साड्डा हक़, देश और ज़रूरतें -

मैं नहीं जानता कि रॉकस्टार फ़िल्म में लिखा गया "साड्डा हक़" गीत इरशाद भाई के कितने क़रीब है या इससे जुड़े हुए लोगों के भी! मैंने अपनी ज़िंदगी के 14वें साल में यह फ़िल्म देखी थी, जिसे पूरी तरह समझ पाने में मैं अब तक असफल ही रहा हूँ लेकिन मैं ख़ुश हूँ कि उसके बाद के 9 सालों में इस गीत को बहुत क़रीब से जान, सुन और समझ पाया हूँ। 

ज़िन्दगी और देश की वर्तमान अवस्था इतने ज्यादा आपस में जुड़े हुए हैं कि दोनों को स्वतंत्र रूप से देखना असम्भव तो है ही यह एक भूल भी है। इरशाद जी का लिखा यह गीत हर उस व्यक्ति की पैरवी करता है जो उसके स्वाभिमान और स्वातंत्र्य की लड़ाई में उसके हक़ों की बात करता है। हज़ारों लोग इससे असहमत हो सकते हैं और हों, अच्छा है आप तर्क कीजिये, अनुभव में डुबकी लगाइये और फिर समझिये कि यह क्या चीज़ है; ठीक वैसे ही कि इश्क़ कीजे फिर समझिये ज़िन्दगी क्या चीज़ है! 

आज के वक़्त में अपने हक़ के लिए लड़ते किसान, बेरोजगार युवा, अल्पसंख्यक समुदाय, जागरूक-संगठन सबके लिए, अपनी पहचान की लड़ाई ही सबसे बड़ी है क्योंकि सरकार ने तमाम साधनों से इन्हें गुमनाम करने की साज़िश की है। इस गीत में एक पंक्ति है कि "तेरा डर, तेरा प्यार, तेरी वाह....तू ही रख..!" यह तो तय है हर गलत को नकारना होगा और उसके सामने बुलंद तौर पर खड़ा होना पड़ेगा। लड़ाइयों की खूबसूरती उनके परिणामों में नहीं, उसे लड़ने के लिए इस्तेमाल किये गए तौर-तरीकों में बसती है; आप इतिहास की तमाम क्रांतियों को खोज कर इस बात की पुष्टि कर सकते हैं। 

मैं अपने हक़ के लिए लड़ने को तैयार हूँ, अब बस यह कहना काफी नहीं है, इसके लिए सबसे पहले उन लोगों से लड़ना पड़ेगा जो मेरे अपने हैं "एक ऐसा परिवार जिसे चुनने की आज़ादी मुझे नहीं है लेकिन उनके साथ किन तौर-तरीकों से जीना है इसकी मुझे पूरी आज़ादी है" और यह कथन किसी के भी वामपंथी या काफ़िर होने का सबूत नहीं अपितु सच और इंसाफ के साथ खड़े होने के साहस और विश्वास का सूचक है। 


रिवाज़ों, समाजों और जबरन थोपे गए तर्कों और रिश्तों का बोझ न ढोने का फैसला करना अपने आप में बड़ी जीत है। यह गीत साफ़ तौर पर कहता हुआ दिखता है कि "क्यों सच का सबक सिखाए, जब सच सुन भी ना पाए; सच कोई बोले तो तू, नियम कानून बताये!" मुझे लगता है यही सबसे बड़ी ताकत रही है अब तक हुए और हो रहे तमाम आंदोलनों की कि उन्होंने वादों और प्रलोभनों को छोड़ सच के साथ खड़े होने का निश्चय किया। आप और मैं एक ऐसे देश में हैं जहाँ अपराधी को अपराधी और सुधारक को सुधारक कहने पर केस दर्ज हो सकता है यहाँ तक की जेल भी हो सकती है। 

एक तरफ़ जब दुनिया नफ़रत के रास्तों में दो पल का जुनून तलाश रही है, मेरी ख़्वाहिश है कि हम मोहब्बत की ज़रूरत को समझें जिसमें सारी उमर का सकूं छिपा है, जो सच के साथ और डर के खिलाफ़ बग़ावत की ताकत देती है। प्रेम और करुणा ऐसे हथियार हैं जो साहसपूर्वक शासकों, रूढ़ियों, रिवाज़ों, भ्रमों, झूठ और अंततः नफ़रत से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं और सहयोग भी करते हैं। मेरे लिए सबसे सुखद और संतोषजनक बात यह है कि उपरिलिखित बातें किन्हीं किताबों, भाषणों या फिल्मों से नहीं वरन ख़ुद के जीवन में मिले अनुभवों से लिखी गईं है। तर्क, सत्य, विश्वास और प्रेम यही वे तमाम साधन हैं जिन्होंने मुझे बोलना और जीना सिखाया है फिर चाहे सामने एक जिद्दी शासक हो या रुढ़ियों को सच मानकर जीता हुआ परिवार; मेरे लिए दोनों के सामने बोलना और इंसाफ तक पहुँचना समानरुप से महत्त्वपूर्ण है।

आप भी जीवन के रंगों में अनगिनत खुशियाँ खोजें ऐसी मैं चाहत रखता हूँ। सच को थामिए, प्रेम कीजिये, तर्क दीजिये और बोलिये बाकी सब आप ही ख़ूबसूरत हो जाएगा। मेरे जीवन के सफ़र में संगी-साथी रहे तमाम भद्रजनों और मार्गदर्शक बनकर साथ चले दोस्तों का सप्रेम आभार। सब को नववर्ष की शुभकामनाएँ; आइये मिलकर अपने वक़्त की जरूरतें समझें, अपने साथ आसपास के लोगों के हक़ की बातें करें और इस देश को रहने के लिए ख़ूबसूरत और अमन-चैन वाली जगह बनाएँ।


प्रेम, शुभकामनाएँ और आभार

बोलते रहिये: अपने हक़ के लिए, अपने प्रेम के लिए

और हाँ गाना सुनना मत भूलियेगा......

https://youtu.be/p9DQINKZxWE

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