तुम ख़ुद एक भाषा हो

    कुछ बातों को मुझे लिखने की ज़रूरत नहीं क्योंकि मुझे उनका साथ होना ज्यादा अच्छा लगता है ऐसी बातें लिख देने से मर जाया करती हैं। मैं तेरे किस्से कभी कभार लिखता हूँ इस आस में कि लिखने पर उन्हें मेरे जीवन का अमरत्व मिल जाएगा। तुम किसी हवा के झोंके सी हो जो बहुत ही धीरे से गुजरता है लेकिन हमेशा के लिए रह जाने वाली छाप छोड़ जाता है।
      पहली ही मुलाक़ात से हमने काफी कुछ बाँटा जिसमें चाय, बिस्किट, खाना और ढेर सारी बातें शामिल हैं। तुम इस तरह से मेरे जीवन में घुली हो जैसे पानी में शक्कर, पिछले कुछ वक़्त में तुम्हारे बाजू में बैठकर तुमसे बतियाना मेरे ढेर सारे सवालों और उलझनों को सुलझा देने में इतना कारगर हो सकता है, यह मुझे लिखने के कुछ समय पहले ही मालूम हुआ। सफ़र के दौरान हुई बातचीत में सबसे खूबसूरत लम्हें वही थे जब मैं कविताएँ पढ़ रहा था और तुम उन्हें आने वाले समय में सँजोने के लिए रिकॉर्ड कर रही थी।
             मेरी थकान को अपनी बातों और मुस्कुराहटों से हर लेना और कविताओं के जवाब में नज़रें चुराना, पास बैठकर भी कोई कविता सुनकर खो जाना और दूर जाने के बाद भी किसी तस्वीर के रास्ते वापस करीब आ जाना। कैसे परिभाषित करुँ मैं इसे, इसके लिए कोई भी शब्द नहीं, तुम्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। तुम्हें किसी भी भाषा की ज़रूरत नहीं, तुम ख़ुद एक भाषा हो।
महसूस हो जाने वाली चीज़ें समझने की हद से बाहर हैं और दर्शन की बातें केवल समझी जा सकती हैं, दार्शनिकों के मुताबिक बात तो यह भी सच है कि कोई भी ब्रम्हा को बयां नहीं कर सकता वह भाषा से परे है, उसे केवल महसूस कर पाउँगा मैं जब कभी मैं वहाँ, उस महसूस करने वाले माहौल में रहूँगा। तुम भी रहती हो वहीं कहीं शायद जहाँ लोग ब्रम्हा को पा जाते हैं, मैं आऊँगा एक दिन वहीं, तुम महसूस करोगी न मुझे?
                                                           - कमलेश

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