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केवल तुम सच हो

तुम्हारे दूर होने पर, मैं ढूँढता हूँ तुम्हें अपने लिखे शब्दों में और शब्दों में तुम्हारे होने की हकीक़त को, तुम्हारी हकीक़त में तुम्हारे होने के एहसास को तुम्हारे होने में तुम्हारे न होने को तलाशता हूँ मैं, और इस खोज में मेरे हाथों से बिखर जाता है सब कुछ! बिखर जाते हैं, सारे लम्हें सारे पल सारी खुशियाँ, और अनगिनत यादें भी; मेरी असफल होती कोशिशों से उपजा ख़याल कहता है कितना नासमझ हूँ मैं! परिभाषा दे रहा हूँ उसे जिसकी परिभाषा मुमकिन नहीं, लिखना चाहता हूँ जो कभी भी लिखा नहीं जा सकता, वह सब कहना चाहता हूँ जिसके लिए किसी भी भाषा में कोई शब्द नहीं: और तब समझ आता है कि सब व्यर्थ है व्यर्थ है भाषा, व्यर्थ है अभिव्यक्ति, व्यर्थ है परिभाषायें सारी मेरी अविरल खोज में, केवल तुम सच हो इस समूची दुनिया का।                                            -कमलेश

आईना देखो – ख़ुद से एक मुलाक़ात

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इन्कलाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो, बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज़ नहीं..                                         -अली सरदार जाफ़री                                    कितनी खूबसूरती से जाफ़री साहब ने बदलाव की गति को भी परिभाषित कर दिया अपने इस शेर में, जब सफर शुरु होता है किसी बदलाव का तो आरम्भ बड़ा ही पेचीदा और अनसुलझा हुआ दिखाई पड़ता है लेकिन जरुरत होती है उसके साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त गुजारने की. यह वक़्त मेरी ज़िन्दगी में आया आईना देखो के रूप में, मेरा गाँव मेरी दुनिया के साथ जब इस यात्रा का हिस्सा बना था तब केवल यही मन में था कि सीखने की यह यात्रा ऐसे ही अनवरत चलती रहे और बदलाव की प्रक्रिया का हिस्सा बनकर में कितना कुछ दोहरा सकता हूँ उन सारे कर्मों को जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी को सँवारा है. बहुत कठिन होता है कि अनिश्चितताओं से भरे माहौल में आप काम कर पाओ लेकिन मैंने आईना देखो के माध्यम से सीखा कि अनिश्चितताएं हमारी कितनी अच्छी दोस्त हो सकती हैं! जब हम अपनी ख्वाहिशों को दरकिनार करना शुरु करते हैं वे सारी ख्वाहिशें जो केवल साधन हैं, तब हमें वह प्राप्त होना प्रारम्भ होता

२१ साल और बातें

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                                     कई दफ़ा हम नहीं जान पाते कि हम कैसे जी रहे हैं लेकिन जब हमें बिन ढूँढे इस सवाल का जवाब मिल जाता है तो ऐसा लगता है कि हमसे ख़ुशकिस्मत इंसान इस दुनिया में नहीं है. आप कहीं भी रहो, आप कभी भी अकेले नहीं रहते आपके साथ आपका अनुभव, आपकी रिवायतें, आपके रिश्ते, आपका परिवार और आपका प्रेम जैसी कई चीजें आपके साथ रहती हैं. मैं पिछले कुछ दिनों में इन बातों को और बेहतर तरीके से जानकर आत्मसात कर पाया हूँ क्योंकि मैं एक ऐसे वातावरण का हिस्सा रहा हूँ जिसने मुझे ख़ुद के प्रति थोड़ा और दयावान होने की प्रेरणा दी है. मेरे जीवन के २१ सालों में मैंने अपने वातावरण और इस जीवन से कितना प्रेम किया है यह तो मैं नहीं जानता लेकिन मैं क्या सीख सकता हूँ इस प्रेम, विश्वास और समर्पण से उपजे मेरे जीवन से, यह ज्यादा स्पष्ट दीखता है मुझे. जब मैं अपने प्रियजनों से कई मील दूर अपने आपको टटोलने में वयस्त था तब यही प्रियजन मुझे मेरे जीवन के अनमोल क्षण का अनुभव देने की कोशिश में लगे हुए थे, जब आप ख़ुद को भूलकर कुछ करने की कोशिश करते हो तो आपके कई सारे काम या ज़रूरतें आपकी मोहताज नहीं रह जाती,