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उन दिनों की दीवारों से -

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ज़िन्दगी बिना दीवारों का एक कमरा है. ताउम्र ख़्वाबों को खोजते खोजते यह महसूस होता है कि हर कोई बस बाँध लेना चाहता है लेकिन यह अधूरा सच है. पूरा सच है कि जितनी बार मुझे लगा कि मुझे बाँधा जा रहा था उतनी ही बार मैं अपनी आज़ादी को और क़रीब से देखकर उसके लिए अपना रास्ता तैयार कर रहा था. चलते चलते न जाने कब कुछ दीवारें मुझे इतनी भा गई कि मैं उन्हें महसूसने के लिए बार बार लौटता रहा. ऐसा नहीं था कि मुझे बंदिशें भाती थीं पर मैं उन दीवारों का शुक्रगुज़ार हूँ जिन्होंने मुझे उस वक़्त में सुना जब मेरे क़रीब किसी के कान नहीं थे, उन्होंने मुझे उस वक़्त देखा जब मैं अकेले घुटनों में सिर देकर रोता रहा लेकिन वे नि:शब्द सी मेरे कन्धों पर हाथ रखे मुझे एहसास कराती रही कि वे मेरे साथ हैं चाहे फिर कुछ भी हो और एक दिन मैंने अपनी आज़ादी चुनी उनकी कीमत पर. शायद यही इंसान के ख़्वाबों की नियति होती है कि जिस अँधेरे ने उसे सब कुछ सिखाया होता है वह उसी की कीमत पर अपनी रौशनी हासिल करता है.               मैं दुनिया से दूर जब अँधेरी रातों में तारों की रौशनी के साथ अपनी ख़ामोशी और अकेलापन बाँट रहा था तब चाँद मुझे बुरा नह

विश्वास – जीवन जीने के लिए एक अपरिहार्य गुण

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जब भी आप पीछे मुड़कर देखते हैं और अपनी जीवन यात्रा के बारे में सोचते हैं, तो एक ऐसी चीज है जिसके बारे में आप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेहद आभारी होंगे, वह है आपकी विश्वास करने की क्षमता। अविश्वास कारक के बारे में बहुत कुछ पढ़ने और चर्चा करते रहने के लिए उपलब्ध है कि हम जिस समाज में रहते हैं, वहाँ यह कैसे बढ़ रहा है, या जिस समाज में हम साथ रहने की योजना बना रहे हैं वहाँ कैसे उभर रहा है! लेकिन यह समझना महत्वपूर्ण है कि विश्वास कैसे अपनी भूमिका हमारे अस्तित्व में निभाता है। एक इंसान होने के नाते हम सभी "अजनबियों" पर भरोसा करने में पैदाईशी तौर पर सक्षम होते हैं; उस महिला से जो बच्चे को जन्म देती है, लेकिन बच्चे को उसके बारे में कुछ भी पता नहीं होता है, से लेकर अपनी उचित अंत्येष्टि की ख्वाहिश लिए किसी के हाथों में मरना। आप जानते हैं कि इस दुनिया में, जीवन के किसी एक या अन्य बिंदु पर, हम वैसे व्यक्ति की तरह कार्य करते हैं, जो हमारी जीवन यात्रा का हिस्सा होते हैं और दूसरों के साथ भी उसी तरह का व्यवहार करते हैं। एक ही व्यक्ति के साथ नहीं, बल्कि दूसरों के साथ भी। ब्रह्म

रिश्तों की ज़िन्दगी

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Source - thriveglobal.com ज़िन्दगी के रास्ते अगर उतने ही आसान होते जितने वह सुनने में लगते हैं तो शायद एक सूखे पत्ते की तरह बहकर इसे जिया जा सकता था; लेकिन ऐसा नहीं है. एक तरफ ज़िन्दगी के हर बीतते पल में अनगिनत ख़्वाब अपना आशियाँ ढूंढते हुए आँखों में अपना सिर छुपा लेते हैं वहीं दूसरी ओर हर वक़्त सुलझते-सँवरते रिश्ते हाथों की अँगुलियों में अपनी पकड़ मजबूत करते रहते हैं. ख़्वाबों के पीछे भागना सबको होता है लेकिन उतना जज़्बा इकठ्ठा करके चलने की ताकत खोजते खोजते उम्रें बीत जाती है. न जाने किस घड़ी पैदा हुए लोग ही सोचते हैं कि उनके रिश्ते सँवरने सुलझने से परे उनकी पहचान को समझ कर उन्हें अपनी आज़ादी और प्रेम को महसूसने न दें तो एक कदम आगे बढ़ जाने में कोई बुराई नहीं है. रिश्ते जन्मजात तो केवल गिनती के होते हैं बाकि का जोड़-घटाव तो इंसान ख़्वाबों के पीछे भागते हुए (ऐसा हर किसी को लगता है लेकिन लगने और होने में फ़र्क है) करता है अपने रिश्तों में. ज़िन्दगी अगर आज़ादी और अपनापन न परोसे तो उसे खोजकर चखने को जीने का फ़र्ज़ कहने में कुछ ग़लत नहीं है. रिश्तों की दिखती न दिखती दीवारें, अक्सर अपनेपन और आज़ादी को जी