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सितंबर, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पता

मैं भविष्य को नकार दूँगा जब कोई लिखेगा मुझे ख़त, मेरा अतीत हर उस दरवाज़े पर दस्तक देने के लिए आएगा; जहाँ मैनें कभी ठहरकर उसके वर्तमान के वर्तमान में, अपना पता छुपा दिया था।     ...

जब इश्क़ उतरने लगता है

उनींदी आँखों से सपने चूती उम्मीदें जब तकियों पर सिर पटकते हुए, अपनी मौत का रोना रोते रोते थक जाती है; तब बिस्तर की सिलवटों की ज़ंजीरें ख़ामोशी में चीख़ती बातों को, वैसे ही निगल ...

मेरे तीसरे से पहले

आंखों की थकी पलकों पर सपनों की चिता सुलगने से पहले, उन्हें अपने बच्चों के रंगीन कपड़ों पर टांक देना पूरी नज़ाकत से, जिससे उसकी ख़ुशी वे ढूंढ सकें। होंठो पर आई प्यास के कारण ...

योजनाएं, हकीक़त और सरकार

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पेट्रोल और डीजल के दामों का घोर विरोध कर जनता का मन 2014 में पूरी तरह मोह लेने वाली सरकार के राज में दोनों की कीमतें पिछले 7 सालों में अपने उच्चतम स्तर पर हैं। कर वसूलने के नाम पर अंधाधुंध वसूली और लूट मचाने का सरकारी तरीका ईजाद किया है सरकार ने, केंद्रीय कर असल कीमत का 24-26% और राज्य कर 20-25%, लेकिन इन करों की उपयोगिता का कोई प्रमाण सरकार अब तक नहीं दे पाई है। न ही इनको जीएसटी से बाहर रखने का उचित कारण अभी तक जनता के सामने आया है। हाल ही में एलपीजी सिलेंडर के बढ़ते दाम फिर से इन्हीं सवालों को उठाते हैं कि क्या देश की इकोनॉमी का बढ़ता फिगर ही सब कुछ है, उसके आगे आम आदमी की जेब, मजदूरों की रोटी और किसानों की ज़िन्दगी कोई मायने नहीं रखती?                साल के पहले क्वार्टर में जीडीपी अपने ऊंचे स्तर पर पहुंची है जिसे सब के द्वारा देश का विकास सूचक करार दिया जा रहा है, तो फिर रुपए के गिरते दाम किस की तरफ इशारा कर रहे हैं? इस सवाल का जवाब शायद सबके पास है लेकिन कोई भी उसे स्वीकारने को तैयार नहीं, रुपए और डॉलर के युद...

गुमनाम

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Source - wallhere.com तेरी जानिब जब भी कदम बढ़ते हैं कुछ दूर चलने पर अचानक राहें अजनबी हो जाती है ; फिर भी कभी, जो पहुंच जाऊं तुम तक इन गुमनाम राहों से, तो मुझे तुम अपने पास रख लेना, वैसे ही जैसे स्पंज सोख लेता है पानी, और सुनो तुम्हारी आंखों का इंतज़ार होना ख्वाहिश नहीं, चाहत है कि तेरे चेहरे की हंसी हो जाऊं । मुझे अपने नज़दीक वैसे ही संभाल कर रखना जैसे लॉकर रुम में रखा जाता है किसी का सामान, बिलकुल अजनबियों सा गुमनाम ही रखना मुझको तुम, नाम की भीड़ बहुत है इस दुनिया में । कोई पहचान नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे करीब जब भी रहूं मैं, मैं नहीं चाहता हूं कि कोई देख ले मुझे तुमको जीते वक़्त, तुझमें से कोई ढूंढ ना पाए मुझको कभी भी, चाहे वो कितना भी अच्छा चोर क्यों ना हो । छुपाओ मुझको अगर तो ऐसे छुपाना, जैसे राम ने अपने वनवास में छुपाया था सीता को ।।                        - कमलेश