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जनवरी, 2019 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ज़िंदगी

मैंने देखा एकटक आसमान को, तो एक सितारा उतरकर मेरे साथ चलने लगा। रास्ते में मिल गई थी कुछ परछाईयाँ, ठहरा वहाँ तो वो रिश्ते बनकर साथ आ गईं। पलकों पर रहते थे कुछ जज़्बात हर पल, अब व...

शहर

कोई भूलता नहीं अब रास्ते यहाँ सो भटकने की गुंजाइशें कम हो रही हैं, रास्ते नहीं आते लौटकर वापस अब शायद पीठ की आँखों पर पट्टी चढ़ गई है, दिन भर दौड़ता है सड़कों पर ये शहर, इसकी साँसे ...

तुम्हारी आँखें

तेरे दीदार से उपजी बेफ़िक्री के बाद, हम नहीं देखते कि लोग क्या देखते हैं।                                                  - नागेश ये पंक्तियाँ उतनी ही सार्थक होती हैं जब तुम...

खोज

कोई नहीं देख पाता सालों तक कि वह क्या ढूंढ रहा है, मैंने पाया तुम्हें तो जान पाया कि मैं तुम्हारी हकीक़त का पीछा कर रहा था। तुम दिखती हो बोधिवृक्ष सी जिसके तले पहुँचकर मैं बुद...

प्रेम मुलाक़ात

"पहली बारिश को भी नहीं नसीब, कहाँ से लाती हो अपने गेसुओं में वो ख़ुशबू!" इन पंक्तियों के साथ मैंने तुम्हें अपने भीतर उतारा, जब तुम कई सौ किलोमीटर से मेरे नज़दीक चली आयी। तुम्हें द...

तीन कविताएँ

1. पानी से भरी एक पतीली को मैं देखे जा रहा हूँ आँखें गढ़ाकर, तुम मेरी आँखों के प्रतिबिंब के भी तीन कदम पीछे आकर खड़ी हुई; तुम्हें देखते रहना पानी में थोड़ा-थोड़ा ज्यादा सुकूनदायक ल...

ख़्वाहिश

कॉलेज के गेट से स्कार्फ बांधे निकली लड़की, और स्टेशन के ओवरब्रिज की सीढ़ियाँ अनमनेपन से चढ़ रहा लड़का, ज्यादा कुछ नहीं केवल किसी बिंदू पर पहुँचकर, फिर मिल जायेंगे ऐसा चाहते है...