सहमति और हम - भावनात्मक जीव
Source - sayfty.com |
क्या आपने कभी बिना अनुमति की इस दुनिया में अनुमति लेने के बारे में सोचा है?
किसी भी प्रकार का संबंध जाने या अनजाने में इसे स्थापित करने की वांछित आवश्यकता से शुरू होता है। जब भी कोई मुझसे सहमति मांगता है तो इस बात का स्वागत करने के लिए बिना शर्त मेरा दिल खुल जाता है कि मेरे सामने वाला व्यक्ति मेरी जरूरतों का सम्मान करने को तैयार है। जब भी मुझे लगता है कि मेरी जरूरतों को उनका वांछित सम्मान दिया जा रहा है, तो मेरा दिल उन सभी अंतरालों को पाटने के लिए हर एक बिंदु को जोड़ लेता है जो किसी भी व्यक्ति के साथ एक मजबूत संबंध बनाने के लिए सामने आ सकते हैं, भले ही वह अपने आप को किसी भी तरह देखे!
मैं उस स्थिति के बारे में भी बहुत सोचता हूं जब लोग सहमति नहीं मांगते हैं और सीधे मेरे व्यक्तिगत परिवेश में हमला कर देते हैं; जो हर बार उस पल में उनके साथ मेरे संबंध को नकारात्मक तौर पर ही प्रभावित करता है। मुझे नहीं पता कि यह अन्य लोगों के लिए किस तरह काम करता है, फिर भी मेरा मानना है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी की ज़रूरत की परवाह किए बिना किसी के व्यक्तिगत परिवेश में प्रवेश करता है तो उसे वैसा ही महसूस होता होगा जैसे मुझे होता है!
कुछ साल पहले की बात है जब मेरे एक दोस्त ने मुझसे अनुरोध किया था कि अगर मैं किसी और व्यक्तिगत या सामाजिक परिवेश में प्रवेश करना चाहता हूँ तो उनसे एक दफ़ा पूछ लूँ! शुरुआत में मेरे लिए यह सब बिलकुल नया था और मुझे कुछ भी पूछने में बहुत अजीब लगा और झिझक महसूस हुई। धीरे-धीरे मुझे इसका जादू महसूस होने लगा। रिश्तों को नाटकीय रूप से बदलने के लिए सहमति के कुछ छोटे-छोटे सवालों का असर अनुभव करना एकदम अलग था। कुछ भी करने से पहले पूछ लेने की शक्ति का अनुभव करते हुए मैं एक ही समय में अभिभूत और संतुष्ट दोनों था। जोकि सवाल पूछने के लिए पूछने जितनी साधारण बात से लेकर किसी से कुछ लेने या देने के लिए पूछने तक है.
जिस तरह से मैंने अब तक इन चीज़ों का अभ्यास किया है और अभी भी उनमें सुधार की गुंजाइश रखता हूँ; पूछने, फिर उसे करने और मेरे साथ के व्यक्ति की ज़रूरत के अनुसार खुद को रोक लेने में जो अनुभव मुझे प्राप्य है, वह मेरे लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। जब मैंने पहली बार इसके बारे में जाना था, तब मैंने इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं, लेकिन अब मुझे लगता है कि यह किसी भी चीज़ में घुल जाने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। ऐसा करते समय मैंने एक और सुंदर चीज सीखी है और वह यह कि पूछना (विशेष रूप से बिना किसी अपेक्षा के पूछने की प्रक्रिया) मुझे परिणामों के बारे में सोचने के बोझ से मुक्त करती है और मैं इसमें ख़ुद को जी लेने का पूरा आनंद ले पाता हूँ।
मैं आपसे एक अनुरोध करना चाहता हूँ कि जब भी आप किसी के व्यक्तिगत परिवेश में प्रवेश करने का इरादा रखते हैं तो एक बार पूछें ज़रूर (यदि सबके साथ नहीं तो कम से कम मेरे साथ अवश्य)!
अंत में, याद रखने वाली दो महत्त्वपूर्ण बातें; अपेक्षा को केंद्र में रखे बिना पूछें व पूछने से पहले अपेक्षा न करें!- कमलेश
क्या आपने कभी बिना अनुमति की इस दुनिया में अनुमति लेने के बारे में सोचा है?
