जिंदगी की राहों से गुज़रते हुए अपने कुछ अनुभव साथ लिए चल रहा हूँ, यहाँ मेरे अन्तर्मन से उपजे प्रेम, समाज, जिंदगी, देश आदि के बारे में विचारों को आप पाएंगे ।
ईश्वर - एक परम सत्य
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एक रचना इस सृष्टि के निर्माता को लेकर, जिससे आज की दुनिया मे हर शख्स बहुत दुर जा चुका है ।
इस कविता से आपको हकीकत से अवगत कराने का प्रयास किया गया है ।
Source - Financial Express हमारा देश इस वक़्त विकास के ऐसे दौर से गुज़र रहा है जिसमें हमें शहरों के साथ साथ गाँवो का विकास करने की भी बहुत ज्यादा आवश्यकता है । कुछ महात्वाकांक्षी लोगों की सोच काफी सही है कि अगर गाँव का विकास देश के विकास से जुड़ा है तो हमें गाँव का विकास राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की सपनों के तले करना चाहिए । वे कहते थे कि " मैं चाहता हूँ कि भारत के सारे गाँव खुद के प्रयासों से इतने आत्मनिर्भर हो जाएं कि उन्हें अपनी किसी भी ज़रुरत के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहना पड़े।" उक्त कथन से स्पष्ट है कि गाँधी जी गांवो को सम्पूर्ण विकास के बावजूद भी गाँव ही रहने देना चाहते थे। गाँव हमारे देश का प्रतिबिम्ब हैं जो प्रकृति के दर्पण में अपनी खूबसूरती लिए झलकता है या यूँ कहे कि इस देश का आँगन है गाँव। आँगन की परिभाषा है घर के सामने का वह हिस्सा, जहाँ छोटा या बड़ा कोई भी हो उसके लिए स्थान है, यह सीखने की वह पाठशाला है जहाँ बच्चा अपनी माँ से, बड़े -बूढ़ों से और इस प्रकृति के साथ रहकर बहुत कुछ सीख लेता है । अगर हमे
मैं तुझे चाँद नही कहना चाहता ना ही तेरी सूरत को चांदनी क्यूँ की चाँद को दुनिया देखती है, लेकिन तुझे मेरी निगाहों के सिवा कोई और इस तरहा देखे मुझे पसंद नही । मैं नहीं चाहता की हम दोनों खुली वादियों की सैर करें, हवाएं किसी को नही बख्शती वो किसी को भी कभी भी छू लेती है, लेकिन तुझे मेरे सिवा कोई छुए मुझे पसंद नही । मैं नहीं चाहता की तू कभी सोलह श्रंगार करके सामने आये, क्यूँकी तुझ पर फ़िदा होकर हर कोई तुझे चाहने लगेगा, लेकिन मेरे सिवा कोई तुझे चाहे मुझे पसंद नही । मैं नहीं चाहता के हम भीगें सावन की पहली बारिश में, भीग जाने से पानी तेरी जुल्फों में अपना अक्स खोकर उतर जायेगा, लेकिन मेरे सिवा तुझमें कोई खो जाये मुझे पसंद नही । .....कमलेश.....
Source - sayfty.com क्या आपने कभी बिना अनुमति की इस दुनिया में अनुमति लेने के बारे में सोचा है? किसी भी प्रकार का संबंध जाने या अनजाने में इसे स्थापित करने की वांछित आवश्यकता से शुरू होता है। जब भी कोई मुझसे सहमति मांगता है तो इस बात का स्वागत करने के लिए बिना शर्त मेरा दिल खुल जाता है कि मेरे सामने वाला व्यक्ति मेरी जरूरतों का सम्मान करने को तैयार है। जब भी मुझे लगता है कि मेरी जरूरतों को उनका वांछित सम्मान दिया जा रहा है, तो मेरा दिल उन सभी अंतरालों को पाटने के लिए हर एक बिंदु को जोड़ लेता है जो किसी भी व्यक्ति के साथ एक मजबूत संबंध बनाने के लिए सामने आ सकते हैं, भले ही वह अपने आप को किसी भी तरह देखे! मैं उस स्थिति के बारे में भी बहुत सोचता हूं जब लोग सहमति नहीं मांगते हैं और सीधे मेरे व्यक्तिगत परिवेश में हमला कर देते हैं; जो हर बार उस पल में उनके साथ मेरे संबंध को नकारात्मक तौर पर ही प्रभावित करता है। मुझे नहीं पता कि यह अन्य लोगों के लिए किस तरह काम करता है, फिर भी मेरा मानना है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी की ज़रूरत की परवाह किए बिना किसी के व्यक्तिगत परिवेश में प्रवेश करता ह
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