ज़रूरत नहीं


खुशियों के बहानों को तुम्हारे
तुम्हें भुलाने की ज़रुरत नहीं,
हंसी के अंदाज़ को अपने
छुपाने की ज़रुरत नहीं ।
जैसी ज़िन्दगी तुमने गुज़ारी है अब तक,
वैसे ही आगे जियोगी तो बेहतर होगा
इस घर में आकर
खुद को बदलने की ज़रुरत नहीं ।

चाहो तुम अगर दो पल सुस्ताना
अपने काम की व्यस्तता में,
तो स्वागत है तुम्हारा
लेकिन मायूसी की इजाज़त नहीं ।
हो जाये गर जो कभी तुम्हारी ख्वाहिश
अपने बचपन को जी लेने की,
तो बेझिझक बच्ची हो जाना
तुम्हें किसी की इजाज़त की ज़रुरत नहीं ।

माना की बंदिशें होंगी
पर चिंता की कोई बात नहीं,
कभी भूलकर सब कुछ
खोना भी चाहोगी कहीं,
तो उस लम्हें के लिए
किसी से डरने की ज़रुरत नहीं ।
जानता हूँ मैं खुद भी
के बड़ा कठिन होगा,
वैसे ही जी-पाना
जैसे अभी जी रहे हैं हम,
निश्चिन्त रहना पर तुम
बाद में भी हमारी ज़िंदगी में,
दखलअंदाजी के लिए होगी
किसी को भी इजाज़त नहीं ।
जैसी ज़िन्दगी तुमने गुज़ारी है अब तक,
वैसे ही आगे जियोगी तो बेहतर होगा
इस घर में आकर
खुद को बदलने की ज़रुरत नहीं ।।
                                     -- कमलेश

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