किसी भी प्रकार का संबंध जाने या अनजाने में इसे स्थापित करने की वांछित आवश्यकता से शुरू होता है। जब भी कोई मुझसे सहमति मांगता है तो इस बात का स्वागत करने के लिए बिना शर्त मेरा दिल खुल जाता है कि मेरे सामने वाला व्यक्ति मेरी जरूरतों का सम्मान करने को तैयार है। जब भी मुझे लगता है कि मेरी जरूरतों को उनका वांछित सम्मान दिया जा रहा है, तो मेरा दिल उन सभी अंतरालों को पाटने के लिए हर एक बिंदु को जोड़ लेता है जो किसी भी व्यक्ति के साथ एक मजबूत संबंध बनाने के लिए सामने आ सकते हैं, भले ही वह अपने आप को किसी भी तरह देखे!
मैं उस स्थिति के बारे में भी बहुत सोचता हूं जब लोग सहमति नहीं मांगते हैं और सीधे मेरे व्यक्तिगत परिवेश में हमला कर देते हैं; जो हर बार उस पल में उनके साथ मेरे संबंध को नकारात्मक तौर पर ही प्रभावित करता है। मुझे नहीं पता कि यह अन्य लोगों के लिए किस तरह काम करता है, फिर भी मेरा मानना है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी की ज़रूरत की परवाह किए बिना किसी के व्यक्तिगत परिवेश में प्रवेश करता है तो उसे वैसा ही महसूस होता होगा जैसे मुझे होता है!
कुछ साल पहले की बात है जब मेरे एक दोस्त ने मुझसे अनुरोध किया था कि अगर मैं किसी और व्यक्तिगत या सामाजिक परिवेश में प्रवेश करना चाहता हूँ तो उनसे एक दफ़ा पूछ लूँ! शुरुआत में मेरे लिए यह सब बिलकुल नया था और मुझे कुछ भी पूछने में बहुत अजीब लगा और झिझक महसूस हुई। धीरे-धीरे मुझे इसका जादू महसूस होने लगा। रिश्तों को नाटकीय रूप से बदलने के लिए सहमति के कुछ छोटे-छोटे सवालों का असर अनुभव करना एकदम अलग था। कुछ भी करने से पहले पूछ लेने की शक्ति का अनुभव करते हुए मैं एक ही समय में अभिभूत और संतुष्ट दोनों था। जोकि सवाल पूछने के लिए पूछने जितनी साधारण बात से लेकर किसी से कुछ लेने या देने के लिए पूछने तक है.
जिस तरह से मैंने अब तक इन चीज़ों का अभ्यास किया है और अभी भी उनमें सुधार की गुंजाइश रखता हूँ; पूछने, फिर उसे करने और मेरे साथ के व्यक्ति की ज़रूरत के अनुसार खुद को रोक लेने में जो अनुभव मुझे प्राप्य है, वह मेरे लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। जब मैंने पहली बार इसके बारे में जाना था, तब मैंने इस बारे में ज्यादा सोचा नहीं, लेकिन अब मुझे लगता है कि यह किसी भी चीज़ में घुल जाने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। ऐसा करते समय मैंने एक और सुंदर चीज सीखी है और वह यह कि पूछना (विशेष रूप से बिना किसी अपेक्षा के पूछने की प्रक्रिया) मुझे परिणामों के बारे में सोचने के बोझ से मुक्त करती है और मैं इसमें ख़ुद को जी लेने का पूरा आनंद ले पाता हूँ।
मैं आपसे एक अनुरोध करना चाहता हूँ कि जब भी आप किसी के व्यक्तिगत परिवेश में प्रवेश करने का इरादा रखते हैं तो एक बार पूछें ज़रूर (यदि सबके साथ नहीं तो कम से कम मेरे साथ अवश्य)!
अंत में, याद रखने वाली दो महत्त्वपूर्ण बातें; अपेक्षा को केंद्र में रखे बिना पूछें व पूछने से पहले अपेक्षा न करें!
- कमलेश
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