मेरे गुलशन का नायाब गुलाब तुम हो
मेरे गुलशन का इक नायाब गुलाब तुम हो,
देखता ही रहूँ जिसको वो ख्वाब तुम हो ।
गुज़रता है वक़्त तो इसे गुज़रने दिया जाए,
जहाँ मैं ठहर जाऊं इसमें वो मुकाम तुम हो ।
अंधेरे से भरी उन तमाम गलियों के भीतर,
जुगनू की तरहा आने वाली आस तुम हो ।
मेहनतकश लोगों की इस अदद काॅलोनी में,
मेरी जिंदगीभर का समूचा हासिल तुम हो ।
जिससे सृष्टि का हर कण सृजित हो जाए,
ब्रह्मांड-सृजन का वो अतुल्य ज्ञान तुम हो ।
सीलन-घुटन-मायूसी-उदासी सब महका दे,
मस्तानी हवाओं की वो मधुर बहार तुम हो।
चाहे बैठ जाए दुनिया छाती पर चढ़कर मेरे,
पलक झपकते ही उबार ले वो मीत तुम हो ।
.....कमलेश.....
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