एक बात

जब लगा डर मुझको
कुछ रिश्तों के खो जाने का,
तो मैंने उनको
सिर की पोटली से उतारकर,
अपनी कमर में खोंस लिया ।

कुछ मुलाकातें जो जा रही थी
अपने पीछे एक ख़ाली जगह छोड़े,
मैं आगे बढ़ा और
उस जगह को मेरे होने में समेट लिया ।

कुछ लम्हें वक़्त से मजबूर
जाने ही वाले थे कि मैंने,
वक़्त से इजाज़त ले ली
उनके ही साथ चलने के लिए ।

कुछ भाव के अंकुर फूट रहे थे,
जो दिल से निकल दुनिया में
आने के लिए बहुत उत्सुक थे,
मैं उठा और घर के सारे
दरवाज़े और खिड़कियां खोल दी ।

एक बात जो मेरे कह देने के बाद
मुझको मरती हुई सी मालूम हुई,
तो मैंने उसको
न कहकर जिंदा रख लिया ।
                                - कमलेश

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