हमारी जीवनशैली और दुनिया

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यह ख़बर लगभग हर उस व्यक्ति को पता होगी जो खबरें पढ़ता है कि दिल्ली में १ से १० नवम्बर तक आपातकाल (प्रदुषण का आपातकाल) घोषित किया गया है क्योंकि वहाँ की हवा दुनिया की सबसे ख़राब हवा है जोकि न तो सुबह की सैर के लायक है और न ही एक गहरी साँस लेने के | इसका मुख्य कारण है आसपास के राज्यों में जलाये गए फसलों के अवशेष और वहाँ के वाहनों का धुआँ, फिर भी लोग केवल एक दूसरे पर आरोप लगाते दिखाई पड़ते हैं | जानकारी के लिए यह बता दूँ कि २ करोड़ की दिल्ली की आबादी के लिए १ करोड़ वाहन हैं, एकमात्र शहर जहाँ लोग स्टेटस के लिए निकल पड़ते हैं सड़कों पर बगैर यह सोचे कि कल क्या होगा!  हवा की खराब हालत को देखते हुए ही माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में केवल २ घंटे पटाखे जलाने का  आदेश दिया है और बाकि राज्यों से यह अपील की है कि वह कम से कम प्रदुषण की ओर कुछ कदम जरूर बढ़ाएं |
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                         हर वह शख़्स जो इस अपील या आदेश जिस तरह भी इसे देखते हैं, यह जान लें कि केवल प्रदुषण से ही भारत में हर वर्ष 13.56 लाख लोगों की मौत हो जाती है जबकि 2015 में यह आंकड़ा 25 लाख तक जा पहुंचा था | मतलब हर घंटे 150 लोग प्रदुषण की वजह से अपनी जान खो देते हैं | अब इस आदेश का विरोध करने वाले भी जान लें कि दिवाली के समय जोरशोर से पटाखे जलाने का चलन ज्यादा पुराना नहीं है इसे दो व्यापारियों ने 1940 में कुछ पटाखों की फैक्ट्रियां डाल, अपने फायदे के लिए लोगों को अपना ग्राहक बनाया था, और तब से यह चलन शुरु हुआ | रामायणकाल में तो वैसे भी पटाखों का ज़िक्र नहीं है वहाँ तो केवल मिट्टी के दीयों से दिवाली मनाई जाती थी, और पटाखों की पैरवी करने वाले कम से कम यह तय कर लें कि उन्हें अपने बच्चों को धुएँ और गंध से भरी दुनिया देनी हैं या फिर एक अच्छा भविष्य ! दिवाली अकेला ऐसा त्योहार नहीं है जो प्रदूषण में अपनी भूमिका निभाता है बल्कि क्रिसमस के दौरान भी ऐसे कई सारे तत्वों का उपयोग होता है जो हवा को बहुत ही बुरी तरीके से प्रभावित करते हैं जिनमें पार्टी प्रोपर्स का बहुत बड़ा योगदान है, साथ ही नए साल पर होने वाले जश्न भी वायु और ध्वनि प्रदूषण में अपनी अच्छी खासी भागीदारी रखते हैं।
          इन बातों से अवगत करवाने का मेरा प्रथम तात्पर्य यह है कि आप अपने तौर तरीकों पर सवाल उठाना शुरू कीजिए कि उनका पालन करना कहाँ तक सही है? और वह भी ऐसे युग में जहाँ हम पहले ही कई तरह की दिक्कतों का सामना कर रहे हैं लेकिन अपने त्योहार मनाने के तरीकों को बदलकर हम समाज को और आने वाली पीढ़ी को एक नया रास्ता तैयार कर के दे सकते हैं।
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              उपरिलिखित आंकड़े प्रदुषण के सामूहिक आंकड़े हैं जिसमें अगर जल प्रदुषण की बात की जाये तो केवल इसकी वजह से 5.68 लाख लोगों की जान जाती है जिनमें अधिकतर गरीब या वंचित तबके के लोग होते हैं जिन्हें बुनियादी सुविधाओं का लाभ अभी तक सरकारें नहीं दे पाई है | हमारी कोशिशें यह होनी चाहिए कि हम हर इंसान को एक सा देख पाएं उसे वही सम्मान दें जो हम खुद के लिए चाहते हैं लेकिन दृश्य बिल्कुल उलट है। हाल ही में महाराष्ट्र राज्य के कुछ जिले सूखाग्रस्त घोषित किए गए हैं और वहाँ यह हालात है कि पानी 10 किलोमीटर तक नसीब नहीं, इसी साल की शुरुआत में केपटाउन शहर में पानी खत्म हो गया था जोकि समय पर बारिश आने की वजह से सुलझ गया लेकिन यह सब प्रकृति की हमारे लिए चेतावनियाँ ही हैं, जिनसे अगर हमने सबक नहीं लिया तो न जाने क्या होगा। समय रहते अपनी जीवन शैली को बदलने की क़वायद हमें करनी होगी, अन्यथा वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी बहुत ही जल्दी सच होना शुरू जाएंगी और तब हमारे पास वक़्त नहीं होगा|
