चाहत


ठोकरों से बिखरा हुआ मैं
तुझसे जुड़ कर अवतार होना चाहता हूँ |
 
डूबकर के तेरे इश्क़ में
इस समंदर से पार होना चाहता हूँ |
 
खुद को खो चूका मैं
तुझको जीतकर हार होना चाहता हूँ |
 
बनाकर साँसों को कलम
तुम्हारे लिए गीतकार होना चाहता हूँ |
 
सुन ले खुदा तू अरज मेरी
अस्तित्व खोकर निराकार होना चाहता हूँ |
 
                                      .....कमलेश.....

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गांव और देश का विकास

मुझे पसंद नहीं

सहमति और हम - भावनात्मक जीव