आईना देखो – ख़ुद से एक मुलाक़ात


इन्कलाब आएगा रफ़्तार से मायूस न हो,
बहुत आहिस्ता नहीं है जो बहुत तेज़ नहीं..
                                        -अली सरदार जाफ़री  
                                


कितनी खूबसूरती से जाफ़री साहब ने बदलाव की गति को भी परिभाषित कर दिया अपने इस शेर में, जब सफर शुरु होता है किसी बदलाव का तो आरम्भ बड़ा ही पेचीदा और अनसुलझा हुआ दिखाई पड़ता है लेकिन जरुरत होती है उसके साथ ज्यादा से ज्यादा वक़्त गुजारने की. यह वक़्त मेरी ज़िन्दगी में आया आईना देखो के रूप में, मेरा गाँव मेरी दुनिया के साथ जब इस यात्रा का हिस्सा बना था तब केवल यही मन में था कि सीखने की यह यात्रा ऐसे ही अनवरत चलती रहे और बदलाव की प्रक्रिया का हिस्सा बनकर में कितना कुछ दोहरा सकता हूँ उन सारे कर्मों को जिन्होंने मेरी ज़िन्दगी को सँवारा है. बहुत कठिन होता है कि अनिश्चितताओं से भरे माहौल में आप काम कर पाओ लेकिन मैंने आईना देखो के माध्यम से सीखा कि अनिश्चितताएं हमारी कितनी अच्छी दोस्त हो सकती हैं! जब हम अपनी ख्वाहिशों को दरकिनार करना शुरु करते हैं वे सारी ख्वाहिशें जो केवल साधन हैं, तब हमें वह प्राप्त होना प्रारम्भ होता है जिसकी हम अपने संकुचित दायरे में सिमट कर कभी भी कल्पना नहीं कर सकते.
                                
                २५ लोगों के द्वारा तैयार किया गया एक वातावरण जो समानुभूति, करुणा और अन्य मूल्यों से पनपा हो, वह ख़ुद में हो रहे बदलाव को इतने क़रीब से देखने में सहायक हो सकता है यह मेरे लिए शब्दों में बयां कर देना बहुत कठिन है. छोटे छोटे काम और उनसे जुड़े भावों को नज़दीकी से देख पाना और उनके चलन को पहचान पाना, अपने मुश्किल भरे समय में भी ख़ुद की तथा सामने खड़े किसी भी शख्स की भावनाओं और ज़रूरतों को प्राथमिकता दे पाना बजाय किसी प्रतिक्रिया के, यह दो पहलू मेरी ज़िन्दगी की किताब के कभी न मिटने वाले पन्ने बन चुके हैं जिन्हें मैं हमेशा अपने साथ रखना चाहूँगा.
                       
                         आईना देखो के विचार से उसके हकीक़त होने की प्रक्रिया में कई सारे ऐसे अनुभव हैं जिनमें मैंने ख़ुद की क्षमताओं और कमजोरियों को बहुत अच्छे से जाँचा और परखा है ताकि मैं ख़ुद को बेहतर बनाने वाली ज़रूरतों और मूल्यों पर ख़ुद को कायम रख सकूँ. इस यात्रा के लिए गाँवों में घूमना और लोगों से उनके और उनके जीवन से जुड़ी बहुत सी बातें करना जो कई बार बहुत अतरंग भी हुई, इन सारे अनुभवों ने बहुत कुछ सीखाया और साथ ही गाँव को लेकर दिमाग में पल रही कुछ भ्रांतियों को भी दूर किया. ६ दिनों की यात्रा के लिए सारे साथियों को अपनी समूची उर्जा के साथ काम करते हुए देखना अपनी सारी मुश्किलों को किनारे रखकर, सब को देखना एक साथ संघ के भाव के साथ मुझमें काफी ज्यादा संभावनाओं और उम्मीदों को जन्म देता है. बातचीत और साथ रहने भर से कितना कुछ सीखा जा सकता है! मेरे लिए आईना देखो से बेहतर उदाहरण इस वाक्य के लिए नहीं हो सकता, टीम और प्रतिभागी जैसा कुछ भी रेखांकन पूरी यात्रा में न महसूस करना, यह एहसास जितना सुकून मुझे पहुँचाता है उतना ही सारे लोगों को मिला होगा ऐसा मेरा मत है. एक समता भरे माहौल में ख़ुद को खोलकर देखना और अपने बारे में अपने साथियों के साथ रहकर जानना, यह मंथन की सबसे असरदार प्रक्रिया रही है मेरे लिए. काम और अनिश्चितताओं के रहते भी आज़ाद, शांत और ख़ुद के प्रति दयावान होकर जी पाना मेरे लिए बहुत कीमती पाठ रहा है और इसके लिए मैं हर एक साथी की उपस्थिति के लिए शुक्रगुज़ार हूँ. ऐसे दोस्त और साथी जिन्होंने कुछ देर की बातचीत में ख़ुद को अपनी मर्यादाओं से बाहर लाकर अपने असीम की ओर कदम रखे और पुरे सहयोग के साथ इस यात्रा को मुकम्मल होने में अपना योगदान दिया, उनका साथ होना ही मेरे कदमों के निशां को मजबूती प्रदान करता है. मैं आभारी हूँ सबके प्रति जिन्होंने मुझे स्वीकार करना सिखाया है शत प्रतिशत विश्वास के साथ, कि जो आया है तुम तक वह स्वीकारने के लिए ही है, यह अनमोल है.
                               

इस वक़्त काफी सारे सवाल और विचार दिलो’दिमाग में घूम रहे हैं, जिनके साथ मैं कुछ वक़्त गुजारना पसंद करूँगा ताकि अपने ‘आप’ को मंथन और बदलाव की प्रक्रिया से बेहतर तरीके से जान सकूँ.
फिलहाल दिल के किसी कोने से एक आवाज़ सी उठ रही है जिसे एजाज़ रहमानी साहब के शेर ने उसका स्वरुप दे दिया है, आप भी पढ़िए..
अभी से पाँव के छाले न देखो,
अभी यारो सफ़र की इब्तिदा है.....

प्रेम, आभार और शुभकामनाएँ  💖💗💓

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