के लिए बहुत उत्सुक थे, मैं उठा और घर के सारे दरवाज़े और खिड़कियां खोल दी । एक बात जो मेरे कह देने के बाद मुझको मरती हुई सी मालूम हुई, तो मैंने उसको न कहकर जिंदा रख लिया ।                                 - कमलेश

रिश्ता

किसी भी रिश्ते का अहम हिस्सा है कि आपने कितने ख़ुशी के पल एक दूजे के साथ बांटे हैं, वक़्त कितनी आसानी से हमें अजनबी से इतने गहन धागे में बांध देता है जिसका हमें पता भी नहीं लगता । अपनी ज़िंदगियों को जीते हुए हमें किसी मोड़ पर टकराना था यह नियति थी लेकिन हम उसे कितना आगे ले जाते हैं, चाहे फिर वो भावनाओं की बात हो या साथ समय व्यतीत करने की, हमारे फैसलों पर निर्भर करता है । प्रेम का होना किसी भी रिश्ते का अहम पहलू है जिसके बिना शायद कोई रिश्ता अपना अस्तित्व खो भी सकता है ।         हर रिश्ता प्रेम के संचार और उसकी भावनाओं को सहेजकर साथ चलने के लिए बनाया गया है । जब आप अपने 'आप' को एक तरफ रख कर नि:स्वार्थ भाव से किसी भी रिश्ते को निभाते हैं तब विश्वास, करुणा, सच्चाई जैसे मूल्य अपने आप ही उसकी नींव बनकर उसे मजबूत करते हैं । नियति सभी को सब कुछ देती है मगर सवाल यह कि हम उसमें से कितना सकारात्मक और खुशनुमा रंग पहचान पाते हैं !