मैं चाहता हूँ
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मुतमइन रहता था एक शख़्स, जब अपनी आँखों के आगे वह देखता था घने दरख़्त औ' सब्ज़ ज़मीं, एक रात थोड़ी ठहर कर गुज़री ऐसे उसे कोई सपन तक न आ पाया, सुबह तक दरख़्त औ' ज़मीं गर्दन तलक पानी में डूब चूके थे। गुहार लगाता भी तो वह किस से? जो थे सुनने वाले उन्हीं ने डैम के दरवाज़े साहब के कहने पर खुलवाये थे। Source - Imperiya.by अपने मुस्तक़बिल पर रोती है इक औरत पुराणों में जिसको वसुधा कहा है हमने, एक बार भी नहीं सोचते अब हम कि वासना का हमारी अंजाम किस दिशा से लौटकर आने वाला है! दिल थाम कर बैठिये अभी तो दिल्ली धुआँ हुई है, कल समंदर आपके घर का भी पता पूछने आएगा। वह रो रहा था कल नदी के किनारे बैठा कि मंदिर का फैसला जनवरी में आएगा, उसे तो यह तक याद नहीं कि ख़ुद उसने अपने पिता से ठीक से बात कब की थी? नाम बदलता है कोई करोड़ों में मेरे शहर का, जाकर देखे तो सही कोई रात में जे.जे. कॉलोनी का मंज़र, मज़ाल जो अगली सुबह हलक़ से निवाला उतर जाए! एक बिल्ली को पत्ते खिलाकर पालता है ख़ुद लोथड़े खाता इक परिवार, मैं जानता हूँ जिस दिन वह बंदर बच्चे के हाथ से रोटी छीनकर भागेगा, तब समझ में ...