गांव और देश का विकास



Source - Financial Express
                
                 
     हमारा देश इस वक़्त विकास के ऐसे दौर से गुज़र रहा है जिसमें हमें शहरों के साथ साथ गाँवो का विकास करने की भी बहुत ज्यादा आवश्यकता है । कुछ महात्वाकांक्षी लोगों की सोच काफी सही है कि अगर गाँव का विकास देश के विकास से जुड़ा है तो हमें गाँव का विकास राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की सपनों के तले करना चाहिए । वे कहते थे कि " मैं चाहता हूँ कि भारत के सारे गाँव खुद के प्रयासों से इतने आत्मनिर्भर हो जाएं कि उन्हें अपनी किसी भी ज़रुरत के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहना पड़े।" उक्त कथन से स्पष्ट है कि गाँधी जी गांवो को सम्पूर्ण विकास के बावजूद भी गाँव ही रहने देना चाहते थे।


                    गाँव हमारे देश का प्रतिबिम्ब हैं जो प्रकृति के दर्पण में अपनी खूबसूरती लिए झलकता है या यूँ कहे कि इस देश का आँगन है गाँव। आँगन की परिभाषा है घर के सामने का वह हिस्सा, जहाँ छोटा या बड़ा कोई भी हो उसके लिए स्थान है, यह सीखने की वह पाठशाला है जहाँ बच्चा अपनी माँ से, बड़े -बूढ़ों से और इस प्रकृति के साथ रहकर बहुत कुछ सीख लेता है । अगर हमें जीवन के बुनियादी हिस्से को जानना है तो हमें आँगन का ही सहारा लेना पड़ता है, इन बातों से स्वत: निष्कर्ष निकलता है कि अगर हम देश को घर और गाँव को आंगन का दर्ज़ा दे दें, तो हम सोच पायेंगे कि हमाारे देश की स्थिति किस तरह गांवो से प्रभावित होती है। आज शहरों के वातावरण में वह प्रदुषण घुला है जो किसी के भी स्वास्थ्य के साथ साथ उसके विचारों को भी दूषित कर रहा है, तो बेहतर है कि हम गाँव के साथ जुड़कर वह बाते सीखें जो किताबों से हम नहीं जान सकते।


                           गाँव में साम्प्रदायिकता नाम की कोई भावना होती ही नहीं, यहाँ रमेश और इकबाल दोनों गाय पालते हैं और अपना गुज़ारा करते हैं, यहाँ जब गरीब मोहन अपनी सब्जियां लाता है तो पंडित और सेठ दोनों बिना किसी झिझक के लेते हैं जबकि वे यह जानते हैं कि मोहन अपने नाम के आगे सूर्यवंशी लिखता है। अभी तक सही मायनो में गाँव को बहुत ही कम लोग जान पाये हैं, ये जो कुर्सी पर बैठकर दावे करते हैं कि गाँव की प्रष्टभूमि से हूँ, तो फिर उन्हें इनके बुनियादी विकास की चिंता क्यों नहीं होती। एक बिलकुल अनछुआ पहलू कि गाँव की कोई भी बेेटी जब पेट से होती है तो उसकी माँ या बाबूजी सिर्फ यह कहते हैं कि बहू इस बार तो लड़का ही देना यह नहीं कहते कि बेटा बहू को शहर ले जाओ वहाँ भ्रूण की लिंग जांच करवाना, अगर लड़का हो तो ठीक नहीं तो गर्भपात करवा देना क्योंकि उसकी तीन बेटियाँ हैं और वो चाहती है कि कोई कुल को आगे ले जाने वाला आ जाये। इस घटना क्रम में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भ्रूण के लिंग परिक्षण के बारे में जानता ही नहीं,  इस के बारे में सिर्फ ज्यादा पड़े लिखे लोग यानी शहर के लोगो को अधिक जानकारी होती है। इस आँगन में जब बच्चा कुछ सीखकर गाँव से आगे जाता है तो वह जान पाता है कि किस तरह गांवो मे जाति प्रथा संचालित होती है, और वह इन बुराईयों को खत्म करने के लिए प्रयासरत भी रहता है। वेसे ये रूढ़ियाँ भी बहुत जल्द टूटने वाली है क्यूंकि अब गाँव के लोग ही इनका विरोध करने लगे हैं।


                           अभी तक की सारी सरकारें चाहती आई हैं कि गाँव का विकास करके उसे शहर में तब्दील कर दें लेकिन यह तो किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं है हमें, यानी की गाँव वालो को क्योंकि शहर बनने के बाद हम भी किसी की भावनाओं की कद्र नहीं करेंगे, हमें सिर्फ पैसो से मतलब रहेगा, हम पहले की तरह साथ नहीं रह पाएंगे और सबसे महत्वपूर्ण बात कि अपने परिवार के साथ सुकून से दो वक़्त की रोटी नहीं खा सकेंगे इस भागदौड़ में । हम लोग गाँव के सर्वांगीण विकास से सहमत हैं लेकिन उसके बावजूद इसे गाँव ही रहने दिया जाये । विचारणीय है कि अगर गाँव शहर में मिलने लगे तो गाँव शब्द ही विलुप्त हो जायेगा जो अभी सिर्फ विकास के कागजों से गायब हुआ है।  भारत देश मे  ७ लाख गाँव है जहाँ से कभी भी कोई व्यक्ति शहर की ओर पलायन करता है तो गाँव की आत्मा तड़प उठती है और वह व्यक्ति क्या महसूस करता है यह मैं मुनव्वर राणा साहब के कुछ शेर से व्यक्त कर रहा हूँ 

        " मैं जब गाँव से चलता हूँ मुझसे गांव कहता है,
          मोहर्रम आये तो इस ताजिये को याद रखिएगा।
      
          लिपट जाता है ये कहते हुए छोटा सा एक जुुुुगनू,
          वहाँ की रौशनी में इस दीये को याद रखिएगा।"
   
      मुश्किल प्रतीत होता है लेकिन हमें स्वीकारना होगा कि सारे प्रयासों के बावजूद गाँव को विकसित करके शहर न बनने दें, गाँव आत्मनिर्भर बने शहर नहीं । हमें गाँव की प्रतिष्ठा और प्राचीन गरिमा को बनाये रखते हुए देश का विकास करना होगा जो सदियों से इस देश का पोषण करता रहा है।

                                                      - कमलेश

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