रंग और प्रतिबिंब
तुम्हारे दूर चले जाने के बाद
रात नहीं ढलती है
ना ही सुबह होती है,
दिन तो होता है
लेकिन वह केवल,
रात का बदला हुआ रंग है ।
रात नहीं ढलती है
ना ही सुबह होती है,
दिन तो होता है
लेकिन वह केवल,
रात का बदला हुआ रंग है ।
बदलती रात और बदलता रंग
कोई उम्मीद नहीं, सिर्फ मौन
और एक दर्पण ;
जिसमें भी
अपनी ही आँखो का एक,
अपरिचित प्रतिबिंब दिखता है ।
कोई उम्मीद नहीं, सिर्फ मौन
और एक दर्पण ;
जिसमें भी
अपनी ही आँखो का एक,
अपरिचित प्रतिबिंब दिखता है ।
तुम्हारे लौट आने से,
रात के बदलते रंग के साथ
रंग बदल जाए शायद,
दर्पण में दिखने वाले प्रतिबिंब का भी ।
.....कमलेश.....
रात के बदलते रंग के साथ
रंग बदल जाए शायद,
दर्पण में दिखने वाले प्रतिबिंब का भी ।
.....कमलेश.....
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