गुमनाम

Source - wallhere.com

तेरी जानिब
जब भी कदम बढ़ते हैं
कुछ दूर चलने पर
अचानक
राहें अजनबी हो जाती है ;
फिर भी कभी,
जो पहुंच जाऊं तुम तक
इन गुमनाम राहों से,
तो मुझे
तुम
अपने पास रख लेना,
वैसे ही जैसे
स्पंज सोख लेता है पानी,
और सुनो
तुम्हारी आंखों का
इंतज़ार होना ख्वाहिश नहीं,
चाहत है कि
तेरे चेहरे की हंसी हो जाऊं ।
मुझे अपने नज़दीक
वैसे ही
संभाल कर रखना
जैसे
लॉकर रुम में रखा जाता है
किसी का सामान,
बिलकुल अजनबियों सा
गुमनाम ही रखना
मुझको तुम,
नाम की भीड़ बहुत है
इस दुनिया में ।
कोई पहचान नहीं चाहिए
मुझे
तुम्हारे करीब जब भी रहूं मैं,
मैं नहीं चाहता हूं कि
कोई देख ले मुझे
तुमको जीते वक़्त,
तुझमें से कोई ढूंढ ना पाए
मुझको कभी भी,
चाहे वो कितना भी अच्छा
चोर क्यों ना हो ।
छुपाओ मुझको अगर
तो ऐसे छुपाना,
जैसे
राम ने अपने वनवास में
छुपाया था सीता को ।।
                       - कमलेश

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गांव और देश का विकास

मुझे पसंद नहीं

सहमति और हम - भावनात्मक जीव