हरिद्वार यात्रा
कविता -१
दुनिया से अनभिज्ञ होना
मानव काल का सबसे बड़ा झूठ है,
तुम मेरे लिए कभी भी
अजनबी तो थी ही नहीं,
मैंने जाना नदी में खड़े होकर
समन्दर की आत्मीयता को,
जैसे तुम जान लेती हो होंठो से
मेरे द्वारा बनाई हुई चाय का स्वाद ।।
कविता -२
अभी आंखें गड़ी हैं मेरी
सामने वाले पहाड़ की चोटी पर,
लेकिन पगतलियों को
नदी की लहरों का चुम्बन भाता है,
मुझसे मिलना तुम
पहाड़ से नदी के इस सफ़र में,
तब तुम्हें बताऊंगा
नदी से कैसे बनी हो तुम ।।
- कमलेश
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