एकता दिवस और हम


Source - Times Now

सरदार वल्लभ भाई पटेल की शख़्सियत पर मुझे कोई शंका नहीं लेकिन उनके नाम के तले जो पाखण्ड हो रहा है उसके बारे में हमें एक दफ़ा तो ज़रूर सोचना चाहिए। एक तरफ जहाँ 24 करोड़ लोग भूख, पानी, स्वास्थ्य की सुविधाओं से वंचित हैं सरकारें अपना अहं संतुष्ट करने के लिए प्रतिमाएं बनवा रही हैं, जी हाँ मैं गुजरात की एकता की प्रतिमा और महाराष्ट्र में कुछ समय में बनाई जाने वाली शिवाजी की प्रतिमा और साथ ही मंदिरों, मस्जिदों और अन्य धर्मस्थलों के बनाये जाने की ख़िलाफ़त करता हूँ। 3000 करोड़ रुपयों की रकम जो लग चुकी है और वह जो आगे खर्च की जाएगी, हर तरह से उन 24 करोड़ लोगों तथा 134 करोड़ देशवासियों के हित में उपयोग की जा सकती थी। प्रतिमा बनाने के निर्णय का समर्थन करने वाले एक दफ़ा वहाँ जाकर देख आएं कि क्या मंज़र है! वहाँ के रहवासियों को कितनी तकलीफें उठानी पड़ी हैं, आज के कार्यक्रम के लिए नदी को पानी से भरा हुआ दिखाना है जिसकी कीमत वहाँ के छोटे किसान चुकायेंगे, क्योंकि उनको बग़ैर किसी पूर्व जानकारी के डैम से पानी छोड़ दिया गया है, अब इतना तो सोच ही लीजिए कि खड़ी फसल या सब्जियाँ पांच से छः दिन पानी में रहेंगी तो क्या हाल होगा।
       मैं एक बार पुनः दोहराता हूँ कि यह काज केवल और केवल अहं की संतुष्टि और ख़ुद को बड़ा दिखाने के लिए किया जा रहा है। सरदार अगर होते तो इसका कदापि समर्थन नहीं करते, बाकी मैं इतना अधिक आशावादी भी नहीं कि इस सब के बावजूद एकता दिवस की शुभकामनाएं भी दे सकूं।
                                                  - कमलेश

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