सृजन

मत पूछो मुझसे
कि जो हुआ
वो सही था या ग़लत,
मेरे बस में कुछ था ही नहीं
पता नहीं सब कैसे हुआ
और फिर होता चला गया ।

तेरे होठों की शबनम सा
कोई जाम नहीं जहान में,
मेरे लबों और
तेरी गर्दन के तिल की मुलाक़ात
मुझे हमेशा याद रहेगी,
वो महक तेरे वक्षस्थल की
अब मेरे सीने से रोज़ आया करेगी,
मत करना ये सवाल
कि क्या पाया मैंने तुझमें ?
शायद वही जिसके पीछे
पूरी क्वांटम फिजिक्स पागल है ।

तेरी क़मर और मेरे हाथों की उंगलियां
अब इक-दूजे को जानने लगी हैं
हमारे पैर अब मुलाक़ात के लिए
किसी परिचय के मोहताज नहीं,
सृजन की सबसे उत्कृष्ट प्रक्रिया में
जब कोई शामिल होता है,
तभी जान पाता है कि
किस तरह दो जीवन
हर क्षण हर क़दम
अपना जीवन समर्पित कर,
अदम्य साहस से अनगिनत
कष्टों का आनंद पाकर
सृजित करते हैं एक और जीवन ।

तेरा मधुर आलाप और
मेरे सांसों से घीरे
उन अनेकों स्वरों की ध्वनि का,
कराहटों और रहस्यमयी खुशबूओं का,
मर कर भी अमर होने का,
तमाम बातों को और
सृजन के इस हवन का मर्म,
ईश्वर को भी हासिल नहीं ।
मत चाह रखना कि
तुम समझ सको सृजन को,
यह रचनात्मक अद्वैत है,
इसको समझने की
सारी कोशिशें व्यर्थ ही होंगी ।
                            - कमलेश

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