काफी नहीं होगा

मेरे आसुंओं पर बड़ा देना यूँ रुमाल काफी नहीं होगा,
हर बार की तरहा मेरे ग़म बाँट लेना काफी नहीं होगा।

वक़्त बाँटने की कीमतें आसमान छूने लगी हैं अब तो,
सिर्फ एक शाम के लिए यहाँ आना काफी नहीं होगा।

बन्दिशें तमाम लगा दी हैं इस ज़माने ने मोहब्बत पर,
अब एक ही बार इश्क़ में डूब जाना काफी नहीं होगा।

तुम खड़े तो हो कब से मेरे इंतज़ार में उस पीपल के तले,
पर मिलते ही लग जाना गले इस दफ़ा काफी नहीं होगा।     

मैं ज़मीं पर बैठकर आसमान छूने की फिराक़ में हूँ,
मुझको छोड़ देना पंछियों के बीच काफी नहीं होगा।

ख़बर पढ़कर जब तुम्हारा दिल दहलने लगे हर रोज़,
तो चाय पर बैठकर बतियाना फिर काफी नहीं होगा।

सोचते हो ‘गर कि डोलती हुई कुर्सी अब गई के तब गई,
तो खिड़कियों से देखते रहना तमाशा काफी नहीं होगा। 

अपनी ज़िन्दगी के किस्से इत्मीनान से सबको सुनाने वालों,
तुम्हारे तकाज़े की छाँव में बिठा लेना अब काफी नहीं होगा। 

बाँट दिया है ख़ुद को कितने ही टुकड़ों में मैंने कब से,
चार कंधे और एक कफ़न मेरे लिए काफी नहीं होगा।
 
                                                          - कमलेश

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