             एक और पहलू की ओर मैं ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा जोकि प्लास्टिक रूपी कचरे का उत्सर्जन है केवल भारत देश 15342 टन कचरे का रोज़ाना उत्पादन करता है, जो विश्व के प्लास्टिक कचरा उत्पादन में खासा योगदान देता है जोकि  8.34 लाख टन रोज़ाना है | हमारे द्वारा किये गए सालाना प्लास्टिक उत्पादन में से 80 लाख टन कचरा समुद्र या अन्य जल स्त्रोतों में मिलता है जिससे 1000 से ज्यादा समुद्री जीवों की प्रजातियाँ प्रभावित हो रही है इसका मतलब यह है कि सीधे सीधे लगभग 2 करोड़ समुद्री जीवों का जीवन खतरे में है। जल में प्लास्टिक के मिलने से प्रदुषण का आलम यह है कि अब तो समुद्री पानी से निकाले किए गए नमक में प्लास्टिक इस कदर घुल चुका है कि उसे अलग करना काफी मुश्किल हो चुका है। हमारे घर में आने वाले नमक का 60 फीसदी हिस्सा प्रदूषित है। चाहे कंपनियां कोई भी दावा करती रहें, हक़ीकत को झुठलाया नहीं जा सकता|
             मेरा निवेदन है उन सभी लोगों की तरफ से जो इस धरती को बचाने में लगे हैं कि प्लास्टिक आपके जीवन में नहीं हो या काफी कम हो इसकी भी कोशिश हम कर सकते हैं केवल सरकारें और प्रशासन के नियम बना देने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ने वाला जोकि इस देश की सच्चाई भी है कि बावजूद लगभग सारे राज्यों में प्लास्टिक (पॉलीथीन) प्रतिबंधित होने के, धड़ल्ले से बिक रही है। जल प्रदूषण के अन्य कारणों में कारखानों द्वारा उत्सर्जित कचरे का भी नाम है, जहाँ हम एक तरफ साफ पानी की उपलब्धता की कमी से जूझ रहे हैं वहीं हमारा समाज केवल अपने अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए और खुद को ऊंचा दिखाने के लिए विभिन्न त्योहारों पर जल को प्रदूषित करता है जिनमें होली, गणेश विसर्जन, दुर्गापूजा, छठ पूजा तथा ईद जैसे बड़े त्योहार भी शामिल हैं। इन त्योहारों से केवल जल ही नहीं वरन मिट्टी प्रदूषण भी बहुत अधिक मात्रा में होता है, क्योंकि होली पर विभिन्न प्रकार के केमिकल्स, मूर्ति विसर्जन में प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी मूर्तियाँ, छठ पूजा के दौरान विभिन्न सामग्रियाँ जो नदी के पानी में प्रवाहित कर दी जाती है,खासकर गंगा और यमुना जिनमें कोई भी बाहरी वस्तु डालने पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(NGT) द्वारा प्रतिबन्ध लगा है, तथा ईद में जानवरों का खून और उपयोग न किया जाने वाला माँस,यह चारों परम्पराएं के द्वारा मुख्य रूप से जल-मिट्टी प्रदूषण में भागीदारी का कड़वा सच है।
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          समाज से मेरा यह सवाल है कि ऐसी पूजा और कुर्बानियों का क्या फायदा जिनमें कई मूक जीवों खासकर ईद( सालाना 10 करोड़ जानवरों की बलि) और मुंडन संस्कार(सालाना 1 करोड़ जानवरों की बलि)  को अपनी जान केवल तथाकथित तार्किक मानव के लालच के लिए देनी पड़ती है और आने वाली पीढ़ी को भी हम एक सुरक्षित स्थान न दे पाने की स्थिति में हैं? खुद सोचिये, इस लेख पर सवाल उठाने से पहले सोचिये कि क्या आप अपने बच्चों को ऐसी नदियों के पास रहने देंगे जिनका पानी, पानी नहीं ज़हर है, ऐसी हवा में साँस लेने देंगे जो रोज़ाना 40 से 50 सिगरेट के धुएँ के बराबर हो, ऐसी मिट्टी में पैदा हुई सब्जियां खाने देंगे जिसमें कुदरती खाद कम, केमिकल्स बहुतेरे हों?
        इस समाज को सारे त्योहारों विशेषरुप से जो प्रदूषण में अपनी भागीदारी निभाते हैं, उनका तरीका साथ मिलकर, साथ बैठकर बदलना होगा ताकि हम आने वाले समय में अपने बच्चों के उलाहने न सुनें बल्कि उन्हें भी सततपोषणीय विकास के इस रास्ते पर चलने के लिए मार्गदर्शित करें। अपील केवल इतनी हैं कि आँख बंद रखकर अपनी परम्पराओं को मानने से पहले वर्तमान की जरूरतों को भी एक बार अपनी सोच की प्रक्रिया में शामिल करें| 
बाकी सभी त्योहारों की शुभकामनाएं...
                                               - कमलेश
नोट : बहस आमंत्रित है लेकिन केवल तर्कसंगत बातों के साथ,अपना आधा-अधूरा ज्ञान प्रदर्शित न करें |

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