बहुत दिनों के बाद

                  

 
"उसकी नींद दरवाजे पर किसी की दस्तक की वजह से टूटी, उसने बिस्तर से ही पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. उसने उठकर दरवाजा खोला और पाया कि बाहर कोई नहीं था. कितनी ही बार दिल में ख़यालों की दस्तक से हम जाग पड़ते हैं इस उम्मीद में कि कोई ख़्वाब हक़ीकत बनकर दरवाजे आ गया है. दरवाजे और दिल की दस्तक में कितना अंतर है यह सुनने पर ही जाना जा सकता है. कुछ देर अँधेरे में भटकने के बाद उसने कमरे की बत्ती जलाई और हाल ही में आई एक किताब को पढ़ने बैठ गया. बड़े दिनों बाद उसने सुबह उठकर किताब को हाथ में लिया था, कुछ देर में ही वह किताब में घुल गया. अचानक हुए शोर से उसका ध्यान टुटा जो सामने वाली गली से आ रहा था उसने सोचा कि रोज़ की तरह लोग पानी भरने के लिए झगड़ रहे होंगे और बालकनी तक जा लौट आया. लौटकर आने पर उसे लगा की कमरे में कुछ बदल गया है जो उसके जाने से पहले वहाँ नहीं था. अक्सर ऐसा होता है कि कुछ कैद करने के जुनूं में कुछ महसूस करना छुट जाता है और इसके साथ भी यही हुआ. जिस कमरे में वह इतने दिनों से रह रहा था उसकी सोहबत को ही महसूसना भूल गया था..." यह एक अधूरा किस्सा है जिसे लिखने की नाकाम कोशिश इस समय खिड़की के पास अपनी मेज़ पर बैठे हुए मैं कर रहा हूँ. जब कुछ अधूरा छुट जाता है तो उसे पूरा करने की कसक ताउम्र रगों में घुलकर दोड़ती रहती है और हम कभी जान ही नहीं पाते कि क्यूँ किसी अच्छी चीज़ को पा जाने के बावजूद हमारे दिल में अधूरेपन की कसक पलती रहती है. न जाने कितने ऐसे किस्से मैं छोड़ता रहा अधूरे, जब जब मुझे लगा कि मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा है. मैं रिसर्च के बाद और तयशुदा वक़्त पर कभी भी नहीं लिख पाया. मुझे लगता है कि मैं जब भी लिखता हूँ अपनी आत्मा के वस्त्रों को एक एक कर उतारता जाता हूँ और जब तब लिखना ख़त्म होता है मैं ख़ुद के सामने बेनकाब और नंगा हो चुका होता हूँ. फिर से खाली हाथ, अनुभव करने और फिर एक बार लिखने को बेताब! 
- कमलेश 

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