तुम और वेदांत दर्शन .....
तुम मेरे वेदांत दर्शन का,
वह मूल प्रश्न हो
जिसका उत्तर जानने पर,
मैं समूचे ब्रम्हांड को जान सकूंगा ।
तुम सच्चिदानंद की वह अवस्था हो,
जिसमें खुद को खोकर
मैं सब कुछ पा सकता हूँ ।
तुम उस संसार का स्वरुप हो,
जिसमें आत्मा
एक जीवन का उत्सर्ग करने के बाद,
दूसरे का इंतजार कर रही होती है ।
तुम वेदांत दर्शन में उल्लेखित
वह आत्म-साक्षात्कार हो,
जिसके मिल जाने से
मृत्यु से पूर्व ही मोक्ष मिल जाता है ।
मेरी या तुम्हारी तरह
प्रेम भी सबके वश में है,
लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं
कि सबके सब प्रेमी हो जायें ।
.....कमलेश.....
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