अँधेरे में तुम

तराशता है जुगनू अपने पंख
रात की ख़ामोशियों से, फिर
ढलक जाते हैं किसी की पलकों से आँसू
जब रात सीढ़ियाँ चढ़ रही होती है।

मेरे शहर के कंधों पर
वज़न बढ़ जाता है रात के होने का,
जब तुम देखती हो आसमान
खिड़की से आते रात के कालेपन में।

चाँद अभी तक दिखाई नहीं पड़ा!
रात के आँसू छिपाने गया होगा,
तुमने देखा है कभी अपनी आँखों को
रात के चाँद से पनपते अँधेरे में?
                                    - कमलेश

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