पहला चुम्बन


       
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 कुछ बातें वैसे ही याद रह जाती है जैसे किसी अच्छी होटल का खाना । बात अगर कही जाए तो दो लफ्ज़ में कही जा सकती है लेकिन बिना बेक ग्राउंड के उसे समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है । आयुष बिना कुछ सोचे समझे अपने कंधे पर एक बैग लादे, सितारा बस में चढ़ा । सारे रास्ते पूराने ख्यालों के पुलिंदे पलटता रहा जो उसे हर लाइन पर मुस्कुराने के लिए बाध्य कर रहे थे । पांच बजकर बीस मिनट पर आयुष नाका नम्बर पांच पर अपने सामान को थामे उतरा । निकट ही के एक रिश्तेदार के घर जाकर जो कि नाके की बगल वाली गली में था वहाँ अपना सामान रख दिया और मोबाइल में अपनी बर्थ की करेंट स्टेटस चेक करने के बाद फिर बाहर सड़क पर घुमने के लिए निकल गया ।
                    घूमते हुए जब वह चौराहे पर पहुंचा तो उसे याद आया कि शिवानी की कोचिंग क्लासेस इसी एरिया में पड़ती है । करीब पौने छः बजे तक वह ऐसे ही टहलता रहा मानो उसे किसी का इंतज़ार हो । उस चौराहे पर गुजरने वाली गाड़ियों की गिनती वह ऐसे करता रहा जैसे कोई बच्चा आसमान के तारे गिना करता है । लगभग लगभग सारे ही नम्बर और अजनबी चेहरों को देखते देखते उसे बीते दिनों में पहली बार लगा कि अनजाने में इंतजार कोई कैसे किया करता है जिसका अनुभव उसे आज के पहले नहीं था । आयुष अपनी लहराती नज़र हर चालीसवें सेकंड बांयी ओर से आने वाली सड़क पर घुमा रहा था जिसमें एक बड़ी स्टेशनरी और कुछ फल-सब्जियों के ठेले लगे हुए थे । वैसे हमें यह पता होना चाहिए कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, इंतजार कैसा भी हो बैचैन रहने वाला शख्स हर पल का हिसाब रखता है । इंतज़ार की इसी उधेड़बुन में सहसा उसने पाया कि एक जानी पहचानी शक्ल भीड़ से उसकी ओर आ रही है, किसी अच्छी चाय की दो चुस्की ले-सकने वाले वक़्त के बाद उसे शिवानी की स्पष्ट सूरत नज़र आई, सब कुछ वैसे ही ठहर गया जैसे बचपन में बरफ-पानी खेलते वक़्त डेनी के बरफ कहने पर ठहर जाया करता था । खैर, कुछ देर बाद शिवानी आयुष के करीब पहुँच गयी और उसकी आँखों में भी वही अप्रत्याशित इंतज़ार था जिसका उसे भी अब तक एहसास नहीं हुआ था । फिर खैरियत पूछने वाली फॉर्मेलिटी पूरी हो चुकने के बाद, और बातों का असल रूप सामने आने लगा । बहुत उखड़ी हुई सी सूरत थी दोनों की जैसे किसी ने कहा हो कल से ही एंड-सेमेस्टर का एग्जाम शुरू होने वाला है और उनकी तैयारी का प्रतिशत शून्य रहा हो ।

