खुशियाँ, हम और दुनिया

आकस्मिक चीज़ें जितनी खुशियाँ देती है, वह खुशी निर्धारित चीजों से कभी नहीं मिल पाती। 2 नवंबर को मिले एक व्हाट्सअप मैसेज ने पिछले 5 दिनों में जितनी खुशियाँ, हँसी और यादें दी हैं वह मुझे ढूँढने पर तो कभी भी नहीं मिलती।
             
               मैं पिछले दिनों दीवाली पर घर गया था वहाँ प्रदूषण, न्याय और राजनीति जैसे मुद्दों पर काफी चर्चा का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला, क्योंकि ये चर्चा युवा दोस्तों और गाँव के लोगों के बीच बैठकर हुई। ऐसी घटनाओं से यह विश्वास और भी गहरा जाता है कि बदलाव किया जा सकता है और वह भी लोगों के साथ मिलकर, युवा दोस्तों में बहुत ऊर्जा है जिसका उपयोग वह सही दिशा में करना चाह रहे हैं, मार्गदर्शन जिस तरह अपने सहयोगियों से मुझे मिलता रहा है यह कवायद अब गाँव में भी शुरू हुई है कि जिस किसी को भी कोई सहयोग चाहिए वह सबसे संपर्क स्थापित करे ताकि समय पर काम हो सके। गाँव की बदलती हवा ने मुझे अपने सपनों और ज्यादा दृढ़ता से देखने की हिम्मत दी है।
       
Source - Labhya.org
          गाँव से दिल्ली की वापसी में मैं पिछले 4 दिन मथुरा के पानीगाँव में बिताकर लौटा हूँ, लभ्य फाउंडेशन(www.labhya.org) टीम के 5 सदस्य वेदान्त, अमन, रमा, कोमल और मैं, एक माध्यमिक विद्यालय को अपनी कोशिशों से खूबसूरत बनाने में लगे रहे, जिसमें वहाँ के उपप्राचार्य जितेंद्र जोशी जी का अमूल्य योगदान रहा और हमें इनसे जोड़ने वाली विद्यालय विस्तार टीम का भी, जोकि भारत विकास न्यास के साथ वर्तमान में कार्यरत है। 4 दिनों में वहाँ के बच्चों और रहवासियों के साथ ढेर सारी बातें भी हुई और स्कूल की पेंटिंग भी। मुझे कुछ गाँव वालों से निजी तौर पर भी बातें करने का अवसर मिला, जिसमें उन्होंने गाँव के हालात और अपनी मुश्किलों का ज़िक्र भी किया कि किस तरह सरकारी या आसपास के गाँव से मदद न मिलने के कारण वहाँ के अधिकांश लोग एक ही फ़सल बोते हैं बावजूद इसके कि उनके पास विकल्प उपलब्ध हैं। गाँव की ओर से मुँह मोड़ती सरकारी नीतियाँ और आधुनिक विकास की राह, इस बात का संकेत है कि हम स्वार्थीपन को बढ़ावा देने के सिवाय कुछ नहीं कर रहे, विकास की पगडण्डी जब तक गाँव से होकर नहीं गुज़रेगी हम नए शिखर तो पाएँगे लेकिन उतनी ही गहरी ख़ुद की कब्र खोदने के बाद। जब तक समग्र सततपोषणीय विकास(sustainable development) की नीतियाँ नहीं बनेगी तब तक प्रदूषण, बाढ़, तूफान और तो और दंगे-फसाद जैसी मुश्किलें ख़त्म नहीं होंगी।
Source - Labhya.org

                  आईये मिलकर कुछ सोचते हैं, जिससे हमारी मुश्किलों को सुलझाया जा सके और गाँव के साथ साथ इस दुनिया तथा समस्त प्राणी जीवन को एक नया जीवन जीने की राह की ओर बढ़ सकें।
प्रेम और शुभकामनाएं 
                                                   - कमलेश

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