ख़त
अपनी प्रेयसी के लिए
ना जाने किस तरह
खुद का
कलेजा निकालकर रखता है,
एक प्रेमी
खुद के टुकड़ों को समेटकर,
उसे ख़त लिखता है ।
एहसासों की फेहरिस्त
बनाए नहीं बन पाती,
कुछ बंदिशें
अल्फाज लगाते हैं
उसकी आरजुओं के आगे,
फिर भी बिखेरकर अरमानों को
वह उसे ख़त लिखता है ।
ख़त में सिमटे होते हैं
कुछ आँसू,
कुछ वादे,
कुछ यादें,
कुछ सिलसिले,
जिनको लिखने की
कभी उसकी हिम्मत नहीं होती,
फिर भी ख़त इनको सहेजता है ;
कुछ ख़त,
ख़त खुद भी लिखता है ।
.....कमलेश.....
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