तीन कविताएँ
1.
पानी से भरी एक पतीली को
मैं देखे जा रहा हूँ आँखें गढ़ाकर,
तुम मेरी आँखों के प्रतिबिंब के भी
तीन कदम पीछे आकर खड़ी हुई;
तुम्हें देखते रहना पानी में थोड़ा-थोड़ा
ज्यादा सुकूनदायक लगता है मुझे,
बजाय मुड़कर तुम्हें पूरा देख लेने के।
2.
मैं और तुम
कल कई सौ कोस की दूरी पर थे,
और शायद
कल इससे भी ज्यादा फ़ासले पर हों,
लेकिन ख़ूबसूरती यह है कि
आज हमारे बीच रत्तीभर भी दूरी न रही।
3.
बस एक बार तुम
देखना सूरज की ओर बग़ैर माथे पर हाथ रखे,
फिर देखना
वह तुरत-फुरत ढल जाने लगेगा।
मैं लेकिन
देखूँगा काली रात का ठंडा चाँद,
जो रात भर के लिए
इस दुनिया के सीने पर ठहर जाएगा।
- कमलेश
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें