मैं और स्त्री
दुनिया ने जब सुनाया अपना संगीत,
तो सबसे पहले उसे सुना
एक खेत में काम करती स्त्री ने।
संगीत का सफ़र अनवरत रहा
अनगिनत राहों और मोड़ से होते हुए,
मैंने कानों में सुनी उस स्त्री की गूँज।
जब से साबका हुआ है हक़ीक़त से
मैं ठहरकर देखता हूँ
हर उस स्त्री को
जो लगती है मुझे
बुद्ध के मौन और कृष्ण की अनुगूँज सी।
हज़ार राहें गुज़र गईं
इन 22 बरस के क़दमों तले होकर,
मुझे मिली हर स्त्री ने मुझको
दिया ज़िन्दगी के अनमोल पाठों का सार;
मैंने ज़िद, समझ, विश्वास, समर्पण, प्रेम
करुणा, ममता, आदर सी लगती हर बात को
सीखा है स्त्री के वजूद से टपकते सच में।
मेरा जीवन अधूरा है उस कली के खिलने तक
जिसे किसी दिन खेत में काम करने आयीं,
और अपने पसीने से लथपथ तन से
समूचे विश्व के अस्तित्व का भार उठाती:
एक निश्चल सी स्त्री ने पानी पीने के बाद
लौठे में बचे पानी को गिराया होगा पौधे पर।
मेरी आंखों के आगे फैले संसार में
जितना कुछ मैं देख पाता हूँ
मुझे यकीन है कि
स्त्री के होने से ही मिल जाया करती हैं
मेरे अस्तित्व को अनगिनत परिभाषाएं,
दुनिया ढूंढ़ रही है सारे समाधान
किताबों, विज्ञान और अंतरिक्ष की सीमाओं में;
मैं लेकिन पा लूंगा तमाम रहस्य
एक स्त्री की प्रेम से सरोबार आंखों में।
- कमलेश
Bhaut hi pyar bhara blog likha hai Kamlesh bhai....♥️♥️👏👏👏👏👏👏👏👏👏
जवाब देंहटाएं