जरूरी नहीं कि हमारे आसपास की हर चीज सही हो, कुछ परिस्थितियां होती है जिनमें हमें खुद को उनके अनुरूप या उनको हमारे अनुकूल बनाना पड़ता है । अक्सर हम ये मान लेते हैं कि परिस्थितियों के अनुकूल हो जाना ज्यादा ठीक रहेगा लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि वर्तमान समय के जाने कितने ही मुद्दे और समस्याओं के अनुरूप हम खुद को एक क्या पूरे दस जीवन में भी नहीं ढाल सकेंगे । जब भी कभी घुमने निकलता हूँ तो कुछ मुद्दे अनायास ही मुझे आ-पकड़ते हैं और मैं उनसे उलझा रहता हूँ, उनसे निरंतर, हर बार, हर सफ़र पर झगड़ते हुए इतना तो समझ आता है कि अगर हर व्यक्ति केवल खुद गंभीर होकर बस एक दफा उनका ख्याल करे तो यह तय है कि इन समस्याओं का एक आम समाधान निकल सकता है । यह समाधान चाहता है कि “शुरुआत जो भी हो स्वयं से हो अन्यथा न हो”, वैसे देखा जाये तो आज के समय में ऐसे मामले गाँधीवादी विचारधारा से अत्यधिक सरलता से सुलझाये जा सकते हैं बजाय कि इन्हें व्यर्थ मतलब की आंच पर सेंकने के । ...