दुनिया
छाते को निकाला आज तो पाया कि उसमें जंग लग गई है, घर में रखे बरसाती कपड़े दीमक के खाने के काम आते हैं अब, बारिश और पेड़ रेगिस्तान में पानी की ख्वाहिश से लगते हैं । रहने वालों से ज्यादा इस शहर में चलते हैं सड़कों पर वाहन, सिगरेट नहीं पी कभी भी ज़िन्दगी में पर एक साल से यह शहर हर रहवासी को मुफ़्त देता है चालीस रोज़, सांस लेता हूं यहां तो लगता है खाते से 86 रुपए कट गए । पैरों पर चलते थे कभी शाम की रोटी के जूगाड़ के लिए, अब भागते हैं उसे भूल हड्डी के पीछे जैसे भागता है कुत्ता लार टपकाते हुए, हड्डी किसने डाली पता नहीं पर सबकी हड्डियां टूटती जा रही हैं, पानी को 20 रुपए में खरीदता हूं ख़ुद ही खराब करके साफ करने के बाद, पास बहती नदी अब नदी नहीं सबसे बदबूदार नाला हो गई है । स्कूल में कुछ डेस्क खाली दिखती हैं परसों कुछ बच्चे जाम में खड़ी कारों के पास, मंडराते हुए दिखाई पड़े थे न जाने अब वो कहां हैं ! योजनाओं की भूख नहीं है उनको वादों का नाश्ता नहीं करता कोई, दो वक़्त की रोटी और सिर के लिए छत बस यही चाहत लिए फिर रहे हैं सब के सब, ये सब वही हैं जिनकी बेटी बचाओ का वाद