          जँहा वे दोनों खड़े थे पास ही एक मकान का निर्माण कार्य चल रहा था, जिसकी आवाजों ने उन्हें डिस्टर्ब करना चाहा लेकिन आवाजें नाकाम हुई । अपनी बेसब्री की हालत बयान करने के बाद दोनों इस बात को लेकर हिचकिचा रहे थे कि पहल कौन करे, यंहा किस चीज़ की पहल की बात हो रही है उसे परिभाषित करना बेवकूफी ही होगी इसलिए रहने दिया जाये तो ज्यादा बेहतर होगा । शिवानी का ध्यान बार बार घड़ी की ओर था जो कि अपना स्वर्ण रूप लिए आयुष के हाथों की शोभा बड़ा रही थी । शिवानी ने समय देखने के बहाने आयुष का हाथ थामा तो आयुष ने उसे खिंचकर अपने गले लगा लिया, कितनी देर तक ? यह किसी को आज तक पता नहीं चला है और ना चलेगा । पहल वाले सवाल का जवाब अब तक उन्हें भी, आसपास वालों को भी और बाकियों को भी सहज ही मिल गया था, फिर शिवानी ने आयुष से वक़्त पूछा जो कि वह बताना नहीं चाह रहा था और इस वक़्त सबसे अच्छा किरदार निभाया घड़ी के सेल ने जो कि काफी समय पहले इस दुनिया को छोड़कर चला गया था और घड़ी 5 बजकर 45 मिनट दिखा रही थी । हमारी ज़िन्दगी कई मर्तबा हमारा साथ इतनी अच्छी तरह से निभाती है कि हम अचरज में पड़ जातें हैं और सोचते हैं कि साला सपना है या हकीक़त ।

                              शिवानी और आयुष उस निर्माण कार्य वाली बिल्डिंग से दूर निकलकर रोड पर आ गए, दोनों की इच्छा थी कि कुछ समय और बिताया जाये लेकिन नियति नहीं चाहती थी कि इनका साथ इस समय कुछ देर और रहे, क्योंकि समय शिवानी को घर जाने के लिए बुला रहा था और वह उसकी बात ऐसे टाल रही थी जैसे पर्याप्त पैसे ना होने पर कोई असमर्थ जोड़ा अपने बच्चों की बातों को अनसुना करता है । वैसे भी दिन नवम्बर के थे तो अँधेरा जल्दी ही अपने तेवर दिखाने लगा था लेकिन जब ये युगल एक दुसरे को फिर मिलने के वादे के साथ अलग होने लगा तो अँधेरा ऐसे बेबस हो गया जैसे फ़ोन पर बतियाते वक़्त सामने वाले हमारे प्रिय व्यक्ति के द्वारा हमारी कॉल होल्ड पर रख देने के बाद हम हो जाते हैं । सहसा शिवानी टेम्पो से उतर कर लौटी और आयुष के पास आई, कद में थोड़ा सा अंतर होने के कारण उसने किसी रहस्यमयी बात को बताने के लिए आयुष को थोड़ा नीचे झुकने का इशारा किया जैसे वो बताने वाली हो कि मोदी जी का विकास उसे कहीं दिखा था । आयुष झुका रहस्य को सुनने और आशा के विपरीत उसे मिला अपनी प्रेमिका द्वारा पहला चुम्बन जो कि कान को हौले से पकड़कर दिया गया था । शिवानी ने पलटकर जाना चाहा ही था कि आयुष ने उसे हाथ थामकर अपनी ओर खिंचा और प्रेम में मिले इस छोटे से कर्ज़ को तत्काल प्रभाव के साथ अदा कर दिया, जिसमें अपनी प्रेमिका को दिया गया पहला चुम्बन और विदा होते वक़्त दिया जाने वाला आलिंगन था । इसके बाद दोनों अलग हुए और अपने क़दमों को, जो चलने को बिलकुल तैयार नहीं थे जबरन आगे की ओर धकेलने लगे, शिवानी टेम्पो में बैठी और तत्काल टेम्पो ड्राईवर चल दिया मानों वह किसी ट्रेन के ग्रीन सिग्नल की तरह उसका ही इंतज़ार कर रहा था । इंतज़ार वाला इंतज़ार और ना किये जाने वाले इंतज़ार का अंतर समझकर आयुष अपने क़दमों और दिल से लड़ता झगड़ता  अपने रास्ते चल दिया ।।
                                                .....कमलेश.....




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