रंगीन परिंदा


लम्हों को लेकर आगोश में
इन सर्द हवाओं से टकराया
एक बैरंग परिंदा स्याह रात में
मंडराता हुआ उस पेड़ के पास |
 
आँखे थी उसकी चमकती हुयी
शायद ख्वाब बिछे थे वहाँ
काले विशाल से उसके पर
होसले सिमटे थे उसके जहां
देखा था शायद उसने
मंजिल का कोई निशान
साँसे थी उसकी थमी हुयी
नजरें भी थी गड़ी हुयी
एक अचूक निशाना उसका यूँ
जाकर के लगा शिकार पर
ताक़त उसकी लगी थी पूरी
अपनी मंजिल की राह पर
फिर किया उसने अंतिम प्रहार
चित करके सारी अड़चन को
कस कर जब वापस वो उडा
अपने शिकार को पंजों में
ख़ुशी थी उस आवाज़ में
बैरंग से रंगीन हो गया
उस काली स्याह रात में
अपना उजाला भर गया ।
 
                        .....कमलेश.....

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