देश और मौतें

कोई सत्तर बरस पहले
गोडसे ने खुद को मार लिया था,
तब लोग मिठाइयां बांट रहे थे
और कर रहे थे जान बूझकर
अनजान होने की कोशिश ।

फिर शुरु हुआ मौतों का दौर
साल दर साल
लोग मरते रहे,
कभी धरम, तो कभी
ग़रीबी, बेरोज़गारी
और देश के नाम पर,
पर सबसे ज्यादा आहत किया
सियासत ने
जब वह कुछ मौतों पर
जश्न मनाती रही,और
ये भूल गई कि
जो मौतें होने से बच गईं,
अब बेसब्री से इसकी ओर
टकटकी लगाए बैठी है ।

सुनो गांधी,
तुम अकेले नहीं मरे थे
तुम्हारे साथ मर गई
असंख्य संवेदनाएं,
असंख्य चेहरे,
और शहीद हो गया
उस दिन,
एक देश भी ।
              - कमलेश

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