केवल तुम सच हो

तुम्हारे दूर होने पर,
मैं ढूँढता हूँ तुम्हें अपने लिखे शब्दों में
और शब्दों में तुम्हारे होने की हकीक़त को,
तुम्हारी हकीक़त में तुम्हारे होने के एहसास को
तुम्हारे होने में तुम्हारे न होने को तलाशता हूँ मैं,
और इस खोज में मेरे हाथों से बिखर जाता है सब कुछ!

बिखर जाते हैं,
सारे लम्हें
सारे पल
सारी खुशियाँ,
और अनगिनत यादें भी;

मेरी असफल होती कोशिशों से उपजा ख़याल
कहता है कितना नासमझ हूँ मैं!
परिभाषा दे रहा हूँ उसे जिसकी परिभाषा मुमकिन नहीं,
लिखना चाहता हूँ जो कभी भी लिखा नहीं जा सकता,
वह सब कहना चाहता हूँ जिसके लिए किसी भी भाषा में कोई शब्द नहीं:
और तब समझ आता है कि सब व्यर्थ है
व्यर्थ है भाषा,
व्यर्थ है अभिव्यक्ति,
व्यर्थ है परिभाषायें सारी
मेरी अविरल खोज में,
केवल तुम सच हो इस समूची दुनिया का।
                                           -कमलेश

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