समय

कभी कभी मैं सोचता हूं कि ये दुनिया
हमेशा से गोल नहीं थी,
इंसान ने अपनी ज़रूरत से इसे गोल किया ।

वक़्त की जेल में बंद इंसान
भविष्य की पूंछ पकड़े,
अतीत की बेड़ियों में जकड़े,
वर्तमान में खींचता चला जा रहा है ।

जब मैंने देखा तुम्हें सड़क के उस पार
सारे नियमों से आज़ाद घूमते,
तो खोलने लगा अपनी बेड़ियां
और तुमने कैदी समझ,
उन्हें निकालने में मेरी मदद की ।

मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि
उस दिन में वाकई भाग आया था,
और फिर दोबारा तुमसे मुलाक़ात हुई
तो उस डरावने जानवर की पूंछ भी छोड़ दी मैंने ।

ये दुनिया मुझे बिल्कुल नई लगी
जब मैं बंधनों से मुक्त हुआ,
और जब तुमने
मेरे घुटनों पर लगी धूल झाड़,
मेरे बालों को संवार,
मुझे आज के कपड़े पहना दिए ।
                                  - कमलेश

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