तुम

तुम,

इसके सिवा कोई शब्द क्यों नहीं है दुनिया में कि जिसके उपयोग से तुम्हारे संबोधन को चरितार्थ करूँ मैं!

तुम्हारा अस्तित्व उस नीम के पेड़ सा है जिसे मैं अपनी सेहत, सीरत और आराम के लिए चाहता हूँ, शायद तुम नहीं जानती किसी बात को, यह कहना झूठ नहीं है क्योंकि तुम वाकई नहीं जान पाओगी कभी कि ढाई अक्षरों के एक शब्द में कैसे मैंने अपनी दुनिया और उसकी सारी ख़्वाहिशें सजा रखी है।

मेरी ख़्वाहिश है कि तुम न जानो उसे, जब तुम बैठो सुकून की गोद में तो अपने हाथों की कोमलता उस शब्द के माथे को सहलाने के लिए बचा कर रखना:

ताकि तुम परिभाषा के रिवाज़ परे रखकर, पहुँच सको ब्रह्माण्ड के उस कोने में जहाँ दो आँखों, अनगिनत ख़्वाहिशों, बच्चों और पेड़ की दुनिया रहती है।
                                                      - कमलेश

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